अगर मैं आपसे ये कहूँ की आपको 100 km दूर देख कर बताना है की वहां क्या चीज है तो क्या आप यहीं से बैठे बैठे बता सकते हैं – नहीं ये इम्पॉसिबल है – और अगर आप ये तय करें की आप 100 km चल कर उस जगह तक पहुंचेंगे और फिर बताएँगे तब क्या होगा- सीधी से बात है – तब आपके लिए उसे देखना बहुत आसान हो जायेगा बस यहीं तो जिंदगी है हमारी!
हम लोग बार बार ये गल्ती करते हैं की हम कुछ भी शुरू करने से पहले ही उसके अंत के बारे में सोचने लगते हैं- आप भी ऐसा करते होंगे है न – अगर करते हो तो कमेंट करके बताना – अक्सर हम लोग चलने से पहले ही किसी चीज को दूर से देखने की कोशिश करते हैं और वो हमें इम्पॉसिबल दिखाई देती है – फिर हम नेगेटिव होने लगते हैं- और हमारी हिम्मत अपने आप टूटने लगती है – जबकि हमें इसके बिलकुल उल्टा करना चाहिए- अगर आपके मन में कोई प्लान है कोई विचार है तो उठिए और उसे शुरू कीजिये- बैठे बैठे अंदाजा मत लगायें की आगे क्या हो सकता है ??
सफलता उन्ही को मिलती है जो सफलता के बारे में जागरूक होते हैं और असफलता उन्ही को मिलती है जो असफलता के बारे में जागरूक होते हैं…
कहते हैं जब दौलत किसी के पास आती है तो वो इतनी तेजी से आती है की लोग हैरान रह जाते हैं, हम सोच में पड़ जाते हैं की इतने सालों की मेहनत और गरीबी के दिनों में ये दौलत कहाँ थी-
गीता कुरान बाइबिल गुरु ग्रन्थ साहिब या दुनिया के बाकि सारे धर्म ग्रन्थ हमें एक चीज जो सबसे पहले सिखाते हैं- वो ये की विशवास करो- विशवास करो और तुम्हे हर वो चीज हासिल होगी जिसे तुम हासिल करना चाहते हो- पर तुम्हारा विशवास पक्का होना चाहिए-
हम लोगों की एक कमजोरी होती है- कमजोरी नेगेटिव सोचने की – जैसा की मैंने कहा सफलता उन्ही को मिलती है जो सफलता के बारे में जागरूक होते हैं और असफलता उन्ही को मिलती है जो असफलता के बारे में जागरूक होते हैं…
हममे से ज्यादातर लोग अपना ज्यादातर वक्त अपनी कम्जोरियो,कामियो और अपनी गरीबी के बारे में सोचने में बिता देते हैं- और जाने अनजाने मैं जिन चीजों को हम अपनी जिंदगी में नहीं आने देना चाहते – उन्हें खुद ही अपनी सोच के द्वारा invite करते हैं-
असल में हम जिस चीज के बार में नहीं जानते हैं – जिसे हमने पहले कभी नहीं देखा है उस पर हमे विशवास नहीं होता- क्यूंकि हमने अभी तक सक्सेस को देखा नहीं इसलिए हमें विशवास नहीं होता की ये पॉसिबल है- और हम सफल हो सकते है – जबकि दूसरी तरफ हमने कई बार अस्फल्तायों को देखा है – इन्हें हम बड़ी अच्छी तरह से जानते है इसलिए हमें विशवास हो जाता है की हम असफल हो सकते हैं और इसीलिए हम कोई भी काम शुरू करने से पहले ही इसके परिणाम के बारे में सोचने लगते हैं- और फिर वहीँ होता है जो अभी तक हमारे साथ हो रहा है –
तो फ्रेंड्स मोरल ऑफ़ द स्टोरी ये है की सोचिये वैसा जैसा आप बनना चाहते हैं और सोचिये उतना ही जितना जरूरी हो – काम शुरू कीजिये बिना इस बात की परवाह किये की आगे आपके साथ क्या होगा…रिस्क का दूसरा नाम जिंदगी है- और अगर आप कोई रिस्क नहीं लेते तो यहीं आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा रिस्क होगा…