राजनीति का अपराधीकरण



हमारे देश ने सैकड़ों वर्षों पश्चात् सन् 1947 में अंग्रेजी दासत्व से आजादी पाई थी । आजादी के समय देश के समस्त नेताओं ने गाँधी जी के ‘रामराज्य’ के स्वप्न को साकार करने का संकल्प किया था परंतु वर्तमान में भारतीय राजनीति का अपराधीकरण जिस तीव्र गति से बढ़ रहा है इसे देखते हुए कोई भी कह सकता है कि हम अपने लक्ष्य से पूर्णतया भटक चुके हैं ।



देश के समस्त नागरिकों को चाहिए कि वह आत्म-आकलन करे और प्रयास करे कि जो नैतिक मूल्य हम खो चुके हैं उन्हें हम सभी पुन: आत्मसात करें । देश में सभी ओर कालाबाजारी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, जातिवाद व सांप्रदायिकता का जहर फैल रहा है ।



एक सामान्य कर्मचारी से लेकर शीर्षस्थ नेताओं तक पर भ्रष्टाचार संबंधी आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं । देश की राजनीति में अपराधीकरण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है । कुरसी अथवा पद की लालसा में मुनष्य सभी नैतिक मूल्यों का उपहास उड़ा रहा है । ‘येन-केन-प्रकारेण’ वह इसे हासिल करने का प्रयास करता है ।



लेकिन भारत की राजनीति में अपराधी तत्वों का प्रवेश एक ही दिन में नहीं हुआ है । स्वतंत्रता के पश्चात् जिस तरह से कुरसी के लिए जीतोड़ संघर्ष आरंभ हुआ, सभी दल अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए साधनों की पवित्रता के गाँधीवादी दृष्टिकोण को नकारने लगे, उसने राजनीति एवं अपराध के गठजोड़ को बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई । जातिवाद को मिटाने के नाम पर भी इस प्रक्रिया को बढ़ावा मिला ।



आवश्यकता है, बढ़ते हुए अपराधीकरण के कारणों को खोजने एवं उसका निदान ढूँढने की । सर्वप्रथम हम पाते हैं कि हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया में भी सुधार की आवश्यकता है । हमारी भारतीय राजनीति में धन व शक्ति का बोलबाला है । एक आकलन के अनुसार सामान्यत: 90 प्रतिशत से भी अधिक हमारे नेतागण या तो अत्यधिक धनाढ्‌य परिवारों से होते हैं अथवा उनका संबंध अपराधी तत्वों से होता है । गुणवत्ता कभी भी हमारी चुनाव प्रक्रिया का आधार नहीं रहा है ।



यही कारण है कि योग्य व्यक्ति आगे नहीं आ पाते हैं और यदि आते भी हैं तो धन शक्ति का अभाव उन्हें पीछे खींच लेता है । इन परिस्थितियों में वे स्वयं को राजनीति से पूर्णतया अलग कर लेते हैं । परिणामत: राजनीति में वे लोग आ जाते हैं जिनमें स्वार्थपरता की भावना देश के प्रति प्रेम की भावना से कहीं अधिक होती है । ऐसे लोग ही हमारी जड़ों का दीमक की भाँति खोखला करते हैं ।



एक सामान्य सी बात है कि किसी कार्यालय अथवा विभाग का शीर्षस्थ अधिकारी ही अयोग्य, भ्रष्ट अथवा अपराधी प्रवृत्ति का होगा, तब इन परिस्थितियों में प्रशासन को स्वच्छ रखना अत्यधिक दुष्कर कार्य हो जाता है । हमारी राजनीति की विडंबना भी कुछ इसी प्रकार की है ।



देश के अधिकांश नेता ही जब अपराधी प्रवृत्ति के हैं तब परिणामत: देश की राजनीति का अपराधीकरण स्वाभाविक है । यही भ्रष्ट नेता अपने प्रशासन में भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद को जन्म देते हैं । देश के अनेक महत्वपूर्ण पदों को यह सीधे प्रभावित करते हैं तथा पदों पर भर्तियाँ योग्यताओं के आधार पर नहीं अपितु इनकी सिफारिशों व निर्देशों के अनुसार होती हैं ।





