गरीबी भारत में चारों तरफ फैली हुई स्थिति है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से, गरीबी का प्रसार चिंता का विषय है। ये 21वीं शताब्दी है, और गरीबी आज भी लगातार बढ़ रही गंभीर खतरा है। 1.35 बिलियन जनसंख्या में से 29.8% से भी अधिक जनसंख्या आज भी गरीबी रेखा से नीचे है। ये ध्यान देने वाली बात है कि पिछले दशकों में गरीबी के स्तर में गिरावट हुई है लेकिन अमीरों और गरीबों के बीच की रेखा को पूरी तरह से धुंधला करने के प्रयासों का कड़ाई से अनुसरण करने की आवश्यकता है। एक राष्ट्र का स्वास्थ्य, राष्ट्रीय आय और सकल घरेलू उत्पाद से अलग, यहाँ के लोगों के जीवन स्तर से भी निर्धारित होता है। इस प्रकार, गरीबी किसी भी राष्ट्र के विकास में धब्बा बन जाती है।
गरीबी क्या है?
गरीबी को ऐसी स्थिति के रुप में परिभाषित किया जा सकता है जहाँ एक व्यक्ति जीवन के लिये अति आवश्यक आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में असक्षम होता है। इन आधारभूत आवश्यकताओं में – खाना, कपड़े और आवास स्थान शामिल है। गरीबी वो स्थिति है जो लोगों के जीने के लिये आवश्यक सभ्य मानकों का वहन नहीं करती। गरीबी वो दुश्चक्र है जो आमतौर पर परिवार के सभी सदस्यों को शामिल करती है। अत्यधिक गरीबी के कारण अंततः व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। भारत में गरीबी को अर्थव्यवस्था, अर्द्ध- अर्थव्यवस्था के आयामों और लक्षणों को ध्यान में रखकर परिभाषित किया जा सकता है जो अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों द्वारा निर्धारित कर दिये गये हैं।
भारत गरीबी के स्तर पर उपभोग और आय दोनों के आधार पर निर्णय लेता है। उपभोग का मापन मुद्रा के उस भाग से किया जाता है जो लोगों द्वारा घर की आवश्यक चीजों को खरीदने पर व्यय किया जा है और आय की गणना विशेष व्यक्तियों द्वारा कमायी जाने आय के अनुसार होती है। एक अन्य अवधारणा है जिसका यहां उल्लेख करना आवश्यक है, वो है, गरीबी रेखा की अवधारणा। ये गरीबी रेखा, भारत के साथ ही अन्य राष्ट्रों में गरीबी मापने के मानक के रुप में कार्य करती है। गरीबी रेखा, आय के न्यूनतम स्तर के अनुमान के रुप में परिभाषित की जा सकती है, जो एक परिवार के जीवन यापन के लिये आवश्यक आधारभूत जरुरतों को पूरा करने के लिये जरुरी होती है। 2014 के अनुसार, भारत में, गरीबी रेखा को ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रुपये प्रतिदिन और कस्बों और शहरों में 47 रुपये प्रतिदिन निर्धारित किया गया।
भारत में गरीबी के कारण
अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्री रैग्नर नर्क्शे के अनुसार, “एक देश इसलिये गरीब है क्योंकि वो गरीब है।” ये कथन इस दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता की ओर संकेत करता है कि गरीबी एक दुश्चक्र है। इस चक्र में बचत का स्तर कम होता है जो निवेश के क्षेत्र को कम करता है जिसके कारण फिर से आय का कम होती है और ये चक्र इसी प्रकार चलता रहता है।
भारत में गरीबी के अस्तित्व का एक और प्रमुख कारण देश के मौसम की दशायें भी हैं। गैर-अनुकूल जलवायु लोगो की फर्मों में कार्य करने की क्षमता को कम करती है। बाढ़, अकाल, भूकंप और चक्रवात उत्पादन को बाधित करता है। जनसंख्या भी एक अन्य कारक है जो इस बुराई में भागीदारी करता है। जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय को कम करती है।
इस तरह, जितना बड़ा परिवार का आकार, उतनी ही कम प्रति व्यक्ति आय। भूमि और सम्पत्ति का असमान वितरण एक अन्य समस्या है जो समान रूप से किसानों के हाथों में भूमि की एकाग्रता को रोकता है।
गरीबी के प्रभाव
