क्यों किया जाता है श्राद्ध, इस विषय में हम पहले भी बात कर चुके हैं। इसी विषय को थोडा और आगे बढाते हुए आज हम भारतीय धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित महाभारत के कर्ण की पौराणिक कहानी के माध्यम से श्राद्ध के संदर्भ में कुछ और बातें जानेंगे।
हिन्दु धर्म के लगभग सभी लोग महाभारत व उसके एक-एक पात्र से परिचित होते हैं और सभी जानते हैं कि महाभारत में कर्ण नाम के जो महाबली योद्धा थे, वे वास्तव में पांडवों की माता कुंती के सबसे पहले पुत्र थे और महाभारत काल के सबसे बड़े दानवीरों में उनका नाम सर्वोपरि था। हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार महावीर कर्ण हर रोज गरीबों और जरूरतमंदों को स्वर्ण व कीमती चीजों का दान किया करते थे।
लेकिन महाभारत के युद्ध के दौरान जब उनकी मृत्यु हुई, तो वे स्वर्ग पहुंचे। वहां जब भोजन का समय हुआ, तो भोजन के रूप में उन्हें हीरे, मोती, स्वर्ण, मुद्राऐं व रत्न आदि खाने के लिए परोसे गए। इस प्रकार का भोजन मिलने की उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, इसलिए इस तरह का भोजन देख उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा और उन्हाेने स्वर्ग के अधिपति भगवान इंद्र से पूछा- सभी अन्य लोगों को तो सामान्य भोजन दिया जा रहा है, तो फिर मुझे भोजन के रूप में स्वर्ण, आभूषण, रत्नादि क्यों परोसे गए हैं?
कर्ण का ये सवाल सुनकर इंद्र ने कर्ण से कहा-इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि आप धरती के सबसे बडे दानवीरों में भी सर्वोपरि थे आैर आपके दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं गया, लेकिन आपने कभी भी अपने पूर्वजों के नाम पर खाने का दान नहीं किया। इसीलिए यद्धपि आपके दरबार में आया हुआ हर जरूरतमंद आपसे सन्तुष्ट व तृप्त था, लेकिन आपके पूर्वज अभी भी आप से तृप्त नहीं हैं और इसीलिए आपने धरती पर जिन चीजों का दान किया, आपको भोजन के रूप में स्वर्ग में वे ही चीजें परोसी गई हैं।
तब महावीर कर्ण ने इंद्र से इस समस्या का समाधान जानना चाहा, जिसके प्रत्ुयत्तर में इंद्र ने कहा- कर्ण… आप वापस पृथ्वी पर जाओ, अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनका श्राद्ध करो और अपने पूर्वजों को खुश रखने के लिए तर्पण व पिण्ड दान करो।
भगवान इन्द्र की आज्ञानुसार महावीर कर्ण फिर से धरती पर आए और अपने पितरों का आह्वान कर उनका तर्पण, पिण्डदान व श्राद्ध किया। जिस समय महावीर कर्ण ने श्राद्ध किया था, उस समय सूर्य कन्या राशि में था और माना जाता है कि जब सूर्य कन्या राशि में होता है, तब चंद्रमा, धरती के सबसे करीब होता है और पूर्वजों का पितर लोग, चन्द्र लोक के बिल्कुल ऊपर की ओर है।
इसलिए यही वह समय होता है, जब पितृलोक के पूर्वज, अपने धरती वासी वंशजों से भोजन प्राप्त करने की आशा करते हैं और श्राद्ध के रूप में पृथ्वीवासी जिस भोजन को पितरों के नाम से बनाकर प्रसाद रूप में गायों, कौओं व ब्राम्हणों को अर्पण करते हैं, वही भोजन सूक्ष्म रूप में इन पितृलोक के पूर्वजों को प्राप्त होता है।
इस प्रकार से महावीर कर्ण ने भगवान इन्द्र की आज्ञा से सर्वप्रथम श्राद्ध करने की शुरूआत की थी, जिसके बाद से ही धरती पर श्राद्ध का प्रचलन शुरू हुअा और माना ये जाता है कि इन 16 दिनों के पितृ पक्ष में जो भी व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है, उसके पूर्वज उससे सन्तुष्ट होकर उसे आर्शीवाद देने के लिए पृथ्वी पर आतें हैं, जिससे उनका जीवन अगले 1 साल तक शान्तिपूर्ण तरीके से तरक्की करते हुए बीतता है।
जबकि जो लोग अपने पूर्वजों के नाम पर श्राद्ध नहीं करते, उन लोगों के पूर्वज धरती से वापस भूखे ही लौटने के लिए विवश होते हैं। परिणामस्वरूप वे असन्तुष्ट होकर अपनी संतति के लोगों को श्राप देते हुए पितृलोक लौटते होते हैं और उनके श्राप की वजह से इस प्रकार के घरों के लोग अकाल मृत्यु, अशान्ति व विभिन्न प्रकार की मनोविकृतियाें के कारण साल भर परेशान रहता है।
इसलिए हिन्दु धर्म की ये मान्यता है कि यथाशक्ति, यथासम्भव व यथोचित प्रत्येक व्यक्ति को इस श्राद्धपक्ष में अपने पूर्वजों के नाम पर उनका श्राद्ध, दान, तर्पण, पिण्डदान आदि जरूर करना चाहिए, ताकि उन्हें अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त हो न कि पितृ दोष के रूप में श्राप।
क्या है श्राद्ध?
