वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में सोमवार का दिन बेहद अहम रहा। ज्ञानवापी स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और विग्रहों के संरक्षण पर वाराणसी कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने इस याचिका पर आगे भी सुनवाई करने का फैसला लिया है। जज का फैसला आते ही कोर्ट परिसर हर हर महादेव के जयकारे से गूंज उठा। वकीलों ने भी जमकर नारे लगाए। आज दोपहर 2 बजकर 25 मिनट पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
यहां जानिए पल पल की अपडेट-
फैसले से नाराज दिखे मुस्लिम पक्षकार, हाई कोर्ट जाएंगे
मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि ये फैसला न्यायोचित नहीं है। हम फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। जज साहब ने फैसला सांसद के कानून को दरकिनार कर दिया। ऊपरी अदालत के दरवाजे हमारे लिए खुले हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका आपकी है। आप सांसद के नियम को नही मानेंगे। सब लोग बिक गए हैं।
जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत मेंटेनेबिलिटी यानी पोषणीयता पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद केस में आगे सुनवाई होगी। कोर्ट को आज यही फैसला करना था कि यह याचिका सुनने योग्य है या फिर नहीं। वहीं मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई है।
ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 के आधार पर फैसला
यह आदेश ऑर्डर 7 रूल नंबर 11 के आधार पर दिया गया। इसको यदि आसान भाषा में समझा जाए, तो इसके तहत कोर्ट किसी केस में तथ्यों की मेरिट पर विचार करने के बजाए सबसे पहले ये तय किया जाता है कि क्या याचिका सुनवाई करने लायक है भी या नहीं। रूल 7 के तहत कई वजह है, जिनके आधार पर कोर्ट शुरुआत में ही याचिका को खारिज कर देता है। यदि याचिकाकर्ता ने याचिका को दाखिल करने की वजह स्पष्ट नहीं की हो या फिर उसने दावे का उचित मूल्यांकन न किया हो या उसके मुताबिक कोर्ट फीस न चुकाई गई हो. इसके अलावा जो एक महत्वपूर्ण आधार है वो है कि कोई कानून उस मुकदमे को दायर करने से रोकता हो।
-कोर्ट परिसर में हलचल बढ़ गई है। याचिकाकर्ता महिलाओं का सम्मान किया जा रहा है। बड़ी संख्या में जनता के साथ ही सुरक्षा की व्यवस्था भी चुस्त है।
ज्ञानवापी शृंगार गौरी विवाद मामले में जिला जज वाराणसी की अदालत का फैसला तैयार हो चुका है। सूत्रों के अनुसार 15 से 17 पन्नों का हो सकता है फैसला।
-हिंदू और मुस्लिम पक्ष के वकील और पैरोकार वाराणसी की जिला अदालत में पहुंच गए हैं। अब से थोड़ी ही देर में फैसला आ जाएगा।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से जुड़े फैसले पर राजनीतिक विश्लेषक फाजिल अहमद ने कहा, 'हमें भी कोर्ट से न्याय की उम्मीद है। ज्ञानवापी एक मस्जिद है, जहां हम सदियों से नमाज पढ़ते आ रहे हैं। ये लोग शोर-मचाकर मामले को विवादित बना रहे हैं।'
ज्ञानवापी मस्जिद के पार्श्व भाग में स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन के साथ 1993 के पूर्व की स्थिति बहाल करने की मांग को लेकर नई दिल्ली निवासी राखी सिंह और वाराणसी की लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की तरफ से सिविल जज की अदालत में वाद दाखिल दाखिल किया गया था। इस वाद की सुनवाई के दौरान बीते मई महीने में सिविल जज (सीनियर डिविजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत के आदेश पर पूरे ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे हुआ।
चार दिनों तक चले सर्वे में खींची गई करीब 1500 तस्वीरों और 12 घंटे की विडियोग्राफी के साथ वकील कमिश्नर की अदालत में पेश रिपोर्ट से चौंकाने वाले खुलासा हुए। हिंदू पक्ष के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में जगह-जगह प्राचीन मंदिर के पुख्ता प्रमाण मिले तो वजूखाने में शिवलिंग की आकृति वाला कथित फव्वारा मिलने पर आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था। वकील कमिश्नर की रिपोर्ट के मुताबिक मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे खंभे और इमाम बैठने वाले स्थान के ऊपर भी त्रिशूल, डमरू और स्वास्तिक के चिह्न दिखाई दिए।
सर्वे के खिलाफ मामला पहुंचा था सुप्रीम कोर्ट
यह मामला तब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जब ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमिटी की ओर से सिविल जज के सर्वे कराने के आदेश को चुनौती दी गई। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद का दावा था कि 500 साल पुरानी मस्जिद देश की आजादी के दिन भी वहां थी। ऐसे में प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 के तहत सिविल जज का सर्वे करवाने का आदेश गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि यदि किसी धर्म स्थल का हाईब्रिड कैरेटर हो तो उसके निर्धारण के लिए जांच हो सकती है। साथ ही सिविल जज की अदालत में दायर वाद के सीपीसी ऑर्डर-7 रूल 11 से बाधित होने यानी मेंटेनेबिलिटी पर जिला जज को सुनवाई करने का आदेश दिया था।
