#भूत_की_आत्मकथा;
मैं एक भूत हूँ |
बरसों से मैं इसी पेड़ के नीचे बैठा हूँ |
कितना समय बीत गया है यहाँ बैठे-बैठे, इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं | ५ वर्ष या ५० वर्ष, मुझे सब समान लगने लगा है | मुझे पता है तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा होगा कि इस दुनिया में भूत भी हो सकते हैं | मुझे भी नहीं था जब तक मैं जीवित था |
मेरे पिता एक धनी व्यक्ति थे | इसलिए मैंने अपने जीवन में कभी कोई जिम्मेदारी नहीं ली | हमेशा घूमना-फिरना मौज-मस्ती ही मेरा जीवन था | मित्रों के साथ मैं पूरी दुनिया घूमा हूँ | अच्छे कपड़े पहनना, बड़े होटलों में खाना इन सब चीजों का मुझे बहुत शौक था | मेरी मृत्यु भी मेरे शौक के कारण ही हुई |
एक पार्टी में शामिल होने की जल्दबाजी में मैं गाड़ी बहुत तेज चला रहा था | सामने से आती हुई एक बस की गति का मैं ठीक से अंदाजा नहीं लगा पाया और मेरी गाड़ी उससे टकरा गई | उसके बाद क्या हुआ इसका मुझे पता नहीं | फिर अचानक एक दिन मैं जागा | मुझे लगा किसी गहरी नींद से सोकर उठा हूँ | कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा था | आसपास देखा तो मेरे माता-पिता बिलख-बिलखकर रो रहे थे | मेरे दादा-दादी, भाई-बहन सबकी आँखों में आँसू थे | पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि क्या हो रहा है | जब मैंने ध्यान दिया तो देखा कि मैं तो उनके पास ही लेटा हूँ | मुझे ही देख कर सब दुखी हो रहे हैं |
कुछ क्षण के लिए तो मेरा सिर चकरा गया कि मैं एक साथ दो जगह कैसे ? मैनें तुरंत अपनी माँ को यह बताने की कोशिश की पर वह मेरा बोलना सुन नहीं पा रही थी | मैंने एक-एक कर सब से बात करने का प्रयत्न किया पर कोई भी मुझे सुन नहीं पा रहा था | मैंने लोगों को छूने का प्रयत्न किया पर न मैं उन्हें महसूस कर पा रहा था न वो मुझे | आसपास के लोगों को सफेद कपड़ो में देख कर, उन्हें मेरे माता-पिता को मेरी मृत्यु पर दिलासा देते देख कर मुझे समझ आया कि मेरी मृत्यु हो चुकी है | मेरा शरीर सामने पड़ा था और मैं उससे बाहर | मैं एक भूत बन चुका था |
इस सत्य ने मुझे पूरी तरह हिला कर रख दिया | न मैं किसी से बात कर सकता था न कुछ खा सकता था और न ही कुछ महसूस कर सकता था | भूख तो लगती भी नहीं थी किंतु खाने की इच्छा बहुत होती थी | माता-पिता से बात न कर पाने का दुख, मित्रों से बोल न पाने का दुख सहना मेरे लिए बहुत कठिन था |
मैं कई वर्षों तक अपने परिवार के आसपास भटकता रहा | होटलों के आसपास चक्कर काटता रहा | अपनी जान पहचान वाले कई लोग दिख जाते पर कोई मुझे नहीं देख पाता | मेरे दुख का कोई पारावार न था |
एक दिन मैंने मेरे परिवार वालों को बात करते सुना कि जिस बस के साथ मेरी दुर्घटना हुई थी उसके ड्राइवर को ७ वर्ष की जेल हो गई है | यह सुनकर तो मुझ पर बिजली टूट पड़ी | मेरे कारण वह बेचारा जेल जाएगा | मेरी गलती की सजा उसको मिल रही है | मैंने अपने माता-पिता को पुलिस को सच बताने का बहुत प्रयत्न किया, पर कोई फायदा नहीं | भूत की आवाज कोई नहीं सुन सकता |
अपनी परिस्थिति से दुखी होकर मैं कई वर्ष पूर्व इस पीपल के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया | तब से न जाने कितने वर्ष बीत गए, इसका कोई अंदाजा नहीं | मुझे आज तक कोई दूसरा मेरे जैसा नहीं दिखा | मैं कब तक ऐसा रहूँगा ? मेरा भविष्य क्या होगा ? इसका भी मुझे पता नहीं | मैं दिन-रात ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि मुझे इस भूत वाले जीवन से मुक्ति मिले | मेरी आत्मकथा सुनने के बाद आशा है आप भी भगवान से मेरी मुक्ति के लिए प्रार्थना करेंगे |
और गाड़ी धीरे चलाएंगे।
Leave-Sooner
Drive- Slower
Live-Longer
By-अशोक कुमार वर्मा
