इंटरनेट पर मौजूद अश्लील सामग्री को हटाया जाना चाहिए।।


भारत में इंटरनेट पर मौजूद अश्लील सामग्री को हटाया
जाना चाहिए क्योंकि छोटे बच्चे भी कर रहे हैं इंटरनेट का इस्तेमाल;

इंटरनेट के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता बच्चों का भविष्य बिगाड़ने पर आमादा है। पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चे महंगे मोबाइल हाथ में लेकर गलत राह पर चल पड़े हैं। यही नहीं साइबर कैफे पर बैठकर किशोर सरेआम शालीनता की हदें पार करने वाले फोटो और वीडियो डाउनलोड कर रहे हैं। इंटरनेट के जाल में जकड़ते बच्चों और युवाओं को बचाने के लिए न तो सरकार के स्तर पर कुछ किया जा रहा है और न अभिभावक ध्यान दे रहे हैं।

आईटी विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में मोबाइल पर क्लिप डाउनलोडिंग का व्यापार छोटे स्तर पर है, लेकिन इंटरनेट पर सब खुला पड़ा है। थ्रीजी 4G टेक्नोलॉजी के बाद तो यह और आसान हो गया। बच्चे साइबर कैफे या घर बैठे नेट पर अवांछित सामग्री डाउनलोड करते हैं। साइबर कैफे में नियमों की पाबंदी के बावजूद अश्लील व आपत्तिजनक सामग्री की वेबसाइट तक पहंुच को रोकने के लिए कोई लगाम नहीं है। एक बार के क्लिक में सेवाप्रदाता कंपनी का प्रचार-प्रसार होता है और करोड़ों रूपए मिलते हैं। सरकार चाहे तो इस कारोबार पर रोक लग सकती है।

#कानूनी_पहलू

सूचना तकनीक, खास तौर पर इंटरनेट के मंच के जरिये होने वाले बाल शोषण को रोकने के लिए मौजूद वैधानिक व्यवस्थाओं को इन कानूनों के सन्दर्भ में देखा और समझा जाता है:

* सूचना तकनीक कानून, 2008

* केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995

* लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012

* किशोर न्याय अधिनियम, 2015

* केबल टेलिविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995

इस श्रृंखला का मकसद ऑनलाइन-इंटरनेट मंचों पर होने वाले बाल शोषण और उत्पीड़न के स्वरुप को समझना और कुछ जरूरी कदम उठाने के वकालत करना है. यह एक संवेदनशील विषय है और इसके महज कानूनी प्रक्रिया का मामला मानकर छोड़ देना बहुत बड़ी गलती है.

#इंटरनेट_विभिन्न_परिस्थितियों_में_बच्चों_का_इन_रूपों_में_शोषण_करता_है:

बच्चों का अश्लील रूप में प्रदर्शन (चित्र, वीडियो और शाब्दिक चित्रण), जिससे उनकी गरिमा, सम्मान और स्वतंत्रता को आघात लगता है.

यह अवसाद का कारण बनता है. बच्चे आपराधिक गतिविधियों में फंस सकते हैं और खुद अन्य बच्चों के शोषण की प्रक्रिया का हिस्सा बन जाते हैं. कुछ प्रकरणों में बच्चे आत्महत्या या हत्या करने के लिए प्ररित होते हैं.

बच्चों को यौन व्यवहार और यौन व्यापार का हिस्सा बनाना.

बच्चों के व्यवहार को हिंसक बनाना और दुव्र्यवहार की तरफ धकेलना, जब बच्चे को यौन व्यवहार के जाल में फंसाया जाता है, तब उनके खुद यौन हिंसा में शामिल होने की आशंका बढ़ती है.

उन्हें अपराध की तरफ प्रेरित करना, इंटरनेट कई मर्तबा बच्चों को ऐसे उपभोक्तावादी व्यवहार की तरफ लेकर जाता है, जिनसे उनकी जरूरतें बनावटी रूप से बढ़ती हैं, उन्हें लतें लगती हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए वे अपराध करते हैं.

वयस्कों के द्वारा शोषण, इंटरनेट केवल बच्चों को सीधे प्रभावित नहीं करता है, बल्कि वयस्क खुद ऑनलाइन अश्लील सामग्री का उपयोग करके बच्चों का शोषण करने लगते हैं

क्योंकि बच्चों की आवाजों को अकसर दबा दिया जाता है और उनकी बात सुनी नहीं जाती है.

इंटरनेट काल्पनिक दुनिया का विस्तार करता है, बच्चे उन काल्पनिक दृदृश्यों या सामग्री को अपने जीवन में लागू करने की कोशिश करते हैं. जिनसे उन्हें नुकसान पंहुचता है.

विकसित होते मन और मस्तिष्क पर असर डालते हुए, बच्चों के व्यक्त्वि को प्रभावित करना, वर्तमान समय में 9 साल की उम्र के बच्चे भी 2 से 3 घंटे का समय इंटरनेट पर गुजारते हैं. उन्हें इस दौरान कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता है. इंटरनेट अपने आप उन्हें अवांछित सामग्रियों की ओर ले जाता है.

शिक्षा, संबंधों और रचनात्मकता से दूर ले जाना ही जाना ही इस अश्लीलता का अर्थ हो सकता है, अतः हमारे देश की सरकार को इन सभी अश्लील वेबसाइटों पर
अगर भारत देश की युवा पीढ़ी को बचाना है और इस देश की सभ्यता और संस्कृति को बचाए रखना है तो सख्त रोक लगा देना चाहिए।

जय हिन्द 🇮🇳

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