नज़रिया: ‘अमरीका मांग नहीं पा रहा, इसलिए सऊदी अरब को धमका रहा है’

इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि राजशाही में साज़िश होने की संभावना हमेशा ज़िंदा रहती है.
चाहें वो 'गेम्स ऑफ़ थ्रोन्स' का वेस्ट्रॉस हो या फिर सऊदी अरब का राजवंश.
और अगर साम्राज्य क्षेत्रीय और स्थानीय साज़िशों से घिरा हुआ हो तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है.
सऊदी अरब के हालात इससे अलग नहीं हैं. एक मोर्चे पर तो सऊदी अरब की फ़ौज यमन की सेना से लड़ रही है.
वहीं दूसरी ओर असफल होने के बावजूद उसने सीरिया में बशर अल-असद शासन के ख़िलाफ़ भी मोर्चा खोल दिया है।


इसके अलावा सऊदी अरब में 'आंतरिक शक्ति संघर्ष' की भी कोई कमी नहीं है. कई उच्च पदों पर बैठे राजकुमारों की गिरफ़्तारियों ने सऊदी साम्राज्य को भीतर तक हिलाकर रख दिया है.

इससे पहले भी अरब के आंदोलन ने देश के युवाओं में अशांति पैदा कर दी थी.
इन परिस्थितियों में ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सऊदी अरब के शीर्ष नेताओं को मज़बूत सहयोगियों और वैश्विक शक्तियों के सहयोग की ज़रूरत है.
लेकिन जब आपका सबसे बड़ा और ताक़तवर सहयोगी ही आपको चेतावनी देने लगे तो ज़ाहिर तौर पर ये चिंता की एक बड़ी वजह है.
बुधवार को अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ के बारे में एक बयान जारी किया था.
इस बयान में उन्होंने कहा कि अमरीका के सैन्य सहयोग के बिना सऊदी राजवंश दो हफ़्ते से ज़्यादा टिक नहीं सकता.



सऊदी साम्राज्य को अमरीका की ज़रूरत?

क़रीब 90 साल पहले सऊदी अरब को वैश्विक स्तर पर एक पहचान हासिल हुई थी. तेल व्यापार इसका एक बड़ा कारण था.
तभी से सऊदी अरब अधिकांश पश्चिमी देशों का महत्वपूर्ण भागीदार रहा है.
सऊदी अरब के शासकों ने अमरीकी राष्ट्रपतियों के साथ ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण संबंधों का मज़ा लिया है.
सऊदी अरब अमरीका को ये गारंटी देता रहा कि वो तेल की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आने देगा, लेकिन बदले में अमरीका को उनके साम्राज्य की सुरक्षा की गारंटी देनी होगी.
सऊदी अरब में इस वक़्त कितने अमरीकी सैनिक तैनात हैं, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है.
लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सऊदी अरब में फिलहाल 900 से लेकर 4000 के बीच अमरीकी सैनिक तैनात हैं. ये सैनिक सऊदी अरब में रक्षा सहयोग और ट्रेनिंग में जुटे हुए हैं.
इन्हीं सैनिकों में से कुछ को यमन में हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में तकनीकी सहयोग के लिए उतारा गया है.



सऊदी राजवंश की रखवाली कैसे होती है?

सऊदी अरब में सैन्य और राजनीतिक गतिविधियों पर नज़र रखने वाले एक पत्रकार ने बीबीसी को बताया कि "ट्रंप ने जो कुछ भी कहा वो सच है, ये पूरी दुनिया जानती है. सऊदी अरब का शाही परिवार अपने शासन को बढ़ावा देने के लिए अमरीका को एक बैसाखी के तौर पर इस्तेमाल करता है."
लेकिन वो इस बात को लेकर मंथन कर रहे हैं कि आख़िर इस वक़्त ऐसा क्या हुआ है जो अमरीका को ऐसा बयान देना पड़ा.
वो कहते हैं, "इसका एकदम सटीक जवाब तो नहीं दिया जा सकता. लेकिन एक अनुमान लगा सकता हूँ कि उसने ऐसा क्यों किया होगा. वास्तव में ये कोई रहस्य नहीं है. सभी जानते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में सऊदी अरब के शासक अमरीका की मदद पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं."
उन्होंने बताया, "सीरिया और इराक़ की जंग के अलावा, सऊदी अरब और उसके सहयोगी यमन के ख़िलाफ़ जारी संघर्ष में भी बुरी तरह फंसे हुए हैं. असल में सऊदी अरब को ये उम्मीद नहीं थी कि ये संघर्ष इतना लंबा चल जायेगा और इसके इतने दूरगानी परिणाम होंगे."
अपने काम की संवेदनशीलता को देखते हुए इस पत्रकार ने अपनी पहचान छिपाने का आग्रह किया. लेकिन अंत में उन्होंने कहा, "रियाद फिलहाल जिन हालात में है, उनमें उसे अमरीका की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है. लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपने ताज़ा बयान से सऊदी राजशाही को अपनी 'वास्तविकता की परख' करने का एक अच्छा मौक़ा दिया है."