मैं एक भूत हूँ |
बरसों से मैं इसी पेड़ के नीचे बैठा हूँ |
कितना समय बीत गया है यहाँ बैठे-बैठे, इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं | ५ वर्ष या ५० वर्ष, मुझे सब समान लगने लगा है | मुझे पता है तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा होगा कि इस दुनिया में भूत भी हो सकते हैं | मुझे भी नहीं था जब तक मैं जीवित था |
मेरे पिता एक धनी व्यक्ति थे | इसलिए मैंने अपने जीवन में कभी कोई जिम्मेदारी नहीं ली | हमेशा घूमना-फिरना मौज-मस्ती ही मेरा जीवन था | मित्रों के साथ मैं पूरी दुनिया घूमा हूँ | अच्छे कपड़े पहनना, बड़े होटलों में खाना इन सब चीजों का मुझे बहुत शौक था | मेरी मृत्यु भी मेरे शौक के कारण ही हुई |
एक पार्टी में शामिल होने की जल्दबाजी में मैं गाड़ी बहुत तेज चला रहा था | सामने से आती हुई एक बस की गति का मैं ठीक से अंदाजा नहीं लगा पाया और मेरी गाड़ी उससे टकरा गई | उसके बाद क्या हुआ इसका मुझे पता नहीं | फिर अचानक एक दिन मैं जागा | मुझे लगा किसी गहरी नींद से सोकर उठा हूँ | कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा था | आसपास देखा तो मेरे माता-पिता बिलख-बिलखकर रो रहे थे | मेरे दादा-दादी, भाई-बहन सबकी आँखों में आँसू थे | पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि क्या हो रहा है | जब मैंने ध्यान दिया तो देखा कि मैं तो उनके पास ही लेटा हूँ | मुझे ही देख कर सब दुखी हो रहे हैं |
कुछ क्षण के लिए तो मेरा सिर चकरा गया कि मैं एक साथ दो जगह कैसे ? मैनें तुरंत अपनी माँ को यह बताने की कोशिश की पर वह मेरा बोलना सुन नहीं पा रही थी | मैंने एक-एक कर सब से बात करने का प्रयत्न किया पर कोई भी मुझे सुन नहीं पा रहा था | मैंने लोगों को छूने का प्रयत्न किया पर न मैं उन्हें महसूस कर पा रहा था न वो मुझे | आसपास के लोगों को सफेद कपड़ो में देख कर, उन्हें मेरे माता-पिता को मेरी मृत्यु पर दिलासा देते देख कर मुझे समझ आया कि मेरी मृत्यु हो चुकी है | मेरा शरीर सामने पड़ा था और मैं उससे बाहर | मैं एक भूत बन चुका था |
इस सत्य ने मुझे पूरी तरह हिला कर रख दिया | न मैं किसी से बात कर सकता था न कुछ खा सकता था और न ही कुछ महसूस कर सकता था | भूख तो लगती भी नहीं थी किंतु खाने की इच्छा बहुत होती थी | माता-पिता से बात न कर पाने का दुख, मित्रों से बोल न पाने का दुख सहना मेरे लिए बहुत कठिन था |
मैं कई वर्षों तक अपने परिवार के आसपास भटकता रहा | होटलों के आसपास चक्कर काटता रहा | अपनी जान पहचान वाले कई लोग दिख जाते पर कोई मुझे नहीं देख पाता | मेरे दुख का कोई पारावार न था |
एक दिन मैंने मेरे परिवार वालों को बात करते सुना कि जिस बस के साथ मेरी दुर्घटना हुई थी उसके ड्राइवर को ७ वर्ष की जेल हो गई है | यह सुनकर तो मुझ पर बिजली टूट पड़ी | मेरे कारण वह बेचारा जेल जाएगा | मेरी गलती की सजा उसको मिल रही है | मैंने अपने माता-पिता को पुलिस को सच बताने का बहुत प्रयत्न किया, पर कोई फायदा नहीं | भूत की आवाज कोई नहीं सुन सकता |
अपनी परिस्थिति से दुखी होकर मैं कई वर्ष पूर्व इस पीपल के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया | तब से न जाने कितने वर्ष बीत गए, इसका कोई अंदाजा नहीं | मुझे आज तक कोई दूसरा मेरे जैसा नहीं दिखा | मैं कब तक ऐसा रहूँगा ? मेरा भविष्य क्या होगा ? इसका भी मुझे पता नहीं | मैं दिन-रात ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि मुझे इस भूत वाले जीवन से मुक्ति मिले | मेरी आत्मकथा सुनने के बाद आशा है आप भी भगवान से मेरी मुक्ति के लिए प्रार्थना करेंगे |
और गाड़ी धीरे चलाएंगे।
Leave-Sooner
Drive- Slower
Live-Longer
By-अशोक कुमार वर्मा