#अधिकार_और_कर्तव्य_एक_ही_सिक्के_के_दो_पहलू;
मानव जब जन्म लेता है तभी उसे कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं जैसे जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार इत्यादि |
उम्र के साथ – साथ अधिकार भी बढ़ते जाते हैं |जैसे -जैसे अधिकार बढ़ते जाते हैं वैसे – वैसे उनके कर्तव्य भी बढ़ते हैं |
हम जिस परिवार, कार्य स्थल, समाज, राज्य या देश में रहते हैं उनसे हमें अधिकार प्राप्त होते हैं और प्रत्येक अधिकार के साथ एक कर्त्तव्य भी जुड़ा होता है अर्थात् अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं |
एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है |
जिस प्रकार अधिकार हमें सबल बनाता है, सामाजिक बुराइयों और अत्याचारों से बचाता है,
वहीं अगर हम अधिकार के पहले अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहते हैं तो कोई समस्या ही नहीं रहती है |
हमारे देश का संविधान डॉ भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में बनकर तैयार हुआ था,
जिसमें भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिये गये जैसे – स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार इत्यादि |
इसी प्रकार राज्य सरकार भी कुछ अलग सुविधाएं देकर हमें अधिकार प्रदान करती है |
हम अधिकार की रक्षा के लिए या अधिकार बढ़ाने के लिए किसी हद तक भी जा सकते हैं |
इसी का परिणाम है कि हमारे देश में आये दिन हड़ताल, जुलूस और नारेबाजी होते रहते हैं |
परन्तु हम कभी अपने कर्त्तव्यों पर ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि हमारी मानसिकता सदैव लेते रहने की है कुछ देने की नहीं |
एक समय था जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था और अपने देश के निवासी होते हुए भी हमारे पास कोई अधिकार नहीं था |
“
उस समय क्या महात्मा गांधी, भगत सिंह, चन्दशेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, राजगोपालाचारी आदि ने कभी देश से शिकायत किया कि देश ने उन्हें क्या दिया, वे क्यों गुलाम देश में जन्म लिए ?
उन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये क्योंकि उन्हें अपने देश से प्यार था |
वे लेने का नहीं कुछ देने का जज्बा रखते थे |
आज कितने ही पढ़े – लिखे ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट, मैनेजमेंट कोर्स किये हुए लोग हैं जिन्हें कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है |
जहाँ मन करता है थूकते हैं, कचरा फेंकते हैं, ड्राइविंग करते समय सीट बेल्ट नहीं लगाते हैं या हेलमेट नहीं पहनते हैं, सामान खरीदते समय रसीद नहीं लेते हैं, शराब की नशों में लत सड़कों पर पड़े रहते हैं |
हर साल चोरी , डकैती, लूट – पाट, बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं |
हम अपने दायित्वों से भागने के लिए सारा दोष सरकार पर मँढ़ देते हैं |
यदि कहीं बम विस्फोट हो या आतंकवादी हमला हो तो यह भी सरकार का ही दोष कहा जाता है |
चाहे सरकार बार – बार यह चेतावनी देती हो कि संदिग्ध वस्तु या व्यक्ति दिखने पर तुरन्त पुलिस को सूचना दी जाय |
इन सब घटनाओं के घटित होने का मूल कारण केवल और केवल हमारा कर्तव्यनिष्ठ नहीं होना है |
दोस्तो, अगर हम अधिकार के साथ अपने कर्तव्य को भी ध्यान रखें तो घर, समाज, राज्य और देश स्वतः ही आदर्श बन जायेगा और किसी की तरफ ऊँगली उठाने का अवसर नहीं मिलेगा |
धन्यवाद |
मानव जब जन्म लेता है तभी उसे कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं जैसे जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार इत्यादि |
उम्र के साथ – साथ अधिकार भी बढ़ते जाते हैं |जैसे -जैसे अधिकार बढ़ते जाते हैं वैसे – वैसे उनके कर्तव्य भी बढ़ते हैं |
हम जिस परिवार, कार्य स्थल, समाज, राज्य या देश में रहते हैं उनसे हमें अधिकार प्राप्त होते हैं और प्रत्येक अधिकार के साथ एक कर्त्तव्य भी जुड़ा होता है अर्थात् अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं |
एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है |
जिस प्रकार अधिकार हमें सबल बनाता है, सामाजिक बुराइयों और अत्याचारों से बचाता है,
वहीं अगर हम अधिकार के पहले अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहते हैं तो कोई समस्या ही नहीं रहती है |
हमारे देश का संविधान डॉ भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में बनकर तैयार हुआ था,
जिसमें भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिये गये जैसे – स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार इत्यादि |
इसी प्रकार राज्य सरकार भी कुछ अलग सुविधाएं देकर हमें अधिकार प्रदान करती है |
हम अधिकार की रक्षा के लिए या अधिकार बढ़ाने के लिए किसी हद तक भी जा सकते हैं |
इसी का परिणाम है कि हमारे देश में आये दिन हड़ताल, जुलूस और नारेबाजी होते रहते हैं |
परन्तु हम कभी अपने कर्त्तव्यों पर ध्यान नहीं देते हैं क्योंकि हमारी मानसिकता सदैव लेते रहने की है कुछ देने की नहीं |
एक समय था जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था और अपने देश के निवासी होते हुए भी हमारे पास कोई अधिकार नहीं था |
“
उस समय क्या महात्मा गांधी, भगत सिंह, चन्दशेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, राजगोपालाचारी आदि ने कभी देश से शिकायत किया कि देश ने उन्हें क्या दिया, वे क्यों गुलाम देश में जन्म लिए ?
उन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये क्योंकि उन्हें अपने देश से प्यार था |
वे लेने का नहीं कुछ देने का जज्बा रखते थे |
आज कितने ही पढ़े – लिखे ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट, मैनेजमेंट कोर्स किये हुए लोग हैं जिन्हें कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है |
जहाँ मन करता है थूकते हैं, कचरा फेंकते हैं, ड्राइविंग करते समय सीट बेल्ट नहीं लगाते हैं या हेलमेट नहीं पहनते हैं, सामान खरीदते समय रसीद नहीं लेते हैं, शराब की नशों में लत सड़कों पर पड़े रहते हैं |
हर साल चोरी , डकैती, लूट – पाट, बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं |
हम अपने दायित्वों से भागने के लिए सारा दोष सरकार पर मँढ़ देते हैं |
यदि कहीं बम विस्फोट हो या आतंकवादी हमला हो तो यह भी सरकार का ही दोष कहा जाता है |
चाहे सरकार बार – बार यह चेतावनी देती हो कि संदिग्ध वस्तु या व्यक्ति दिखने पर तुरन्त पुलिस को सूचना दी जाय |
इन सब घटनाओं के घटित होने का मूल कारण केवल और केवल हमारा कर्तव्यनिष्ठ नहीं होना है |
दोस्तो, अगर हम अधिकार के साथ अपने कर्तव्य को भी ध्यान रखें तो घर, समाज, राज्य और देश स्वतः ही आदर्श बन जायेगा और किसी की तरफ ऊँगली उठाने का अवसर नहीं मिलेगा |
धन्यवाद |