राफेल सौदा : विवाद




न खाऊँगा न खाने दूंगा, – प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ही कहा था. अब कहते हैं एक पूर्व प्रधान मंत्री थे, वे कहते थे कि – हम केंद्र से एक रुपया भेजते हैं तो गरीब जनता तक १५ पैसे ही पहुंचता है. अब गरीबों के खाते में पूरा एक रूपया यानी सौ प्रतिशत जा रहा है. यह बात भी कितना सही है? उपभोक्ता ही बता सकते हैं. उन्ही पूर्व प्रधान मंत्री पर बोफोर्स तोप सौदे पर दलाली और भ्रष्टाचार का आरोप लगा था. उन्होंने संसद में सफाई दी थी “अगर दलाली ली भी गयी है तो उसमे मैं और मेरा परिवार शामिल नहीं है”. यह सभी जानते हैं कि आजतक उस बोफोर्स दलाल को कोई सजा नई हुई. अलबत्ता उस बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल कारगिल युद्ध में हुआ और तोपें कारगर साबित हुई.
रक्षा सौदे में दलाली कोई नई बात नहीं है. ताबूत घोटाला एन डी ए सरकार के समय में ही हुए. तहलका कांड उसी समय हुआ था. और भी कई घोटाले सुर्खियाँ बंटे रहे हैं. कभी कोई बाख जाता है कभी किसी की बलि चढ़ जाती है. राजीव गाँधी की सरकार की बलि चढ़ गए थी. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्टिंग ऑपरेशन में नोट गिनते पकडे गए तो इस्तीफ़ा देना पड़ा. केन्द्रीय मंत्री जूदेव को भी इस्तीफ़ा देना पड़ा था. पर किसी ने भी अटल बिहारी बाजपेयी की तरफ उंगली नहीं उठाया.
अब आते हैं मुख्य मुद्दा राफेल सौदे पर. राफेल सौदे को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद भारत में सियासी घमासान मच गया है. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का कहना है कि अनिल अंबानी के रिलायंस का नाम उन्हें भारत सरकार ने सुझाया था. उनके पास और कोई विकल्प नहीं था. बयान के बाद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला कर पूछा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने जो कहा है वह सही है या नहीं. पीएम मोदी को इस पर सफाई देनी चाहिए. राहुल गांधी ने कहा कि ‘फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे पास कोई च्वाइस नहीं थी. हमें एक विकल्प दिया गया था. इसका मतलब है कि वे कह रहे हैं कि भारत के प्राइम मिनिस्टर चोर हैं. पहली बार कोई पूर्व राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री को चोर कह रहा है. यह गरिमा पर चोट है. यह किसी सामान्य व्यक्ति ने नहीं कहा, बल्कि पूर्व राष्ट्रपति ने कहा. पीएम को इस पर अपनी सफाई देनी चाहिये, यह सच है या नहीं. २२ सितम्बर को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल सौदे पर ट्वीट कर कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी और अनिल अंबानी ने संयुक्त रूप से रक्षा बलों पर एक लाख 30 हजार करोड़ की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपने हमारे जवानों की शहादत का अपमान किया, आपने भारत की आत्मा से धोखा किया है.’ ‘अब साफ हो गया है कि देश का चौकीदार चोर है. यह देश की जनता के दिमाग में घुस गया है. पीएम इस पर सफाई दें, लेकिन उनके मुंह से आवाज नहीं निकल रही है. उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री सीतारमण कहती हैं कि मैं पूरे देश को राफेल का दाम बता दूंगी, फिर कहती हैं कि यह सिक्रेट है. मैंने पार्लियामेंट में कहा कि मेरी मैंक्रोन के साथ मीटिंग हुई और उन्होंने कहा कि भारत सरकार रेट बता सकती है.’


उन्होंने आगे कहा कि ‘1600 करोड़ रुपये में जहाज खरीदा. अनिल अंबानी ने 12 दिन पहले कंपनी बनाई. एचएएल से कांट्रेक्ट छीना. रक्षामंत्री कहती हैं कि एचएएल यह नहीं कर सकता है, जबकि एचएएल ने कहा कि वे विमान बना सकते हैं. सब झूठ बोल रहे हैं.’ ‘नरेंद्र मोदी ने स्वयं अंबानी को कांट्रेक्ट दिया. पीएम मोदी ने हिंदुस्तान के लोगों की जेब से पैसा निकाला और अनिल अंबानी की जेब में डाला. राहुल गांधी ने आरोप लगाया, ‘प्रधानमंत्री ने बंद कमरे में राफेल सौदे को लेकर बातचीत की और इसे बदलवाया. फ्रांस्वा ओलांद का धन्यवाद कि अब हमें पता चला कि उन्होंने (मोदी) दिवालिया अनिल अंबानी को अरबों डॉलर का सौदा दिलवाया.’
फ्रांसीसी मीडिया के मुताबिक ओलांद ने कथित तौर पर कहा है कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपये के राफेल विमान सौदे में फ्रांस की विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविएशन के ऑफसेट साझेदार के तौर पर रिलायंस डिफेंस का नाम प्रस्तावित किया था और ऐसे में फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था. उनके इस खुलासे के बाद रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ओलांद के बयान की जांच की जा रही है और यह भी कहा गया कि व्यापारिक सौदे में सरकार की कोई भूमिका नहीं है. राफेल डील को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के ख़ुलासे के बाद अब डसाल्ट एविएशन (राफेल की निर्माता कंपनी) ने इस मामले पर बयान जारी कर कहा है कि यह दो सरकारों के बीच समझौता है. इसके अलावा ऑफ़सेट पार्टनर चुनने के लिए अलग समझौते का प्रावधान है. राफेल डील को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के ख़ुलासे के बाद इस मामले पर फ्रांस ने कहा कि फ्रांस की सरकार किसी भी तरह से फ्रेंच कंपनी की ओर से चुनी गई, चुनी जा रही या चुने जाने वाले भारतीय पार्टनर के चयन में शामिल नहीं है.
राफेल सौदे (Rafale Deal) को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार मोदी सरकार पर हमला बोल रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हमले के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल ने कई ट्वीट कर मोदी सरकार पर हमला बोला है और इस मामले में तीन सवाल पूछे हैं.



