जानें मी टू आंदोलन (#Me Too) क्या है?


#MeToo अभियान जिसकी शुरुआत अक्तूबर, 2017 में हॉलीवुड के बड़े निर्माताओं में शामिल हार्वी वाइनस्टीन पर कई महिलाओं द्वारा यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगाए जाने के बाद हुई थी, आखिरकार अब भारत में पहुँच गया है। इसके माध्यम से महिलाएँ अपने खिलाफ हुए उत्पीड़न को तेज़ी से सोशल मीडिया पर शेयर भी कर रही हैं। यह अभियान भारत में इतनी तेज़ी से फ़ैल रहा है कि नेता से लेकर अभिनेता तक कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है जो इसके दायरे में नहीं आया हो। यहाँ कुछ घटनाएँ तो ऐसी हैं जो लगभग एक दशक पुरानी हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अभी तक इन महिलाओं ने इसके खिलाफ आवाज़ क्यों नहीं उठाई? इसका जवाब चाहे जो भी हो लेकिन यह स्पष्ट है कि #मी टू अभियान उन महिलाओं के लिये एक बड़ा संबल बनकर उभरा है, जिन्होंने यौन शोषण के विरुद्ध चुप्पी तोड़ते हुए खुलकर बात करने का साहस दिखाया है।


हैशटैग मी टू का अभियान भारत पहुंच गया है। पश्चिम की हर चीज थोड़ी बहुत देरी के साथ भारत में पहुंच जाती है। पर अफसोस की बात है कि पश्चिम के देशों में जो चीजें या जो विचार किसी बड़े बदलाव का कारण बनते हैं, वो भारत में पहुंच कर तमाशा बन जाते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि मी टू अभियान का हस्र ऐसा न हो। बहरहाल, मी टू यानी मैं भी या मेरे साथ भी अभियान मोटे तौर पर कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न से जुड़ा है


क्या है #Me Too?

मी टू आंदोलन (#Me Too) यौन उत्पीड़न और हमले के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन है।

अक्तूबर, 2017 में हॉलीवुड के बड़े निर्माताओं में शामिल हार्वी वाइनस्टीन पर कई महिलाओं ने यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगाए थे और वाइनस्टीन पर आरोप लगने के बाद दुनिया भर में #Me Too आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमें यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए थे।

एक सामाजिक कार्यकर्त्ता तराना बर्क ने वर्ष 2006 में “मी टू” वाक्यांश का उपयोग करना शुरू किया था और इस वाक्यांश को वर्ष 2017 में अमेरिकी अभिनेत्री एलिसा मिलानो द्वारा तब लोकप्रिय बनाया गया था, जब उन्होंने महिलाओं को इसके बारे में ट्वीट करने के लिये प्रोत्साहित किया।
इस आंदोलन को टाइम पत्रिका द्वारा पर्सन ऑफ द ईयर के लिये भी चुना गया था।


शोषण क्या है?
शोषण की परिभाषा एक महिला के लिये कुछ और है, जबकि पुरुष के लिये कुछ और। जो बात एक पुरुष के लिये सामान्य हो सकती है, हो सकता है वही एक महिला के लिये शोषण के दायरे में शामिल होती हो। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट करना बेहद कठिन है कि इस शब्द की व्यापकता को कैसे बांधा जाए?


भारत में महिलाओं का उत्पीड़न-
भारतीय राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-IV) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 5.5% महिलाओं द्वारा यौन हिंसा का अनुभव किये जाने के संबंध में पुष्टि की गई है, चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 80% से अधिक उदाहरण पति द्वारा प्रायोजित यौन शोषण से संबंधित हैं।
इन परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि हिंसा के प्राथमिक स्थान के रूप में घर में सबसे अधिक यौन हिंसा होती है, इसके पश्चात् सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों का नंबर आता है।
यदि केवल कार्यस्थल की बात की जाए तो भारत की वयस्क महिलाओं की जनसंख्या (जनगणना 2011) से पता चलता है कि 14.58 करोड़ महिलाओं (18 वर्ष से अधिक उम्र) के साथ यौन उत्पीड़न जैसा अपमानजनक व्यवहार हुआ है।
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
यह अधिनियम 9 दिसंबर, 2013 को प्रभाव में आया था।
यह अधिनियम उन संस्थाओं पर लागू होता है जहाँ दस से अधिक लोग काम करते हैंl यह क़ानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता हैl
यह क़ानून यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है।
यह क़ानून हर उस महिला के लिये बना है जिसका किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ हो।
इस क़ानून के अनुसार यह ज़रूरी नहीं है कि जिस कार्यस्थल पर महिला का उत्पीड़न हुआ है, वहाँ वह नौकरी करती हो।
कार्यस्थल कोई भी कार्यालय/दफ्तर हो सकता है, चाहे वह निजी संस्थान हो या सरकारी।


