आप_स्वाभिमानी_हैं_या_अभिमानी_अपने_आप_को_परखिये;
एक जगह बाढ़ आई थी समाज सेवी संस्थायें बाढ़ पीड़ितों को सहायता का वितरण कर रहीं थी कुछ स्वयं सेवक एक वृद्धा की झोपड़ी में पहुँच कर उसे सहायता देने का प्रस्ताव रखा उसने बड़े प्रेम से मना कर दिया बोली बेटा मैं पिछले बीस वर्षों से अपनी मेह्नत की कमाई खा रही हूँ ,मुझे आपकी सहायता नहीं चाहिए। स्वयं सेवक आवाक थे एवं उस वृद्धा के स्वाभिमान के आगे नतमस्तक।
स्वाभिमान व्यक्ति को स्वावलम्बी बनता है जबकि अभिमानी हमेशा दूसरों पर आश्रित रहना चाहता है। स्वाभिमान एवं अभिमान के बीच बहुत पतला भेद है। इन दोनों का मिश्रण व्यक्तित्व को बहुत जटिल बना देता है। दूसरों को कमतर आँकना एवं स्वयं को बड़ा समझना अभिमान है।एवं अपने मूलभूत आदर्शों पर बगैर किसी को चोट पहुंचाए बिना अटल रहना स्वाभिमान है। अभिमानी व्यक्ति अपने आपको स्वाभिमानी कहता है किन्तु उसके आचरण,व्यवहार एवं शब्दों से दूसरे लोग आहत होते हैं। अभिमानी अन्याय करता है और स्वाभिमानी उसका विरोध। स्वाभिमानी दूसरों का अधिपत्य खत्म करता है जबकि अभिमानी अपना अधिपत्य स्थापित करता है। रावण अभिमानी था क्योंकि वह सब पर अधिकार जमाना चाहता था ,कंस अभिमानी था क्योंकि वह आतंक के बल पर राज करना चाहता था। राम ने रावण के अधिपत्य को समाप्त किया तथा कृष्ण ने कंस के आतंक को ,इसलिए राम और कृष्ण दोनों स्वाभिमानी थे।
अपने कार्यों का प्रतिफल सभी अन्य लोगों की सहायता मानता है उसका स्वाभिमान अभिमान में परिवर्तित नहीं होता है तथा उसके अंदर स्वाभिमान और अभिमान को परखने की प्रवृति जाग्रत होती है।
मेरा एक मित्र कभी किसी की सहायता स्वीकार नहीं करता चाहे कितनी भी कठिन परस्थितियां क्यों न हों वह हमेशा अकेला ही उनका सामना करता है। लोग कहते हैं की वह अभिमानी है लेकिन वह कहता है की वह स्वाभिमानी है। भौतिक सम्पदा ,धन,बल,सम्पत्ति ,भूमि आदि अभिमान को जाग्रत करती हैं।
महात्मा विदुर ने किसी प्रसंग में कहा है "बुढ़ापा रूप को ,आशा धैर्य को,मृत्यु प्राण को,क्रोध श्री को,काम लज्जा को एवं अभिमान सर्वस्य को हरण कर लेता है।
संतान की उपलब्धियां,ज्ञान,विद्या आदि अभिमान का कारण है किन्तु इनकी प्राप्ति के बाद विनम्रता एवं शीलता आती है तो वह स्वाभिमान का प्रेरक मानी जाती है। जितने भी महान वैज्ञानिक ,दार्शनिक एवं राजनेता हुए हैं उनमे अभिमान लेशमात्र भी नहीं था इसलिए वो महान कहलाये। अभिमान अपनी सीमाओं को लाँघ कर दूसरे की सीमाओं में प्रवेश करता है जबकि स्वाभिमानी अपनी और दूसरों की सीमाओं के प्रति सतर्क एवं जागरूक होता है।
लघुत्व से महत्व की और बढ़ना स्वाभिमान होने की निशानी है जबकि महत्व मिलने पर दूसरों को लघु समझना अभिमानी होने का प्रमाण है। अभिमान में व्यक्ति अपना प्रदर्शन कर दूसरों को नीचे दिखने की कोशिश करता है इसलिए लोग उससे दूर रहना चाहते हैं सिर्फ चाटुकार लोग ही अपने स्वार्थ के कारण उसकी वह वाही करते हैं इसके विपरीत स्वाभिमानी व्यक्ति दूसरों के विचारों को महत्व देता है इसलिए लोग उसके प्रशंसक होते हैं।
अच्छा श्रोता होना स्वाभिमान का लक्षण है क्योंकि वह सोचता की मुझे लोगों से बहुत कुछ ग्रहण करना है। प्रत्येक उपलब्धि के नीचे अहंकार का सर्प होता है उसके प्रति सदैव सावधान रहकर ही आप उसके दंश से बच सकते हैं। स्वाभिमान हमेशा स्वतंत्र का पक्षधर रहता है इसलिए स्वाभिमानी स्वतंत्रता के लिए लड़ते हैं जबकि अभिमानी अपने को स्वतंत्र रख कर दूसरों की गुलामी का पक्षधर है।
अहंकार के रास्ते बड़े सूक्ष्म होते हैं कभी यह त्याग के रास्ते आता है, कभी विनम्रता के, कभी भक्ति के, तो कभी स्वाभिमान के, इसकी पहचान करने का एक ही तरीका है जहां भी “मैं” का भाव उठे वहां अहंकार जानना चाहिए। स्वाभिमान हमारे डिगते कदमों को को ऊर्जावान कर उनमें दृढ़ता प्रदान करता है। कठिन परिस्थितियों और विपन्नावस्था में भी स्वाभिमान हमें डिगने नहीं देता।अभिमान अज्ञान के अंधेरे में ढकेलता है। अभिमान मिथ्या ज्ञान, घमंड और अपने को बड़ा ताकतवर समझकर झूठा व दंभी बनाता है। व्यक्ति को अपने ‘ज्ञान’ का ‘अभिमान’ तो होता है लेकिन अपने ‘अभिमान’ का ‘ज्ञान’ नहीं होता है। अपने स्वाभिमान को जांचते रहिये कहीं ये अभिमान में तो नहीं बदल रहा है ?
जय हिन्द!!!