देश बुलेट ट्रेन से नहीं हल से चलेगा


किसानों की समस्या से हम सभी अवगत हैं। कृषि क्षेत्र की दिक्कतों से भी सभी वाकिफ हैं। कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए व्यापक दृष्टि और समग्र नीति की जरूरत है। इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। केवल किसानों के नाम पर राजनीति से बात नहीं बनेगी। दुर्भाग्य से देश में किसानों के मुद्दों पर राजनीति ही हुई है।

पिछली सरकारों ने कर्जमाफी की लोलुभावन नीति से आगे कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया है। साठ के दशक की हरित क्रांति के बाद कृषि क्षेत्र में सुधार पर कभी भी ध्यान नहीं दिया गया। हरित क्रांति के परिणाम का भी वृहत विश्लेषण नहीं हुआ है। रासायनिक खाद के प्रयोग से हम चावल-गेहूं में तो आत्मनिर्भर हो गए, मगर दलहन व तिलहन के बड़े आयातक बन गए।

धीरे-धीरे हमारी कृषि भूमि की उत्पादकता कम होती गई। हम कम पानी वाली फसल की खेती को अपनी कृषि योजना में शामिल नहीं कर सके। कृषि को लाभकारी नहीं बना पाए। विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के दबाव में आकर कृषि सब्सिडी से हाथ खींचने लगे। कृषि क्षेत्र को लेकर बहुत सारी नीतिगत विसंगतियों को कभी गंभीरता से एड्रेस करने की कोशिश नहीं की गई।

इन सबका परिणाम हुआ कि कृषि घाटे का सौदा साबित होने लगी और किसान आत्महत्या को मजबूर होने लगे। जबकि कृषि क्षेत्र में विशाल मानव श्रम को खपाने की क्षमता है। कृषि प्रधान देश होने के बावजूद किसानी को कभी भी वो सम्मान नहीं दिया गया, जिसका वह हकदार है। हमारे अन्नदाता किसान क्यों अकिंचन बनते गए,

इसका जवाब देश पर अधिकांश समय तक शासन करने वाली पार्टी कांग्रेस को देना चाहिए। सबसे अधिक किसानों ने कांग्रेस शासनकाल में ही आत्महत्या की है। मौजूदा राजग सरकार कम से कम किसानों को लेकर गंभीर तो है, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने करने का लक्ष्य तो रखा है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को तर्कसंगत बनाया है, फसल बीमा योजना को लागू किया है।

खेती के लिए सस्ते कर्ज का इंतजाम किया है। लेकिन कांग्रेस समेत विपक्ष के अधिकांश दलों ने अब तक किसानों को वोट बैंक से अधिक नहीं समझा है। अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह के दस साल तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद देश में किसानों व कृषि क्षेत्र की दशा नहीं सुधरी, जबकि वे खुद कह चुके हैं कि डबल डिजिट जीडीपी ग्रोथ के लिए कृषि क्षेत्र की विकास दर चार फीसदी से अधिक होना चाहिए।

करीब 50 साल तक शासन करने के बावजूद कांग्रेस किसानों की बदहाली को क्यों नहीं दूर कर सकी? यह जवाब देश को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देना चाहिए। किसान क्रांति पदयात्रा से कृषि क्षेत्र की समस्या दूर नहीं होगी। इस यात्रा पर राजनीति की रोटी सेंकने वाले सभी दलों को अपनी-अपनी सरकारों के किसानों के लिए किए गए कामों का आंकलन करना चाहिए।

जो भी लोग इस यात्रा में शामिल हुए हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि क्या प्रदर्शन-तोड़फोड़ से, कानून हाथ में लेने से किसानों की समस्या हल हो जाएगी? क्या उनके साथ आने वाले दल भी उनके नाम पर वोटबैंक की राजनीति नहीं कर रहे हैं? क्या उन्हें इन राजनीति दलों से नहीं पूछना चाहिए कि उनके पास किसानों की बेहतरी के लिए क्या एजेंडा है?