यौन उत्पीड़न कानून कब, कहाँ और किसके खिलाफ?

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत कार्यस्थल पर उत्पीड़न की शिकार हुई महिला चाहे वह उस संस्था में नियोजित हो अथवा किसी अन्य रूप में उस संस्था से जुडी हो, संगठन के कर्मचारी या संगठन से किसी अन्य प्रकार से बाहरी व्यक्ति जो कार्यस्थल या संगठन के साथ परामर्शदाता, सेवा प्रदाता, विक्रेता के रूप में संपर्क में आता है, के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है।
यदि महिला का उत्पीड़न उस दौरान हुआ जब वह संगठन में कार्यरत थी तो वह संगठन छोड़ने के बाद भी शिकायत दर्ज करा सकती है। यदि महिला उस संस्था में कभी नियोजित नहीं थी और काम के दौरान या उस आदमी के पेशेवर गतिविधियों के दौरान उत्पीड़न हुआ है तो वह उस संगठन की आंतरिक शिकायत समिति के पास शिकायत दर्ज करा सकती है जहाँ वह आदमी काम करता है।
महिला भारतीय दंड संहिता (Indian Panel Code- IPC) की धारा 354 A और अन्य प्रासंगिक वर्गों के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करने का विकल्प भी चुन सकती है।
यदि महिला का उत्पीड़न ‘तटस्थ क्षेत्र’ (ऐसा क्षेत्र जो संप्रभु नहीं है) में हुआ है तो महिला अपने संगठन की आंतरिक समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है लेकिन इस आतंरिक समिति के पास उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति पर प्रभावी दंड लगाने की शक्ति नहीं है। महिला उस संगठन में शिकायत दर्ज करा सकती है जहाँ वह आदमी काम करता है, बशर्ते महिला को उस संगठन का समर्थन प्राप्त हो जहाँ वह कार्य करती है।






शिकायत दर्ज कराने की समय-सीमा-
यह अधिनियम शिकायत दर्ज कराने के लिये 90 दिनों की समय-सीमा प्रदान करता है लेकिन यदि इस अवधि के दौरान शिकायत दर्ज नहीं कराई गई तो देरी का उचित कारण बताए जाने पर इस अवधि को आंतरिक समिति द्वारा अगले 90 दिनों तक और बढ़ाया जा सकता है। आपराधिक कानून में अपराध की प्रकृति के आधार पर एक वर्ष से तीन वर्ष तक की सीमा अवधि होती है। लेकिन पुलिस में बलात्कार की शिकायत दर्ज करने के लिये कोई समय-सीमा नहीं है।


निष्कर्ष
एक तरफ तो हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ, महिलाओं के उत्पीड़न के मामले रोज़ सामने आते हैं, ऐसे में कैसे सशक्त होंगी महिलाएँ? सच तो यह है कि देश लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है, महिलाएँ भी कई क्षेत्रों में पुरुषों से आगे निकल रही हैं लेकिन महिलाओं को देखने का पुरुषों का नज़रिया कभी नहीं बदला। महिलाओं का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करना समाज की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिये लेकिन यही समाज उनके लिये असुरक्षित भी है। ऐसे में #मी टू अभियान उन महिलाओं को अपने उत्पीड़न की दास्ताँ बयान करने का बेहतर मंच बनकर सामने आया है।
Author : Ashok Chaudhary

theviralnews.info

Check out latest viral news buzzing on all over internet from across the world. You can read viral stories on theviralnews.info which may give you thrills, information and knowledge.

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form