संसद भवन,लाल किला ( दिल्ली, आगरा) क्या विदेशी आक्रांताओं की देन है?

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जब जब आप भारत की संसद को देखते हैं, तो लोग कहते हैं कि ये शानदार डिजाइन अग्रेंज Sir Edwin Lutyens ने बनाया था। अगर आप किसी गाइड के साथ हैं तो वो भी आपको यही बताएगा। लेकिन मुझे हैरत इस बात की है कि केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और ASI (आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) क्या वाकई में ये राज नहीं जानते कि संसद का डिजाइन कोई नया नहीं बल्कि भारत के ही हजारों साल पुराने एक मंदिर से लिया गया है। अगर आप फोटोग्राफ्स देखेंगे तो समझ आ जाएगा कि संसद का डिजाइन और मंदिर का डिजाइन दोनों बिल्कुल मिलते हैं।
बहुत कम लोग को ये तथ्य पता है कि भारत के संसद भवन का डिजाइन Madhya Pradesh के मुरैना जिले में बने 9वीं सदी के एक शिव मंदिर के लगभग नकल है। यह मंदिर मुरैना जिले के वटेश्वर में बना है। संसद भवन की जिक्र होने पर सर एडविन लुटियंस का नाम लिया जाता है, लेकिन इस बात की चर्चा नहीं होती कि लुटियंस ने भवन का डिजाइन इसी मंदिर से चुराया था।
संसद भवन के डिजाइन बनाने का पूरा श्रेय दिल्ली गजट (Gazette) में भी लुटियंस को ही दिया गया है। शायद इसके पीछे कारण ये है कि जिस दौर में संसद भवन बनाया गया, उस वक्त भारत में अंग्रेजों का शासन था।
संसद भवन की सुरक्षा और खूबसूरती बनाए रखने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन अपनी पुरानी संपदा वाले इस मंदिर बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों में से कोई भी नहीं सोचता।
संसद भवन एक नजऱ

कब बना 1921-1927 के दौरान
शहर: नई दिल्ली
किसने बनाया: ब्रिटिश वास्तुविद सर एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर
साइज: गोलाकार, व्यास 560 फुट, जिसका घेरा 533 मीटर है। यह लगभग 6 एकड़ के क्षेत्र में बना हुआ है। कुल 12 दरवाज़े इस भवन में हैं। 144 खंभे कतार से हल्के पीले रंग के लगे हैं। हर खंभे की ऊंचाई 27 फीट है।

भले ही इसका डिजाइन विदेशी वास्‍तुकारों ने बनाया था किंतु इस भवन का निर्माण भारतीय सामग्री से तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था। तभी इसकी वास्‍तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है।

इस भवन का केंद्र बिंदु केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल हाल) का विशाल वृत्ताकार ढांचा है। केंद्रीय कक्ष के गुबंद का व्यास ९८ फुट तथा इसकी ऊँचाई ११८ फुट है। विश्वास किया जाता है कि यह विश्व के बहुत शानदार गुबंदों में से एक है। भारत की संविधान सभा की बैठक (१९४६-४९) इसी कक्ष में हुई थी। १९४७ में अंग्रेजों से भारतीयों के हाथों में सत्ता का ऐतिहासिक हस्तांतरण भी इसी कक्ष में हुआ था। इस कक्ष का प्रयोग अब दोनों सदनों की संयुक्क्त बैठक के लिए तथा राष्‍ट्रपति और विशिष्‍ट अतिथियों-राज्‍य या शासनाध्‍यक्ष आदि के अभिभाषण के लिए किया जाता है।

 दिल्ली का लाल किला

 मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था।
लालकिले का निर्माण 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ।

इतिहास के नाम पर झूठ क्यों पढ़ रहे है ??

अक्सर हमें यह पढाया जाता है कि दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ ने बनवाया था | लेकिन यह एक सफ़ेद झूठ है और दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले "महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय" द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था|

महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे| इतिहास के अनुसार लाल किला का असली नाम "लाल कोट" है, जिसे महाराज अनंगपाल द्वितीय द्वारा सन 1060 ईस्वी में दिल्ली शहर को बसाने के क्रम में ही बनवाया गया था जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्ष बाद 1592 ईस्वी में हुआ है|

दरअसल शाहजहाँ नमक मुसलमान ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश की थी ताकि, वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके लेकिन सच सामने आ ही जाता है| इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 (ग्रन्थ ३) में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल ( लाल प्रासाद/ महल ) कि ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया| सिर्फ इतना ही नहीं अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण करवाया था|
                                                   

*** दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथवीराज चौहान द्वारा बनवाया हुआ लाल कोट है***
जिसको शाहजहाँ ने पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश करी थी ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके..लेकिन सच सामने आ ही जाता है.

* इसके पूरे साक्ष्य प्रथवीराज रासो से मिलते है .

* शाहजहाँ से 250 वर्ष पहले 1398 मे तैमूर लंग ने पुरानी दिल्ली का उल्लेख करा है (जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है)

* सुअर (वराह) के मुह वाले चार नल अभी भी लाल किले के एक खास महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है या हमारे हिंदुत्व के प्रमाण??

* किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है राजपूत राजा लोग गजो( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे ( इस्लाम मूर्ति का विरोध करता है)

*  दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से कुंड बना है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिंदू शब्दावली है जो की हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रही है

*  मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्व नही है दीवानेखास और दीवाने आम मे.

* दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है , अपनी प्रजा मे से 99 % भाग को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता, ब्राह्मानो द्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसीध है .

*  दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल (आमेर--पुराना जयपुर) से मिलती है जो की राजपूताना शैली मे बना हुवा है .

* लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही गैर मुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए हुए है.

* लाल किले का मुख्या बाजार चाँदनी चौक केवल हिंदुओं से घिरा हुआ है, समस्त पुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के ही है

..क्या शाजहाँ जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजे हम हिंदुओं के लिए मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता ???

* एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन नही है

*"" गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता""--अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है....

इस अनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन का निर्मांकर्ता नही लिखवा सकता ..और ना ही ये किसी के निर्मांकर्ता होने का सबूत देता है
इसके अलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जो की इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है, और ऐसे ही हिंदू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके हिंदुओं का नाम ही इतिहास से हटा दिया गया है, अगर हिंदू नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे......ताकि हम हमेशा ही अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके...

सही है ना ???..लेकिन कब तक अपने धर्म को ख़तम करने वालो की पूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान हिंदू शासकों के नाम भुलाते रहोगे..
ऐसे ही....??????? -

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