श्राद्ध या पितृ पक्ष 16 दिनों की एक अवधि होती है जिसे महालया के नाम से भी जानते हैं। इन 16 दिनाें को मृत और दिवंगत पूर्वजों के सम्मान का एक बहुत ही अच्छा समय माना जाता है। इन 16 दिनों को पितृ पक्ष या पितर पक्ष भी कहा जाता है और सबसे लाेकप्रिय शब्द श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। लोग इसे कनागट के नाम से भी पुकारते हैं।
श्राद्ध या पितृ पक्ष 16 दिनों की एक अवधि होती है जिसे महालया के नाम से भी जानते हैं। इन 16 दिनाें को मृत और दिवंगत पूर्वजों के सम्मान का एक बहुत ही अच्छा समय माना जाता है। इन 16 दिनों को पितृ पक्ष या पितर पक्ष भी कहा जाता है और सबसे लाेकप्रिय शब्द श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। लोग इसे कनागट के नाम से भी पुकारते हैं।
श्राद्ध, मृत व्यक्ति के सम्मान में परिवार का बडा बेटा या पोता करता है और इस अवधि के दौरान उन मृत व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो, इसके लिए अनुष्ठान भी किया जाता है।
श्राद्ध एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- ”ईमानदारी और विश्वास के साथ किया हुआ कुछ भी’‘। श्राद्ध प्रतिवर्ष मरने वाले के रिश्तेदार पितृ पक्ष के अंधेरे पखवाड़े की उसी तिथी को मरने वाले की मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, जिस तिथी को वह मृत्यु को प्राप्त हुअा होता है।
श्राद्ध आमतौर पर तीन पीढियों के द्वारा किया जाता है जिसमें पिताजी, दादाजी और परदादाजी सम्मिलित होते हैं। यानी यदि आप श्राद्ध करना चाहते हैं, तो आप अपने पिता, दादा तथा परदादा का श्राद्ध कर सकते हैं।
तंत्र-मंत्र साधना, ध्यान, मंत्र पुनरावृत्ति आदि भी इस पितृ पक्ष का ही एक भाग है और माना जाता है कि इस अवधि में की जाने वाली तंत्र-मंत्र से सम्बंधित साधनाऐं जल्दी फलीभूत होती हैं।
कैसे करते हैं श्राद्ध ?
जिस तिथी को श्राद्ध किया जाता है उस दिन पवित्र, स्वादिष्ट और गरिष्ठ भोजन बनाया जाता है और वह भोजन सबसे पहले कौओं और गायों के लिए निकाला जाता है। उसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है, उसे कुछ दान-दक्षिणा भी दिया जाता है तथा ये माना जाता है कि उस भोजन व दान-दक्षिणा का फल उस मृत व्यक्ति की आत्मा तक पहुंचेगा। लोग अपनी श्रद्धा व स्थिति अनुसार ब्राह्मणों को कपडे व अन्य प्रकार की वस्तुअों का भी दान करते हैं।
जिस तिथी को श्राद्ध किया जाता है उस दिन पवित्र, स्वादिष्ट और गरिष्ठ भोजन बनाया जाता है और वह भोजन सबसे पहले कौओं और गायों के लिए निकाला जाता है। उसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है, उसे कुछ दान-दक्षिणा भी दिया जाता है तथा ये माना जाता है कि उस भोजन व दान-दक्षिणा का फल उस मृत व्यक्ति की आत्मा तक पहुंचेगा। लोग अपनी श्रद्धा व स्थिति अनुसार ब्राह्मणों को कपडे व अन्य प्रकार की वस्तुअों का भी दान करते हैं।
इस अवसर पर यदि पितृ के लिए बनाया जाने वाला प्रसाद स्वरूप भोजन, गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों द्वारा बनाया जाए, तो इसे और भी अधिक शुभ माना जाता है। लेकिन श्राद्ध के भोजन के संदर्भ में भी कुछ नियम हैं, जिनका पालन किया जाना जरूरी होता है।
नियम ये हैं कि श्राद्ध के प्रसाद के रूप में केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही बनाना चाहिए, जिसमें मृत व्यक्ति का पसंदीदा भोजन भी शामिल होना चाहिए। बेहतर तो यही होता है कि श्राद्ध के दिन केवल वही भोजन पकाया जाना चाहिए, जो उस मृत व्यक्ति को पसन्द था, जिसके श्राद्ध के रूप में भोजन पकाया जा रहा है। साथ ही यह भोजन सबसे पहले कौओं और गायों के लिए लिकालने के बाद ब्राह्मण और पंडितों को कराना चाहिए और अन्त में उसे घर-परिवार वालों को ग्रहण करना चाहिए।