1. आपने ये ठेका अनिल अम्बानी को ही क्यों दिलवाया? और किसी को क्यों नहीं?
2. अनिल अम्बानी ने कहा है कि उनके आपके साथ व्यक्तिगत सम्बंध हैं।क्या ये सम्बंध व्यवसायिक भी हैं?
3. राफ़ेल घोटाले का पैसा किसकी जेब में गया- आपकी, भाजपा की या किसी अन्य की?
राफेल डील को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के ख़ुलासे के बाद एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. यूपीए सरकार जब पहली बार फ्रांस की कंपनी दसाल्ट एविएशन से राफेल विमानों की खरीद को लेकर बातचीत कर रही थी तभी हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटिड (HAL) और दसाल्ट के बीच भारत में इन जंगी विमानों के उत्पादन को लेकर ‘गंभीर मतभेद’ थे. बता दें कि अप्रैल 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए थे तब फ्रांस्वा ओलांद ही राष्ट्रपति थे. उन्हीं के साथ राफेल विमान का करार हुआ था. ‘मीडियापार्ट फ्रांस’ नाम के अख़बार ने पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से पूछा कि रिलायंस को किसने चुना और क्यों चुना तो फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि भारत की सरकार ने ही रिलायंस को प्रस्तावित किया था.
अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी को साझीदार बनाए जाने के कांग्रेस के हमले के बाद अरुण जेटली जो कि वित्त मंत्री हैं वो ब्लॉग लिखते हैं. कहते हैं कि जेटली इसका जवाब देते हैं कि डील में कोई प्राइवेट कंपनी कैसे आ गई. कहते है कि यूपीए के समय ही शर्त बनी थी कि जो मूल निर्माता कंपनी है वो भारत में कलपुर्ज़ों की आपूर्ति या रखरखाव के लिए खुद से भारतीय कंपनी को साझीदार बना सकती है. इसका सरकार से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन इसका जवाब नहीं मिला कि राफेल बनाने वाली डास्सो एविशन कंपनी क्यों एक ऐसी कंपनी को साझीदार बनाएगी, जिसका इस क्षेत्र में अनुभव काफी नया है और आरोप है कि वह कंपनी कुछ ही महीने पहले वजूद में आई है.
प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी लगातार प्रेस कांफ्रेंस करते हैं. राहुल गांधी ने लगातार इस पर कई प्रेस कांफ्रेंस और ट्वीट किए हैं. निर्मला सीतारमण ने भी जवाब देना शुरू किया है. उन्होंने हाल ही में कहा था कि हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड को इसलिए डील से बाहर किया गया, क्योंकि एचएएल के पास क्षमता नहीं थी. लेकिन १० दिन पहले बनाई गयी कपानी के पास क्षमता कहाँ से और कैसे आ गयी ?
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलान्द के बयान के बाद कि अंबानी का नाम भारत सरकार की तरफ से आया था, राफेल विवाद में संदेह की सूई निर्णायक रूप से नरेंद्र मोदी की तरफ़ मुड़ गई है. 10 अप्रैल 2015 को नरेंद्र मोदी और ओलान्द के बीच ही राफेल करार हुआ था. फ्रांस सरकार ने ओलान्द के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की. फ्रांस सरकार के इस बयान के अनुसार अंबानी के नाम की मंज़ूरी भारत सरकार ने दी है. फ्रांस्वा ओलांद के अनुसार अंबानी का नाम भारत सरकार की तरफ से सुझाया गया था. क्या आपको अब भी कोई इसमें अंतर्विरोध दिखता है? क्या अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में यह बताई थी कि अंबानी की कंपनी को मंज़ूरी सरकार ने दी है? अब तो उन्हें एक और ब्लॉग लिखना ही होगा कि अंबानी का नाम भारत की तरफ़ से किसने दिया था?
अनिल अंबानी की कंपनी जुम्मा जुम्मा चार दिन की थी. सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) को 50 से अधिक विमान बनाने का अनुभव है. साठ साल पुरानी यह कंपनी डील के आख़िरी चरण में शामिल है, अचानक ग़ायब कर दी जाती है और अनिल अंबानी की कंपनी साझीदार बन जाती है. जबकि डील से दो दिन पहले भारत के विदेश सचिव HAL के शामिल होने की बात कहते हैं. उसके कुछ दिन पहले डास्सो एविएशन के चेयरमैन कहते हैं कि “हमने रफाएल के बारे में बात की है. हम HAL के चेयरमैन से इस बात पर सहमत हैं कि हम प्रोडक्शन की ज़िम्मेदारियां साझा करेंगे. मैं मानता हूं कि करार अंतिम चरण में है और जल्दी ही इस पर दस्तख़त हो जाएंगे.’
मोदी जी बनारस में बच्चों से कह कर चले आए कि सवाल पूछा करो. क्या अब उन बच्चों को याद दिलाने के लिए लाना होगा कि मोदी जी सवाल पूछा गया है उसका जवाब दिया करो.
अब देखने वाली बात है कि राफेल क्या बोफोर्स साबित होगा या ‘रामजी’ बेड़ा पार करेंगे?

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