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#कब_लेंगे_सबक
#भारत_में_गृह_युद्ध_जैसे_हालात_न_बनने_दें_सीरिया_न_बनने_दे;

राजनीति में हर कोई राजनेता आज अपनी दाल गलाने पर उतारू हैं, उसे तो बस वोट चाहिए चाहें हिंसा से ही क्यू न मिले। बस विजयश्री मिलनी चाहिए।
भारत में भी निचली और पिछड़ी और उच्च जातियों के बीच और धर्मों के बीच संघर्ष चला आ रहा है. यह सब धर्म की सीख के प्रचारप्रसार के बावजूद हो रहा है. हर धर्म में हजारों नए धर्मगुरु पैदा हो गए हैं जो अपने अनुयायियों को धर्म के रास्ते पर चलने की सीख देते रहते हैं. यह धर्म का रास्ता कैसा है जहां आपस में प्रेम, शांति, भाईचारे की जगह परस्पर एकदूसरे की जानें ली जा रही हैं. साफ है जातीय, धार्मिक, नस्लभेद दुनिया की कड़वी सचाईर् है. धर्म ने मानवता को अलगअलग ही नहीं किया, खत्म भी किया. भारत में गृहयुद्ध जैसी यह स्थिति मुगलों और अंगरेजों के समय भी थी लेकिन उन शासकों ने गृहयुद्ध को थामे रखा.. !!! हिंदू शासक खुद बंटे रहे और अपना अपना साम्राज्य विस्तार तथा एकदूसरे को लूटने में जुटे रहे. आजादी के बाद आई सरकारों ने जाति, धर्म की हिंसा से कोई सबक नहीं लिया जबकि वोटों के लिए जातिवाद को प्रश्रय दिया. जातीय, धार्मिक संगठन खड़े हो गए. हिंदुओं में आजादी से पहले की हिंदू महासभा, मुसलिम लीग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाद में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, जमात-ए-इस्लाम के साथ साथ अन्य कई जातियों के संगठन बने और मजबूत होते गए.!! इन के नेता बेखौफ हो कर एकदूसरे के खिलाफ आग उगलने लगे.!
दलितों और पिछड़ों को लीडरशिप तो मिल गई पर वे खुद को ब्राह्मण समझने लगे और अपनी ही जातियों के अंदर एक नई वर्णव्यवस्था कायम कर ली. दलितों में जो थोड़ा ऊपर उठ गए वे सवर्ण बन बैठे, पिछड़ों में जिन के पास पद, पैसा आ गया, वे ब्राह्मण बन गए. वे अपनी जाति के गरीबों पर अत्याचार करने में जुट गए. असल में यह हिंसा इसलिए बढ़ रही है क्योंकि अब समाज में विचारकों की कमी हो गई है. जो बचे हैं उन की आवाज दबी पड़ी है. आगे बढ़ने की अंधी होड़ में हम अपने को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं. दूसरा, सरकारों ने निचली जातियों की परवा करनी छोड़ दी है. अब सरकारें अमीरों, कौर्पोरेटों के साथ हो गई हैं. हिंसा करने वाली जातियां और संप्रदायों को रोकना अब मुश्किल है. 18 फीसदी मुसलिमों को रोकना आसान नहीं है, पिछड़ों में ताकतवर जाटों, पटेलो ,यादवों, ऊंचे पद और पैसा पा गए दलितों को दबाना अब मुश्किल हो गया है. जातियों की आपसी हिंसा पैसा और राजनीतिक ताकत के बल पर बढ़ रही है. क्या अब देश में गृहयुद्ध के हालात को रोका जा सकेगा?

#बदलाव_की_दरकार;

हर देश में धार्मिक, जातीय, सांप्रदायिक संगठन मजबूत हो रहे हैं. इन्हें सरकारों और राजनीतिक दलों का भरपूर समर्थन मिल रहा है. लोग धर्र्म परिवर्तन कर लेते हैं पर वे अपनी सोच नहीं बदलते. एक ही धर्म होने के बावजूद अलगअलग जातियों का अलगअलग आंगन, मैदान, कुआं, नल, तालाब, पूजा का स्थान होगा. यह हर धर्म में है. मजे की बात यह है कि मजहब, जाति, हिंसा की प्राचीनतम मानसिकता, विचारों को नए वैज्ञानिक युग की आधुनिक विचारधारा भी नहीं तोड़ पाईर् है. ऐसे में भारत सहित दुनिया में चल रहे गृहयुद्ध के हालात कैसे खत्म होंगे, यह सवाल बना हुआ है. गृहयुद्ध की स्थिति से उबरने के लिए देश को जातियों, धर्मों के बीच व्याप्त असंतोष को खत्म करना होगा. हर व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग से ताल्लुक रखता हो, बराबरी का हक मिले. समानता का व्यवहार मिले लेकिन धर्म, जाति का स्वभाव इस के विपरीत गैर बराबरी वाला है. इस व्यवहार में बदलाव से ही शांति, तरक्की कायम हो सकती है.।।।।
हां खुद समझदारी से काम लें और दूसरे के बहकावे खासकर नेताओं के , न आये।
भारत में रहने वाला हर व्यक्ति भारतीय हैं।
°°°°°जय हिन्द 🇮🇳°°°°°अशोक कुमार वर्मा

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