ये ध्यान देने योग्य बात है कि, यद्यपि पिछले दो दशकों में अर्थव्यवस्था में प्रगति के कुछ स्पष्ट संकेत दिखायी देते हैं, ये प्रगति बहुत से क्षेत्रों और स्थानों पर असमान है। दिल्ली और गुजरात में बिहार और उत्तर प्रदेश की तुलना में ऊँची वृद्धि दर है। लगभग आधी जनसंख्या के पास रहने के लिये उपयुक्त आवास, उचित सभ्य स्वच्छता व्यवस्था, गाँवों में नजदीकी पानी का स्त्रोत, और गाँवों में माध्यमिक स्कूल और उचित सड़कों आदि की कमी है। यहां तक कि, समाज के कुछ वर्ग जैसे दलितों को सरकार द्वारा नियुक्त संबंधित अधिकारियों द्वारा गरीबों की सूची में भी शामिल नहीं किया जाता। ये वो समूह है जो समाज में उपयुक्त नहीं समझे जाते।
गरीबी उन्मूलन के लिये सरकारी योजनाएं
गरीबी पर चर्चा करते हुए भारत में गरीबी को कम करने के लिए सरकार के प्रयासों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इसे सबसे पहले उल्लिखित करने की आवश्यकता है कि जो कुछ भी परिवर्तन गरीबी के अनुपात में सीमांत बूदों के रुप में स्थान लेते हुये देखा गया है वो सभी लोगों को गरीबी के स्तर से ऊपर उठाने के उद्देश्य से बनायी गयी सरकारी पहलों के निर्माण के कारण हुआ है। हांलाकि, अभी इसे दूर करने के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है क्योंकि इससे भ्रष्टाचार जुड़ा हुआ है।
पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) – पीडीएस के अन्तर्गत गरीबों के लिये सरकार द्वारा दिये जाने वाले खाद्य और गैर-खाद्य पदार्थ शामिल है। वितरित किये जाने वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों में गेंहू, चावल, चीनी, और कैरोसीन है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये पूरे देश के सभी राज्यों में निश्चित की गयी दुकानों के माध्यम से बाँटे जाते हैं। लेकिन, पीडीएस द्वारा दिया जाने वाला खाद्यान्न एक परिवार की उपभोग की अवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है। पीडीएस योजना के अन्तर्गत, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले प्रत्येक परिवार को हर महीने 35 किलो. चावल और गेंहू और गरीबी रेखा से ऊपर वाले परिवारों को मासिक आधार पर 15 किलो खाद्यान्न दिया जायेगा। इतनी महत्वपूर्ण योजना होने के बाद भी, ये योजना दोषरहित नहीं है। पीडीएस के माध्यम से खाद्यान्नों का रिसाव और विचलन बहुत ज्यादा है। सरकार द्वारा गरीबों के लिये केवल 41% गेंहू दिया जाता है। पीडीएस के खिलाफ एक अन्य विकल्प खाद्य समर्थन के साथ कुछ नकद हस्तांतरण का सुझाव दिया गया है, लेकिन ये अंतर्रोधी खाद्य भंडार की जरुरत को पूरा नहीं करता।
मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) – इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को कम से कम 100 दिन का रोजगार प्रदान करके उनके जीवन को सुरक्षा प्रदान करना है। अन्य योजनाओं की तुलना में इस अधिनियम के तहत रोजगार सृजन अधिक रहा है।
आरएसबीबाई (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) – ये गरीबों के स्वास्थ्य के लिये बीमा है। ये सार्वजनिक अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी मुफ्त की सुविधा उपलब्ध कराता है। गरीबी रेखा के नीचे वाले सभी परिवार 30 रुपये की रजिस्ट्रेशन फीस देकर पीले रंग का राशन कार्ड प्राप्त करते हैं जिस पर उनकी उंगलियों के निशान और फोटो से युक्त एक बॉयोमीट्रिक सक्षम स्मार्ट कार्ड मिलता है।
निष्कर्ष
अधिकांश योजनाओं का कार्यान्वयन चुनौतियों से घिरा हुआ है। कार्यक्रम सब्सिडी के रिसाव से जुड़े हुये है जोकि गरीबों पर इसका प्रभाव डालते हैं। इन कार्यक्रमों को एक संगठन के नीचे केन्द्रीकृत करने की आवश्यकता है ताकि कई स्तरों पर हो रहे रिसाव को रोका जा सके।