शाही परिवार के 'आंतरिक ख़तरे'?
इस पत्रकार ने बताया कि जिस असामान्य तेज़ी से प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का उत्थान हुआ है और जिस तरह से वो देश में क्रांति लाने की कोशिश कर रहे हैं, उससे शाही परिवार के लिए जोखिम तो बढ़ गये हैं. क्योंकि देश की रूढ़िवादी जनजातीय आबादी प्रिंस सलमान के फ़ैसलों को आसानी से स्वीकार नहीं करेगी.
उन्होंने कहा, "कुछ महीने पहले प्रिंस सलमान ने भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण शाही परिवार के कई सदस्यों की गिरफ़्तारी के आदेश दे दिये थे. लेकिन सच्चाई ये है कि वो उनके प्रतिद्वंद्वियों के ख़िलाफ़ की गई एक कड़ी कार्रवाई से ज़्यादा कुछ नहीं थी."
उन्होंने बताया, "शाही परिवार सुरक्षा के तमाम बड़े प्रयास कर रहा है. बावजूद इसके शाही महल के पास गोलीबारी हुई और ये घटना हाल ही में हुई है. इस घटना के बाद अफ़वाहें उड़ीं कि शाही परिवार के दो महत्वपूर्ण सदस्यों को अमरीकी दूतावास में शिफ़्ट किया गया ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके."
मध्य-पूर्व से संबंधित मामलों के विश्लेषक अहमद क़ुरैशी ने बीबीसी को बताया कि शाही परिवार को अपनी सुरक्षा के लिए अब अमरीका पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि पिछले दस सालों में उन्होंने अपनी सैन्य क्षमताओं को बहुत तेज़ी से बढ़ाया है. हालांकि आम धारणा ये है कि सऊदी अरब की सेना बहुत कमज़ोर है, वो अप्रशिक्षित है. लेकिन ये सच नहीं है.


अमरीका के बिना सऊदी साम्राज्य

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक डॉक्टर मेहदी हसन ने बीबीसी को बताया कि मध्य-पूर्व जगत में अमरीका के लिए सऊदी अरब एक महत्वपूर्ण सहयोगी है. इसीलिए अमरीका सऊदी साम्राज्य का समर्थन करता है.
मेहदी हसन ने कहा कि अगर अमरीका अपना समर्थन वापस लेता है तो मध्य-पूर्व के कई देशों के लिए टिके रहने मुश्किल होगा. ऐसी स्थिति में इन देशों की आबादी लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर रुख करेगी.
इसलिए ये अमरीका के ही हित में है कि वो सऊदी अरब में शाही परिवार का समर्थन करता रहे और इस क्षेत्र में उनकी सुरक्षा की गारंटी देता रहे.
डॉक्टर हसन ने कहा कि भले ही राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपनी घुड़की के साथ किसी किस्म के मुआवज़े का ज़िक्र नहीं किया, लेकिन ऐसा लगता है कि वो शाही परिवार की रक्षा के एवज़ में कुछ चाहते हैं.
लेकिन सऊदी अरब में पाकिस्तान के राजदूत रहे शाहिद अमीन ने कहा कि इस धारणा में कोई सच्चाई नहीं है कि सऊदी अरब का शाही परिवार अमरीका के समर्थन के बिना जीवित नहीं रह सकता है.
हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीति में ये मुख्य रूप से शामिल है कि अन्य देश अमरीकी संसाधनों का लाभ उठाते हैं जिसके बदले में उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं मिलता.
शाहिद अमीन ने बताया कि ट्रंप की इस धमकी के कई मायने निकाले जा सकते हैं. लेकिन उनका 'दो सप्ताह' वाला दावा बेबुनियाद है. क्योंकि अगर सऊदी अरब के लिए कोई संकट होगा तो शाही परिवार अमरीका से पहले पाकिस्तान के पास पहुंचेगा.

हथियार बेचने की कोशिश

डोनल्ड ट्रंप ने ये साफ़तौर पर नहीं कहा है कि वो रक्षा के बदले में सऊदी अरब से कोई मुआवज़ा चाहते हैं या नहीं?
पर विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब वर्तमान में अमरीकी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है. लेकिन वो हथियार खरीदने के लिए दूसरे देशों से भी संपर्क कर रहा है जिनमें रूस शामिल है.
वहीं कुछ विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि रूस का नाम इस खेल में आने के बाद ही अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की है, क्योंकि अमरीका चाहता है कि सऊदी अरब हथियार खरीदने के लिए सिर्फ़ उसी के पास आये.

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