जिला जल की अदालत में 26 मई से सुनवाई शुरू होने पर पहले चार दिन मुस्लिम पक्ष और बाद में वादी हिंदू पक्ष की ओर से दलीलें पेश की गईं। इसके बाद दोनों पक्षों ने जवाबी बहस की और लिखित बहस भी दाखिल की। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। आजादी के पहले से वक्फ ऐक्ट में दर्ज है। इससे संबंधित दस्तावेज भी पेश किए गए। वहीं मस्जिद के संबंध में 1936 में दीन मोहम्मद केस में सिविल कोर्ट और 1942 में हाई कोर्ट के उस फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि यह मुकदमा सीपीसी ऑर्डर-7 रूल 11 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है।
उधर, हिंदू पक्ष की ओर से वक्फ संबंधी दस्तावेजों को फर्जी बताने के साथ कहा गया कि ज्ञानवापी में नीचे आदि विश्वेश्वर का मंदिर है। ऊपर का स्ट्रक्चर अलग है। जब तक किसी स्थल का धार्मिक स्वरूप तय नहीं हो जाता तब तक प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट-1991 प्रभावी नहीं माना जाएगा। जिला जज ने 24 अगस्त को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था जो सोमवार को सुनाया जाएगा।
धारा-144 लागू, प्रशासन अलर्ट
ज्ञानवापी प्रकरण के मद्देनजर वाराणसी पुलिस कमिश्नर ए. सतीश गणेश ने रविवार को कमिश्नरेट क्षेत्र में धारा-144 लागू करने का आदेश दिया है। पुलिस और प्रशासनिक अमला हाई अलर्ट पर है। सभी थानेदारों, एसीपी, एडीसीपी और डीसीपी को अतिरिक्त सतर्कता के साथ ड्यूटी करने को कहा गया है। पुलिस कमिश्नर ने ऑनलाइन बैठक में काननू व्यवस्था की चुनौतियों से निपटने की तैयारी की समीक्षा की। सोशल मीडिया की निगरानी की जा रही है। पुलिस धर्मगुरुओं के लगातार संपर्क में है। प्रशासन की रोक के बावजूद ज्ञानवापी मामले में पैरोकार डॉ. सोहन लाल आर्य ने फैसला पक्ष में आने पर धर्म यात्रा निकालने की घोषणा की है।
ओवैसी और 1991 का ऐक्ट
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के फैसले पर कहा है कि 1991 का जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट है उसका तो मकसद ही फेल हो जाता है। उधर, हिंदू संतों का कहना है कि मथुरा और काशी के साथ-साथ 20 हजार मंदिर ऐसे हैं, जहां पर हम विजय हासिल करेंगे। वाराणसी कोर्ट के फैसले से साफ है कि 1991 का पूजा स्थल कानून श्रृंगार गौरी केस के आड़े नहीं आएगा, यानी ज्ञानवापी परिसर में पूजा के अधिकार वाली पांच महिलाओं की याचिका अब सुनी जा सकती है।
हिंदू पक्ष के लिए शुभ संकेत क्या है?
इस फैसले का मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि काशी के मामले में मुस्लिम पक्ष का सबसे बड़ा हथियार यानी 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट अपना प्रभाव खो सकता है। इससे सभी विवादित पूजास्थलों की कानूनी लड़ाई में हिंदुओं के लिए नई उम्मीद पैदा हो सकती है। सिर्फ काशी ही क्यों, इस बात की पूरी संभावना है कि वाराणसी कोर्ट के फैसले को मथुरा समेत अन्य विवादित स्थलों के मामलों में हिंदू पक्ष अपनी दलीलों में शामिल कर सकता है।
इतना ही नहीं, ओवैसी काफी पहले से आशंका जता चुके हैं, अयोध्या में मंदिर बनना शुरू होने के बाद शांत हो चुका मंदिर-मस्जिद विवाद फिर से जोर पकड़ सकता है। ऐसे में सवाल है कि क्या अब मंदिर पॉलिटिक्स का नया अध्याय शुरू हो सकता है। ज्यादा कुछ नहीं यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट पर नजर मार लीजिए। एक लाइन में उन्होंने लिखा, 'करवट लेती मथुरा, काशी!'
कब से चल रहा है मामला
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार मुकदमा 1991 में वाराणसी की अदालत में दाखिल किया गया था। याचिका में ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेशर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मामले के याचिकाकर्ता थे।
1991 में ही केंद्र सरकार ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया था। इस कानून के मुताबिक, आजादी के बाद इतिहासिक और पौराणिक स्थलों को उनकी यथास्थिति में बरकरार रखने का विधान है। मस्जिद कमेटी ने इसी कानून का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय की याचिका को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने 1993 में विवादित जगह को लेकर स्टे लगा दिया था और यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद स्टे के आदेश की वैधता को लेकर 2019 को वाराणसी कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा-दर्शन की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की।