जीवन में मिलने वाली असफलताएं कभी भी स्थाई नहीं होतीं | अक्सर हम एक बार असफल हो जाने के बाद पुनः प्रयास करने से डरने लगते हैं | कभी-कभी तो यह भी होता है कि हम बेहद अच्छा काम करने के बाद भी असंतुष्ट रहते हैं या किसी अन्य के विचारों द्वारा परिचालित होने लगते हैं | हमें अपने काम पर विश्वास नहीं होता और दूसरों से राय मांगने लगते हैं | ऐसे में यदि दूसरे लोग सराहना करते हैं तो हम उत्साहित हो उठते हैं लेकिन यदि वे ज़रा भी कमियां निकाल दें तो हम नेगेटिव में चले जाते हैं | हम अपना उत्साह खो बैठते हैं | हमें अपने भीतर कमियां ही कमियां नज़र आने लगतीं हैं | लेकिन इस तरह के विचार सिर्फ हमारे पैर में पड़ी बेड़ियों का ही काम करते हैं | हमें इनसे बाहर निकलना चाहिए|
अपने काम के प्रति पॉजिटिव रवैया रखें और निरंतर आगे बढ़ते रहें | कभी ये न सोचें कि कोई क्या कहेगा... क्या मैं ऐसा कर भी पाऊँगा... क्या मेरे काम की तारीफ होगी... आदि | हमें अपना बैस्ट करना चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह या आशंका के | बाकी की सारी चिंताएं तो बस बेड़ियों के सामान हैं जो हमने खुद अपने पैरों में डाल रखी हैं | हम इन बेड़ियों में अपनी मर्ज़ी से ही जकड़े हुए हैं क्योंकि यदि हम एक बार ठान लें तो ये झूठी बेड़ियाँ झट टूट जाएँ, क्योंकि ये मात्र हमारा वहम हैं | ऐसी कोई बेड़ियाँ हैं ही नहीं|
एक वाकया है – एक धोबी था | वह अपने गधे को रोज अपने साथ ले जाता |उससे कम लेता, बोझा उठवाता और फिर शाम को अपने दरवाज़े पर बांध देता |वह गधा भी अपने मालिक का आज्ञाकारी था | एक दिन वह धोबी कुछ सामन लेने अपने गधे को साथ लेकर शहर गया | पूरे दिन दोनों बाज़ार की ख़ाक छानते रहे | धोबी थककर चूर हो चुका था | उसने एक धर्मशाला में जाकर आराम करने का विचार किया | अब समस्या थी गधे की | गधे को बाँधने के लिए जो रस्सी वह लाया था, न जाने कहाँ खो गई थी | शहर भी अनजना और गधा एक जानवर ! अब इसे कहाँ सुरक्षित रखा जाए ! रात में कहीं इधर उधर चला गया तो मुसीबत हो जाएगी | वह इसी उधेड़बुन में था तभी एक बुज़ुर्ग उसके पास आए और उसकी परेशानी का कारण पूछा | उसने अपनी समस्या उन बुज़ुर्ग को बताई |
बुज़ुर्ग ने समझाया- “यह गधा है, तुम्हारी तरह समझदार नहीं | तुम एक काम करो इसके गले में और पैर में रस्सी बाँधने के अभिनय करो | ...फिर देखो यह कहीं भी नहीं जाएगा |”
व्यक्ति इस युक्ति को सुनकर हैरान हो गया किन्तु इस वक्त इसे ही मानने के अलावा और कोई चारा नहीं था इसलिए गधे के साथ वैसा ही अभिनय करने लगा जैसा बुज़ुर्ग ने कहा था| बुज़ुर्ग हँसते हुए चले गए | धोबी भी सोने चला गया |सुबह बड़े तड़के उसकी आँख खुल गई| वह घबराया हुआ बाहर आया | उसे चिंता थी कि कहीं उसका गधा रात को चला न गया हो, आखिर था तो जानवर ही न ! किन्तु उसके आश्चर्य का ठिकाना न था | गधा तो आराम से ज़मीन पर बैठा हुआ था, सर झुकाए | धोबी ने गधे को पुचकारा और आगे की यात्रा के लिए उसे हांकने लगा किन्तु अब वह गधा टस से मस ही न होता था | उसने गुस्से में गधे को मारना शुरू कर दिया लेकिन गधा तो अब भी अपनी जगह से न हिला |धोबी उसकी ढिटाई पर क्रोधित हो उठा और वहीँ पर पड़ी एक बेंत से उसकी पिटाई करने लगा | गधा पिट रहा था, रेंक रहा था लेकिन दो कदम भी आगे को न बढ़ता था | गधे की आवाज़ सुनकर वे बुज़ुर्ग भी वहाँ आ पहुँचे |
बोले – “ये क्या कर रहे हो बेटा ! इस नासमझ को क्यों पीट रहे हो ! तुम्हीं ने तो इसे रात में एक अदृश्य रस्सी से बाँधा था और अब जब ये चल नहीं रहा तो तुन इसे इतनी बेरहमी से पीट रहे हो !”
“लेकिन बाबा मैंने इसे कहाँ बाँधा था ? ये आगे तो बढ़े | खुद-ब-खुद चलने लग जाएगा|”
“बेटा ! यह भोला जीव है हमारी तुम्हारी तरह चतुर नहीं | यह अब भी उस अदृश्य रस्सी से बंधा है | तुम फिर से रस्सी खोलने का अभिनय करो | ...फिर देखना यह तुरंत चल देगा |”
धोबी ने बुज़ुर्ग की बात मानकर वैसा ही किया और सच में इस बार वह गधा एक ही हांक में चल दिया |
मित्रों ! हमारी सोच भी कुछ इसी तरह की होती है | हम अदृश्य चिंताओं से जकड़े रहते हैं | भूतकाल में की गई गलतियों या नाकामियों की जकड़न से बाहर ही नहीं निकलना चाहते | वर्तमान को बोझ-सा बनाए रहते हैं | कभी पुरानी गलतियों पर रोते रहते हैं तो कभी भविष्य की चिंता में गले जाते हैं | जो बीत गया अब उस पर दुःख मनाने का क्या फायदा | बेहतर तो यह हो कि पुरानी गलतियों से सीख लेकर आगे की ओर बढ़ा जाए | इसी प्रकार से जो भविष्य में होने वाला है उसके लिए ख्याली पुलाव न पकाएँ बल्कि पूरे आत्मविश्वास से जुटे रहें और यह विश्वास रखें कि सफलता ज़रूर मिलेगी | यदि हम अपने वजूद पर पड़ी वहम और आशंका की इस जकड़न को... इस रस्सी रूपी बंधन को तोड़कर फेंक देंगे तो हम भी आगे की ओर बढ़ते चले जाएंगे।।