सरकार को किसानों की मांगों पर तर्कपूर्ण तरीके से सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए। बिना वैश्विक दबाव के कृषि क्षेत्र को पर्याप्त नीतिगत रियायत व सहूलियत देने की जरूरत है। हमें इजराइल, ब्राजील, अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की आदि देशों के अनुभवों की मदद लेकर अपना कृषि मॉडल बनाना चाहिए, जिसमें हमारे किसान खुशहाल रह सके। केवल राजनीति से किसानों की दशा नहीं सुधरेगी।

''देश में किसानों की दशा''

एक पुरानी गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं - हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम दिल जो टूटा तो अरमां विखर जायेंगे -----ये गीत किसी और मकशद से भले ही लिखा गया हो लेकिन आज देश के किसानों की दशा पर अवश्य लागू होती है। देश के नेता बड़े गर्व से कहते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है और ७० से ८० प्रतिशत लोग किसान है या उनकी रोजी रोटी कृषि पर आधारित है। अब सवाल खड़ा होता है कि आज किसानों की बद से मदतर स्थिति क्यों है, उसका जिम्मेदार कौन है? स्वयं किसान, देश की नीतियां, या प्रकृति। देखा जाये तो लगभग तीनों जिम्मेदार है। साथ ही किसानों की शिक्षा में कमी भी जिम्मेदार है। १५ से २० प्रतिशत देश का मुसलमान अपनी एकता के कारण पूर्व प्रधान मंत्री के अनुसार देश की प्राकृतिक सम्पदाओं के उपभोग का पहला अधिकारी है और सरकारें उनकी सभी मांगे मानने को बाध्य होती हैं वहीं ७० से ८० प्रतिशत किसान आपसी एकता न होने के कारण बेहाल है साथ ही उपेक्षा का शिकार भी है। सरकार की नीतियां भी औद्योगीकरण की ओर अधिक प्रभावी हैं जब की कृषि की ओर बहुत कम। प्रकृति भी किसानों को ही समय समय पर दण्ड देती रहती है। किसानों में शिक्षा के आभाव के कारण भी कृषि की तमाम आधुनिक जानकारियां नहीं हो पाती जिसके कारण क्राप्ट फसल तथा अनेक लाभ देने वाली फसलों के उत्पादन से बंचित रह जाता है। देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार से पीड़ित अगर कोई समाज है तो वह है किसान, उसे ब्लाक कर्मचारी, थाना, अस्पताल तहसील, कोर्ट आदि सभी स्थानों पर भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ता है। केंद्र सरकार द्वारा किसानों के हित में अनेक योजनाएं घोषित की गई हैं किन्तु पारदर्शिता के अभाव एवं अधिकारियों की भ्रष्ट कार्य प्रणाली के चलते किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। जय जवान जय किसान का नारा मात्र छलावा बनकर रह गया है।

किसानों की समस्याओं पर राजनीति तो बहुत होती है पर काम नहीं होता-


स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात् एक लम्बी अवधि बीतने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में सिर्फ 19-20 का ही अंतर दिखाई देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। कृषि प्रधान राष्ट्र भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों का कृषि के विकास और किसान के कल्याण के प्रति ढुलमुल रवैया ही रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। बावजूद इसके किसानों की समस्याओं पर ओछी राजनीति करने वाले ज्यादा और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले कम हैं।
चुनावी मौसम में विभिन्न राजनीतिक दलों की जुबान से किसानों के लिए हितकारी बातें अन्य मुद्दों के समक्ष ओझल हो जाती हैं। जिस तरह से तमाम राजनीतिक दलों से लेकर मीडिया मंचों पर किसानों की दुर्दशा का व्याख्यान होता है, उसमें समाधान की शायद ही कोई चर्चा होती है। इससे यही लगता है कि यह समस्या वर्तमान समय में सबसे अधिक बिकाऊ विषय बनकर रह गयी है। आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 15,168 किसानों की मौत का कारण फसल संबंधित बैंकों का कर्ज न चुकता कर पाने के दबाव में आत्महत्या करना है। यही नहीं, हमारे देश के लाखों किसान बढ़ती महंगाई को लेकर भी परेशान हैं, क्योंकि इसका सीधा नुकसान किसानों की स्थिति पर पड़ता है।
देश की अर्थव्यवस्था के विकास में किसानों का अहम योगदान है। बावजूद किसानों की समस्याएं कम होने की बजाए दिन ब दिन बड़ी व जटिल हो रही हैं। कृषि और किसान कल्याण को लेकर जब हम ठोस रणनीति की बात करते हैं तो उसमें सबसे पहले 86 प्रतिशत लघु और सीमांत किसानों की बात आती है जो लगातार हाशिये पर जा रहे हैं। यदि भारतीय परिदृश्य में कृषि और किसानों का कल्याण सुनिश्चित करना है तो इन्हीं 86 प्रतिशत किसानों को ध्यान में रख कर रणनीति और कार्ययोजना तैयार करनी होगी तभी जमीन पर कुछ अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं।



