![]() |
http://ashok68.blogspot.com |
कैसे-कैसे ,ऐसे-वैसे लोग राजनीति में आ गए और एक हम हैं कि पढ़ते-पढ़ते सबकुछ गंवा बैठे
- ट्रांसपेरेंसी और ईमानदारी का नारा देने वाले लोग आज सबसे ज्यादा भ्रष्ट हो चुके हैं।
-कभी एक कमरों के घर में रहने वाले लोग देखते ही देखते हजारों करोड़ के मालिक हो गए।
- कभी स्कूटर पर चलने वाले लोगों की तो पूछो मत। कौन-सा ऐसा शहर नहीं जहां उन्होंने अपनी बेनामी प्रॉपर्टी का निवेश नहीं किया। भले ही कुत्ते के नाम पर ही सही।
- जिनकी हैसियत साइकिल खरीदने की नहीं थी वो आज हेलिकॉप्टर पर घूमते हैं।
- 30 साल तक लगातार मेहनत करो और फिर आप कोई नौकरी कर पाएंगे।
-वहीं, दूसरी तरफ राजनीति में नेताजी के आगे-पीछे चलने वाला या थोड़ा समय देने वाला अगर मुखिया या पार्षद भी बन जाता है तो सालभर के अंदर करोड़पति बन जाता है। यह वैसे ही है जैसे कोई बड़ा जंगली जानवर छोटे-छोटे जानवरों के लिए शिकार में से कुछ हिस्सा छोड़ देता है, जिसे वो या तो खा नहीं पाता या अपनी तौहीन समझता है। आखिर, सियारों का भी तो हिस्सा होना ही चाहिए न। प्रजातांत्रिक सोच है ये।
- विधायक, विधानपार्षद, राज्यसभा और लोकसभा सांसद बनने के बाद तो पूछिए मत और कहीं मंत्री या किसी सरकारी संस्था के सदस्य बन गए तो फिर वारे-न्यारे तय है। सात पुश्तों को सोचने की जरूरत नहीं रहती।
- शराब और हवाला के कारोबार में लगे लोग सामाजिक न्याय का नारा देते हैं।
आप लड़िए, धर्म, जाति और संप्रदाय को लेकर तब तक नेताजी अपने पुश्तों की व्यवस्था कर रहे होते हैं।
![]() |
http://ashok68.blogspot.com |