श्राद्ध के नाम पर केवल मृतक का पसंदीदा भोजन पकाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि मृतक व पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी करनी चाहिए। साथ ही अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गरीबों और जरूरतमंद लोगों को भी भोजन कराना चाहिए। जबकि यदि किसी मृतक का पिण्डदान न किया गया हो, तो पितृपक्ष में ही किसी उपयुक्त कर्मकाण्डी पण्डित से उसका पिण्डदान भी करना चाहिए। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि यदि पितरों की आत्मा को शान्ति व मोक्ष प्राप्त नहीं होता, तो उस स्थिति में ये पूर्वज अपने वंशजों को तरह-तरह के कष्ट देने लगते हैं और अपने वंशजों की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष के योग के रूप में परिलक्षित होते हैं।
श्राद्ध पक्ष – सावधानियां
श्राद्ध पक्ष वास्तव में घर के पूर्वजों का समय होता है, जो कि मृत होते हैं और मृत्यु को किसी भी धर्म या संस्कृति में एक दु:खद घटना माना जाता है। इसलिए इस अवधि के दौरान लोगों को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जो कि उस घर में नहीं किया जाता, जिसमें कोई मृत्यु हुई होती है।
श्राद्ध पक्ष वास्तव में घर के पूर्वजों का समय होता है, जो कि मृत होते हैं और मृत्यु को किसी भी धर्म या संस्कृति में एक दु:खद घटना माना जाता है। इसलिए इस अवधि के दौरान लोगों को कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जो कि उस घर में नहीं किया जाता, जिसमें कोई मृत्यु हुई होती है।
उदाहरण के लिए न तो नए कपडे खरीदने चाहिए, न ही नए कपडे पहनने चाहिए, न ही उन्हे अपने बाल कटवाने चाहिए। यहाँ तक की जिस दिन पुरूष श्राद्ध का अनुष्ठान या पूजा करते हैं, उस दिन उन्हे दाढी भी नहीं बनवानी चाहिए और महिलाओं को भी उस विशेष दिन पर अपने बाल नहीं धोने चाहिए।
इस अवधि में नया व्यापार प्रारंभ करना, शादी करने जैसे काम, किसी प्रकार का जन्म समारोह या गृह प्रवेश जैसे काम बिलकुल भी नहीं करने चाहिए। इस अवधि में मांसाहारी भोजन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए जिसमें प्याज और लहसुन भी शामिल है।
चूंकि इस दिन पूर्वजों की याद में भोजन बनाया जाता है अत: इस दिन अगर कौवा, जिसे यमदूत का प्रतीक भी माना जाता है, वह भोजन खा ले, तो इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। साथ ही इस श्राद्ध पक्ष की अवधि के दौरान गरूड पुराण, अग्नि पुराण, नचिकेता की कहानियों और गंगा अवतारम को पढना शुभ व अच्छा माना जाता है, जिससे पूर्वजों की आत्मा काे शान्ति व मोक्ष प्राप्त होता है।
पितृ दोष और उसके प्रभाव
यदि किसी घर में अकाल मृत्यु की घटना बार-बार होती है, अथवा घर में होने वाली ज्यादातर मृत्यु अचानक, अविश्वसनीय व रहस्यमय तरीके से होती है अथवा घर के ज्यादातर लोग हद से ज्यादा शंकालु या मानसिक रोगी होते हैं और अच्छे से अच्छे डॉक्टर का ईलाज करवाने के बावजूद यदि इस प्रकार की बिमारियों में फर्क नहीं पडता और घर में दुर्घटनाओं व परेशानियों का दौर बदस्तूर जारी रहता है, तो इस प्रकार के घरों को पितृ दोष से प्रभावित माना जा सकता है और ऐसे लोगों को श्राद्ध जरूर करना चाहिए तथा घर में जिनकी भ्ाी अकाल मृत्यु हुई हो, उनकी आत्मा की शान्ति के लिए पिण्डदान जरूर करवाना चाहिए, ऐसी हिन्दु धर्म की मान्यता है।
यदि किसी घर में अकाल मृत्यु की घटना बार-बार होती है, अथवा घर में होने वाली ज्यादातर मृत्यु अचानक, अविश्वसनीय व रहस्यमय तरीके से होती है अथवा घर के ज्यादातर लोग हद से ज्यादा शंकालु या मानसिक रोगी होते हैं और अच्छे से अच्छे डॉक्टर का ईलाज करवाने के बावजूद यदि इस प्रकार की बिमारियों में फर्क नहीं पडता और घर में दुर्घटनाओं व परेशानियों का दौर बदस्तूर जारी रहता है, तो इस प्रकार के घरों को पितृ दोष से प्रभावित माना जा सकता है और ऐसे लोगों को श्राद्ध जरूर करना चाहिए तथा घर में जिनकी भ्ाी अकाल मृत्यु हुई हो, उनकी आत्मा की शान्ति के लिए पिण्डदान जरूर करवाना चाहिए, ऐसी हिन्दु धर्म की मान्यता है।
Author : Ashok Chaudhary