लोकतंत्र में लूटतंत्र

नेताओं के भ्रष्टाचार पर टनों आंसू बहाने वाले लोग यदाकदा ही अस्पतालों, खासतौर पर सरकारी अस्पतालों में फैले भ्रष्टाचार का जिक्र करते हैं जिस के चलते शरीफ लोगों को वर्षों जेलों में सड़ाया जाता है या फिर गुनाहगारों को बचाया जाता है. दहेज मौतों के मामलों में ऐसा अकसर होता है. दरअसल, सरकारी डाक्टर रिश्वत ले कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदल देते हैं. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर के हाथ में यह होता है कि वह शव को देख कर लिखे कि मृत्यु मारपीट, जोरजबरदस्ती के बाद हुई या मृतक ने खुदकुशी की थी.
दिल्ली के एक मामले में एडिशनल जज कामिनी लौ ने एक ऐसी पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत ठहराया जिस में मृतक के घर वालों के कहने पर डाक्टर ने मौत को अस्वाभाविक बताया था जबकि दूसरे डाक्टरों ने उसे स्वाभाविक बताया था. ऐसे में विवाद डाक्टरों में भी खड़ा हो गया और अदालत को आदेश देना पड़ा कि जिन डाक्टरों ने उक्त मौत को स्वाभाविक बताया, उन्हें सुरक्षा दी जाए ताकि दूसरे डाक्टर उन्हें परेशान न करें.
यह देशभर में होता है. डाक्टर की रिपोर्ट के अनुसार ही न्यायालयों के फैसले होते हैं और पेशेवर कातिल इस बात को जानते हैं. सो, वे डाक्टर को पोस्टमार्टम में लूपहोल छोड़ने के लिए मोटा पैसा देते हैं. अगर 5-7 साल बाद पता चले कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार घाव घातक न था, तो अकसर फैसला बदल जाता है.
इस तरह के विवादों में जब तक डाक्टर की गवाही की नौबत आती है तब तक कई साल बीत चुके होते हैं और डाक्टर सरकारी हो तो उस का तबादला हो चुका होता है. ऐसी स्थिति में न्यायालय भी ज्यादा देर तक डाक्टर से पूछताछ नहीं कर पाता. नतीजतन, गुनाहगार छूट जाता है या बेगुनाह सजा पा जाता है, सिर्फ रुपयों के बल पर.?
नेताओं के भ्रष्टाचार से कहीं ज्यादा भयंकर भ्रष्टाचार अफसरशाही, इंस्पैक्टरों, सरकारी विभागों, निजी उद्योगों में खरीद करने वालों में, शेयर बाजारों में, स्कूलों में अंक बढ़ानेघटाने में फैला हुआ है. जनता नेताओं के भ्रष्टाचार से इतनी त्रस्त नहीं है जितनी रजिस्ट्री करने वाले दफ्तर के फैले भ्रष्टाचारी हाथ से है. यह वह देश है जहां मौत के प्रमाणपत्र भी रिश्वत दिए बिना नहीं मिलते.
डाक्टर जैसे शख्स, जिन्हें लोग जीवनदान देने वाला समझते हैं, जब रिश्वत के बदले किसी को छुटवाने या सजा दिलवाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलने लगें तो कुछ नेताओं को भ्रष्टाचार का दोष देना मूर्खता है.
भ्रष्टाचार, बेईमान, झूठ, फरेब का रोग हमारे अंगअंग में घुसा हो तो उन लोगों को, जिन्हें खुशीखुशी चुन कर नेता बनाया, सत्ता पकड़ाई, दोष देना गलत होगा. हम यह तब कर सकते हैं जब समाज हर तरह के भ्रष्टाचारियों के खिलाफ खड़ा हो.
यह सोचना गलत है कि पैसा केवल बेईमानी से बनता है, जिन बेईमानों, भ्रष्टाचारियों, लुटेरों के हाथ में पैसा होता है, उसे किसी किसान, किसी दस्तकार या मजदूर ने खेतों, कारखानों में मेहनत कर के कमाया होता है, शराफत से.
ईमानदारी से कमाए गए इस पैसे पर गर्व होता है पर यही पैसा लूटा जाता है और हमारा देश इस में माहिर है. लोकतंत्र की चुनौती यही है कि वह इस पैसे को कमाने वाले के हाथ में रखे और लूटने वाले नेता, अफसर, संतरी, इंस्पैक्टर के हाथ बांध कर रखे.

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