मंदिर के लड्डू भी खाता हूं, मस्ज़िद की खीर भी खाता हूं। भूखा हूं साहब, मजहब कहां समझ पाता हूं!

फ़ोटो: अयोध्या में राममंदिर निर्माण कार्यक्रम के बाद एक ग़रीब बची रोटियों को इकट्ठे करता हुआ। 


बुराई धर्म में नहीं इंसानों में है। जो हम एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं।


मंदिर हो मस्जिद हो या कोई अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल, वहां बहुत से ऐसे गरीब लोग मिल जाएंगे, आखिर देश को आजाद हुए 71वर्ष हो गया फिर भी ऐसी स्थिति इसका जिम्मेदार कौन है ??? देश का शासन प्रशासन या देश की जनता!!!

25नवम्बर 2018 को हुए अयोध्या में धर्म संसद की एक तस्वीर जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई जिसे देख गरीबी में बेबसी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह एक तस्वीर जो अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर एक करारा तमाचा है। जो दिखा रही है कि धार्मिक होने से पहले पेट भरना ज़रूरी होता है।
इस तस्वीर में एक बुजुर्ग दिखाई दे रहा है जिसमें साफ़ देखा जा सकता है की वो कार्यकर्ताओं को मिले खाने के डिब्बे से खाने की तलाश में है की जिससे उसे कुछ मिल जाए और उसका पेट भर सके।




नेताओं को खुद की राजनीति को जिंदा रखने के लिये मंदिर-मस्जिद चाहियें, एक गरीब को तो बस खुद को जिंदा रखने के लिये दो वक्त की रोटी चाहिये।

तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है, दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है।



बता दें कि शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद् ने अयोध्या में दो दिन राम मंदिर निर्माण को लेकर मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए मंच सजाया था। जिसमें संघ प्रमुख से लेकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे जैसे नेता शामिल हुए थे।


जिसका नतीजा तो कुछ निकला नहीं मगर सोशल मीडिया पर कम भीड़ और बुजुर्ग की तस्वीर वायरल हो गई जिससे लोग मंदिर से ज्यादा रोटी को महत्व देने की बात करते नज़र आ रहें है।


खैर हमारा इतिहास हमें यही बताता है कि हम पर हमारे देश पर मुगलों और अंग्रेजों ने बहुत जुल्म ढाए है उस समय हम सभी ने भारतीय होने का धर्म निभाया न कोई हिन्दू दिखा न कोई मुसलमान हम सभी ने मिलकर विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ संघर्ष किया। लेकिन ये भी सही है कि मुग़ल 
के शासकों के भारत देश को लूटने के साथ ही साथ मंदिरों को भी तोडा और वही मस्जिद बनाई तथा लोगों के धर्म भी जबरिया परिवर्तित कराए।


लेकिन सत्ता के कुछ लालची लोगों ने आमजन मानस के दिलों में जाति और धर्म का जहर बोना शुरू किया और नतीजा आया कि भारत देश बट गया एक पाकिस्तान दूसरा बंगलादेश बन गया, तो आप यही समझिए कि ये सत्ता के लालची लोगों को कैसे भी करके राजनीति में कोई पद चाहिए होता है वो सत्ता का लालची इंसान हिन्दू या मुसलमान या कोई अन्य हो सकता है।


लेकिन देश की जनता नगी है भूखी है इन बातों से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है।


ऐ सियासत... तूने भी इस दौर में कमाल कर दिया, 
गरीबों को गरीब अमीरों को माला-माल कर दिया।


खैर गलतियां हमारी आपकी भी है जो इन सत्ता के लालची लोगों के चक्कर में अपना वोट गलत आदमी को दे देते हैं , आगे से ऐसा नहीं करें और जाति धर्म से ऊपर उठकर अपना मतदान एक ईमानदार प्रत्यासी को करे, चाहें वो किसी भी पार्टी का ही क्यू नही हो ।


आजकल तो लोगों को देखता हूं कि नेताओं की हैसियत और दबंगई देखकर
 वोट देते हैं जो कि ग़लत है भले ही आप का प्रत्यासी गरीब हो अगर वह ईमानदार हैं तो उसकी मदत जरूर करें।



एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं जब देश आजाद नहीं हुआ था, उस समय बेमिसाल थी अशफाक-बिस्मिल की जोड़ी
अपनी आत्मकथा में रामप्रसाद बिस्मिल ने सबसे अधिक अशफाक के बारे में ही लिखा है. बिस्मिल अपनी आत्मकथा में एक बहुत ही मजेदार घटना का जिक्र करते हैं. उस वक्त दोनों की दोस्ती की वजह से यह अफवाह थी कि अशफाक बिस्मिल के प्रभाव में आकर हिंदू बन सकते हैं.


शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो,
होठों पर गंगा हो और हाथों में तिरंगा हो.


घटना यह है कि एक बार अशफाक बीमार हुए और वे बेहोश थे और उनके मुंह से राम-राम निकल रहा था. बिस्मिल इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं, ‘पास खड़े भाई-बंधुओं को आश्‍चर्य था कि 'राम', 'राम' कहता है. कहते कि 'अल्लाह, अल्लाह' करो, पर तुम्हारी 'राम', 'राम' की रट थी! उस समय किसी मित्र का आगमन हुआ, जो 'राम' के भेद को जानते थे. तुरंत मैं बुलाया गया. मुझसे मिलने पर तुम्हें शांति हुई, तब सब लोग 'राम-राम' के भेद को समझे!’

रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा अशफाक का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘ हिंदू-मुस्लिम एकता ही हम लोगों की यादगार तथा अंतिम इच्छा है, चाहे वह कितनी कठिनता से क्यों न प्राप्‍त हो. इच्छा है, चाहे वह कितनी कठिनता से क्यों न प्राप्‍त हो.’

11 जून को जब इस महान क्रांतिकारी को हम याद कर रहे हैं तो उनकी इस अंतिम इच्छा के साथ खड़ा होना ही उनकी शहादत को सच्ची सलामी होगी. अंत में बिस्मिल के शब्दों में ही-
मरते 'बिस्मिल' 'रोशन' 'लहरी' 'अशफाक' अत्याचार से।
होंगे पैदा सैंकड़ों इनके रुधिर की धार से॥

ये सीख हम सभी को लेने की आवश्यकता है चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, ये भारत देश हम सभी का है इसकी रक्षा करें।

यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है साहब, 
कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए।













राष्ट्रवादी बनें
वन्देमातरम-जय हिन्द

किसी को लगता हैं हिन्दू ख़तरे में हैं,
किसी को लगता मुसलमान ख़तरे में हैं,
धर्म का चश्मा उतार कर देखो यारों,
पता चलेगा हमारा हिंदुस्तान ख़तरे में हैं.



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  1. पेज को फालो करें साथ ही साथ कमेंट के माध्यम से सुझाव भी देते रहे।

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