हमारी कानून-व्यवस्था में भी त्वरित सुधार की आवश्यकता है । इस व्यवस्था में अनेक कमजोर कड़ियाँ हैं, अनेकों भ्रष्ट नेताओं पर आरोप लगते रहे हैं परंतु आज तक शायद ही किसी बड़े नेता को सजा के दायरे में लाना संभव हुआ हो । वे अपने पद, धन अथवा शक्ति के प्रभाव से स्वयं को आजाद करा लेते हैं तथा स्वयं को स्वच्छ साबित करने में सफल हो जाते हैं ।



हमारा कानून ऐसा प्रतीत होता है जैसे इसके सभी नीति-नियम धनाभाव से ग्रसित लोगों के लिए ही बने हैं । अत: यह आवश्यक है कि हम अपनी कानून-व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन लाएँ ताकि सभी को उचित न्याय मिल सके ।




देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के पाँच दशकों बाद भी हमारी राजनीति का आधार जातिवाद, क्षेत्रीयवाद तथा भाई-भतीजावाद है । आज भी अधिकांश नेता इसी आधार पर चुनाव जीत कर राजनीति में आते हैं । ये लोग जनमानस की इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाते हैं । कुरसी पाने की जिजीविषा में यह किसी भी स्तर तक गिर जाते हैं तथा लोगों को जाति, क्षेत्र, भाषा व धर्म के नाम पर आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्‌ध करते हैं ।



देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि जिन कारणों से हम सैकड़ों वर्षों तक विदेशी ताकतों के अधीन रहे, लाखों लोगों ने कुर्बानियाँ दीं इसके पश्चात् भी हम अपने अतीत से नहीं सीख सके और यही दशा यदि अनवरत बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब संकट के काले बादल पुन: हमारे भाग्य को अपनी चपेट में ले लें ।



अत: यह अत्यंत आवश्यक है कि सभी धर्म, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र व भाषा के लोग एकजुट होकर भारतीय राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर अंकुश लगाएँ । मतदान के अपने अधिकार का उपयोग पूर्ण विवेक से तथा देश के हित को ध्यान में रखते हुए करें ।




यह हम सभी का नैतिक दायित्व है कि हम देशहित को ही सर्वोपरि रखें तथा उन समस्त अलगावादी ताकतों का विरोध करें जो देश में पृथकता का वातावरण उत्पन्न करती हैं तथा हमारी राष्ट्रीय एकता की जड़ों को कमजोर करती हैं ।




भारतीय राजनिति पर बढ़ते अपराधीकरण को सामूहिक शक्ति से ही रोका जा सकता है । यह केवल एक व्यक्ति, धर्म या संप्रदाय को ही प्रभावित नहीं करता है अपितु संपूर्ण देश पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है । इन परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि हम सभी अपने निजी स्वार्थों एवं मतभेदों को भुलाकर एकजुट हों तथा उन्हीं लोगों को राजनीति में आने दें जो इसके लिए सर्वथा योग्य हैं ।





यदि हम अपने प्रयासों में सफल होते हैं तब वह दिन दूर नहीं जब हमारा राष्ट्र विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में से एक होगा और ‘राष्ट्रपिता गाँधी जी’ का ‘रामराज्य’ का स्वप्न साकार हो उठेगा । हम सब मिलकर प्रयास करें कि अपने देश को कुछ ऐसा बनाएँ ताकि निम्नलिखित पंक्तियाँ साकार हो सकें ।



” वह सपनों का देश, कुसुम ही कुसुम जहाँ खिलते हैं । उड़ती कहीं न धूल, न पक्ष में कंटक ही मिलते हैं ।”



अशोक कुमार वर्मा
    बस्ती- उत्तर प्रदेश




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