अभी कुछ दिनों पहले घटित हुए गोरखपुर अस्पताल हादसे को लेकर जिस प्रकार की सक्रियता सोशल मीडिया पर देखी गई, वह एक प्रकार से सही भी कहा जा सकता है। क्योंकि इस घटना से समाज में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है, लेकिन क्या हमने सोचा है कि वास्तव में दोष कहां है? ऐसी घटनाओं के लिए पूरी तरह से समाज ही दोषी है, सरकार नहीं। हां, यह बात अवश्य है कि सरकार की भी जिम्मेदारी होती है, लेकिन उन जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे किया जाना है, यह हम सबकी जिम्मेदारी है। हम किसी भी घटना के लिए सीधे तौर पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर देते हैं। बुराई के लिए दूसरों पर आरोप लगाना ही हमारी नियति बन गई है। छोटे से काम के लिए भी हम दूसरों के ऊपर आश्रित होते जा रहे हैं। क्या यही हमारी भूमिका है। हम भी समाज का हिस्सा हैं, इसलिए हमारी भी समाज के प्रति जिम्मेदारी बनती है। हम सोशल मीडिया के माध्यम से अवगुणों को प्रस्तुत करके कौन सी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं। हम कैसे समाज का निर्माण करना चाह रहे हैं? हम जैसा अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही हमें विचार प्रस्तुत करना चाहिए। एक ऐसा विचार जो समाज को सकारात्मक दिशा का बोध करा सके। प्राय: कहा जाता है कि बार-बार नकारात्मकता की बातें की जाएंगी तो स्वाभाविक ही है कि यही नकारात्मक चिंतन समाज को गलत दिशा में ले जा सकता है। इसलिए सबसे पहले हमें अपनी भूमिका तय करनी होगी, तभी हम समाज और देश के साथ न्याय कर पाएंगे, नहीं तो भविष्य क्या होगा, इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर अधकचरे राजनीतिक ज्ञान और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच जो विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं। वह सभी विद्वेष पर आधारित एक कल्पना को ही उजागर कर रहे हैं। मेरे साथ हुए एक घटनाक्रम का उदाहरण देना चाहूंगा, जिसमें मैंने सोशल मीडिया पर राष्ट्र की जिम्मेदारियों से संबंधित अपनी भूमिका के बारे में चिंतन करते हुए सवाल किया था कि हमें चीन की वस्तुओं का त्याग करना होगा और स्वदेशी को बढ़ावा देते हुए अपने राष्ट्र की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। इस बात पर कई जवाब आए, एक ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी भक्त ऐसी ही बातें करते हैं। अब जरा बताइए कि इसमें मोदी भक्ति कहां से आ गई। क्या राष्ट्रीय चिंतन को प्रस्तुत करना मोदी भक्ति है। वास्तव में देश के उत्थान के बारे में किसी भी विचार का हम सभी को सकारात्मकता के साथ समर्थन करना चाहिए, लेकिन हमारे देश में इस पर भी सवाल उठाए जाते हैं। यह कौन सी मानसिकता है।
जहां तक असामाजिक तत्वों द्वारा की जा रही गतिविधियों का सवाल है तो यह असामाजिक तत्व कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने वाले लोग ही होते हैं। उनको कौन से राजनीतिक दल संरक्षण प्रदान करते हैं, यह देश की जनता प्रमाणित कर चुकी है। हम सोशल मीडिया पर परिपक्व विचारों को लाएंगे, तो समाज के बीच वैमनस्यता पैदा करने वाली शक्तियों को भी दिशा देने का मार्ग दिखा सकते हैं, लेकिन फिलहाल ऐसा दिखाई नहीं दे रहा। ऐसे में सवाल यही आता है कि फिर काहे का सोशल मीडिया। वास्तव में सोशल मीडिया वही होता है जिसमें सामाजिक प्रगति का चिंतन हो। अगर यह सब नहीं होगा तो स्वाभाविक ही है कि हम अपने विचारों को संकीर्ण बनाने का काम ही करेंगे। जो हमारे लिए भी दुखदायी होगा और समाज के लिए भी।