समाज के लोगों की निष्क्रियता



चलिए कुछ विश्लेषन करते है देश के उन लोगो का जो राजनीति को कीचड़ समझते है और राजनीति से दूर रहकर खुद को पाकसाफ रखने की कोशिश मे लगे है ! या फिर वो सिस्टम मे रहकर सिस्टम से लड रहे है उन्हे देश प्यारा है या अपना व्यक्तित्व आप खुद फैसला करे ! पर कुछ लोग कम से कम उन लोगो से तो बेहतर है जो कुछ भी नही कर रहे ! या सिर्फ घर बैठकर राजनीति को दोष दे देते है ना तो खुद कुछ करते है और दूसरा कोई करने की कोशिश करता है तो उसकी टांग खींचते है !
> क्या राजनीति का मतलब सिर्फ लूट, भ्रष्टाचार, दमन और अत्याचार है ?
> क्या राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता की मलाई चाटना भर रह गया है ?
> क्या राजनीति का मतलब सिर्फ पैसे और ताक़त के बलबूते पर जनमानस को दबाना है ?
> क्या राजनीति का मतलब सिर्फ संसद में वोटों की खरीद-फरोख्त कर कुर्सी बचाना है ?
> क्या राजनीति का मतलब कुछ परिवारों की वंशवाद की जहरीली बेल का पोषण है ?
> क्या राजनीति का मतलब अवैध तरीके से धन, जमीं और सम्पति की अनुचित लूट है ?

लोगों को इसके खिलाफ बोलना चाहिए क्यूकि

द्रोपदी के चीरहरण पर चुप रहने वाले भीष्म की वजह से महाभारत हुआ और सर्वनाश की नीव रक्खी गयी ! अगर उस समय भीष्म विरोध करते तो शायद इतना बड़ा नरसंहार ना हुआ होता ! अपनी निजी प्रतिग्या के चलते भारत वर्ष की हानि के जिम्मेदारो मे वो हमेशा रहेंगे ! क्योंकि कौरव तो पापी थे ही किन्तु जो लोग उन्हे रोक सकते थे वो खुद चुप बैठे रहे !
क्यों नहीं अच्छे लोग राजनीती में आते ? क्या एक छोटे से जख्म को नासूर बन जाने दिया जाये? क्या इस मुल्क के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नही बनती? क्या जिस सरजमीं को हम “माँ” कहते और मानते है तो ये हमारा फ़र्ज़ नहीं बन जाता कि हम उसकी अस्मिता, गौरव, वैभव और शान को नुक्सान पहुँचाने वाले किसी भी नापाक हाथ तो रोक लें ? क्या अच्छाई पर बुराई को राज करने दिया जाये ?
क्या करोड़ों लोगों को अब भी भूखा ही सोने दें ? क्या लाचार बच्चियों और महिलायों को यूँ ही हवास का शिकार होने दें ? क्या यूँ ही करोड़ों लोगों को खुले आसमान के नीचे ठण्ड और गर्म लू से तड़प तड़प कर मरने दें? क्या यूँ ही अपने सैनिकों के सिर काटने दें ? क्या यूँ ही बिना हस्पताल के इलाज़ के लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने दें ? क्या यूँ ही बिना अच्छी सड़क, बिजली, पानी , स्कूल के करोड़ों लागों को बस जानवरों की तरह जीने दें ?
आखिर कब तक सिर्फ साल में एक बार दशहरा के दिन इस मुल्क के अच्छे लोग ” बुरे पर अच्छाई की”, असत्य पर सत्य की”, अधर्म पर धर्म की” जीत के इतिहास को याद कर खुश होते रहेंगे या कभी ऐसा भी होगा कि वो लोग खुद भी एक नया इतिहास बनायेंगे ?
क्यों नहीं इस आम जनता में से ही कोई नया भगवान राम या कृष्ण सा अवतार पैदा होकर अन्याय, अधर्म, असत्य, असमानता, अत्याचार का नाश करता ? क्यों नहीं अब देश में अच्छे लोग आगे बढ़कर हनुमान जी और सुग्रीव की तरह इस नए अवतार का साथ देते ताकि पाप की लंका को नेस्तनाबूद किया जा सके ?

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