इस दिशा में सबसे पहले बीज वितरण प्रणाली, सिंचाई सुविधा, वित्तीय सहायता, बाजार व्यवस्था, भंडारण सुविधा जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों को लघु एवं सीमांत जोत को ध्यान में रख कर नीति बनानी होगी। ऐसा इसलिए कि सक्षम किसान तो आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था खुद कर सकते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में कमजोर और संसाधन विहीन किसान पीछे छूट जाते हैं। इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए सबसे पहले परंपरागत कृषि उत्पादन की जगह नगदी फसलों को बढ़ावा देना होगा। फसल की प्राथमिकता तैयार करते समय देश-दुनिया की जरूरतों के साथ मौजूदा परिस्थितियों में उत्पादन क्षमता पर भी ध्यान केंद्रित करते हुए कार्ययोजना आगे बढ़ानी होगी। कृषि उत्पाद खरीद व्यवस्था को सशक्त और प्रभावी बनाना होगा जो किसानों के हितों का पूरा खयाल रख सके।
इस क्षेत्र में निजी व्यवस्था के तहत सरकारी हस्तक्षेप को प्राथमिकता देनी होगी। सरकार खरीद प्रक्रिया में सीधे भाग न लेकर ढांचागत व्यवस्था को सशक्त बनाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकती है ताकि किसानों के साथ भेदभाव की कोई गुंजाइश न हो। इस खरीद प्रक्रिया में भाग लेने वाली संबंधित इकाई को नुकसान होने पर सरकारी कोष से मदद भी मुहैया करा सकती है। चूंकि कृषि व्यवस्था का स्वरूप देश में विकेंद्रीकृत और विविधता से भरा हुआ है, इसलिए क्षेत्रीय विशेषता को ध्यान में रख कर नियमन प्रक्रिया में लचीलापन लाया जा सकता है। इन तमाम प्रयासों के केंद्र में इस बात का हमेशा खयाल रखा जाना चाहिए कि किसानों का किसी भी स्तर पर शोषण न हो।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उद्योग और व्यापार जगत की चहलकदमी से अर्थव्यवस्था में सुधार देखने को मिल रहा है, और इस बीच कृषि क्षेत्र की लगातार उपेक्षा होती जा रही है। देश की कुल जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी कृषि पर आश्रित है। कृषि क्षेत्र की अनदेखी कर विकास को स्थायित्व प्रदान करने की कल्पना नहीं की जा सकती। यह बात सही है कि सरकार ने 2023 तक देश के किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को ठोस कार्य योजना से ही प्राप्त किया जा सकता है। सरकार को कृषि क्षेत्र की मजबूती के लिए संवेदनशीलता के साथ कार्य करना चाहिए। विकास दर में उछाल को बरकरार रखने के लिए विकास के सभी क्षेत्रों की ओर समान ध्यान देने की जरूरत है।
किसानों के आर्थिक पक्ष को मजबूत करने के लिए उन्हें जागरूक करना चाहिए कि वे अपनी हैसियत से ज्यादा सरकारों के भरोसे कर्ज न लें। इसके साथ ही जिन फसलों, फलों या सब्जियों की बाजार में ज्यादा मांग है, उनकी खेती को ही अपनाएं। अंत में यह भी कहना उचित है कि किसानों की खराब हालत के लिए कहीं न कहीं व्यवस्था में पसरा भ्रष्टाचार भी जिम्मेदार है। तभी तो जरूरतमंद किसानों को सरकारी योजनाओं का उचित लाभ नहीं मिलता है। सरकारों को इस तरफ भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। सत्ताधारियों को भी चाहिए कि वे किसानों की समस्याओं पर ओछी राजनीति करना बंद करके उनकी समस्याओं की तरफ गंभीरता से ध्यान दें, ताकि कृषि प्रधान देश भारत की साख पर कोई आंच न आए। सबकी भूख मिटाने वाला किसान किसी समस्या से न जूझे।




महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। लेकिन आज किसानों की समस्याओं पर राजनीति करने वाले ज्यादा और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले कम हैं। किसानों की खराब हालात के लिए भ्रष्टाचार भी जिम्मेवार है। इसीलिए जरूरतमंद किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। सरकारों की योजनाओं में तमाम खामियां हैं, जिसके चलते किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ता है। सरकार को उन खामियों पर विचार करना चाहिए, ताकि किसानों की हर समस्या का समाधान हो सके, उनको उनका हक मिल सके और वे तनावमुक्त रहकर खेतीबाड़ी की तरफ ध्यान दे सकें। देश के विकास के दावे तब तक खोखले ही रहेंगे, जब तक बुनियादी समस्याएं हल नहीं हो जातीं। इनमें किसानों की समस्याएं भी शामिल हैं। किसानों की आय बहुत कम हो गई। कृषक आधारित कृषि के हालात बिगड़ गए और उसकी विकास दर गिरने से गांवों की स्थिति दयनीय हो गई। अधिकतर किसानों के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया और वे आत्महत्या के रास्ते को अपनाने लगे। किसानों जैसी ही दुर्दशा मछुआरों, शिल्पकरों, बुनकरों एवं अन्य छोटे उत्पादकों की हो गई। कृषकों की दुर्दशा का एक अन्य कारण उनकी जमीनों को सस्ते दामों पर उद्योगों एवं बुनियादी सुविधाओं के लिए हड़प लेना भी है।
अब इन बातों से ऊपर उठना होगा कि हम लोग उपलब्ध संसाधन और समय का इस्तेमाल केवल किसानों की समस्याओं का व्याख्या करने में ही खत्म कर दें। देश की लगभग 125 करोड़ आबादी इस बात से पूरी तरह सहमत है कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या किसानों की दुर्दशा है। देश में किसानों की स्थिति लगातार गिरती जा रही है। पिछले 20 वर्षों में लगभग तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है। यही कारण है कि आज जगह-जगह किसानों के उग्र आंदोलन छेड़े जा रहे हैं।
पिछले वर्ष किसानों के सरोकार से जुड़ी 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन विश्व व्यापार संगठन द्वारा अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में भारत ने अपना पक्ष मजबूती से रखा था। वर्तमान केंद्र सरकार किसानों की प्रत्येक समस्या के लिए समग्र रूप से प्रयासरत है। इसके लिए वह गोदामों का निर्माण, कोल्ड स्टोरेज, रेफ्रीजरेटर वैन, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, सार्वभौमिक फसल बीमा, विद्युत आपूर्ति, समय पर ऋण और बाजार उपलब्ध कराने की कोशिश में लगी हुई है। कृषि प्रधान देश भारत में खेती-किसानी के क्षेत्र में दूरगामी नीति के साथ ठोस कदम उठाने की जरूरत है।



जीवन सुधारने के उपाय:
किसानों की मॉग मुफ्त बिजली और पानी नहीं है, बल्कि बिजली की निर्बाध आपूर्ति के लिए हैं जिसके लिये वे भुगतान करने के लिए तैयार है। पंजाब जैसे राज्यों में, पहली बार में हरित क्रांति से किसानों को बहुत मदद मिली लेकिन कम कीमतों मैं बम्पर फसलों की उपज के कारण उनके काम मैं बधाओ ने आना शुरु कर दिया। भारतीय किसानों की हालत में सुधार किया जाना चाहिए। उन्हे खेती की आधुनिक विधि सिखाया जाना चाहिए। उन्हे साक्षर बनाया जाना चाहिए। उनको पढा लिखा बनाना चाहिए। वह हर संभव तरीके में सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जानी चाहिए। छोटे किसानों ने भी कुछ कुटीर उद्योग शुरू करने का निर्णय ले लिया। फसल चक्र प्रणाली और अनुबंध फसल प्रणाली कुछ राज्यों में शुरू कर दिया गया। इस तरह के कदम किसानो को सही दिशा में ले जाते और लंबे समय तक किसानी करने में मदद करते। भारत का कल्याण किसानो पर ही निर्भर करता है।


theviralnews.info

Check out latest viral news buzzing on all over internet from across the world. You can read viral stories on theviralnews.info which may give you thrills, information and knowledge.

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form