भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया के राजा रामनुज सिंहदेव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। 1952 में सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया।
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए चीतों की सुरक्षा में प्रशिक्षित डॉग तैनात होंगे। इन्हें हरियाणा के पंचकूला में खास ट्रेनिंग दी जा रही है। कुत्तों के प्रशिक्षण का एक वीडियो भी सामने आया है। 10 दिन पहले चीतों को कूनो नेशनल पार्क लाया गया था। सभी आठ चीतों को अभी विशेष निगरानी में रखा गया है। अन्य जानवरों व शिकारियों से बचाने के उद्देश्य से विशेष प्रशिक्षित कुत्तों को इनकी सुरक्षा में तैनात किया जाएगा।
इन जर्मन शेफर्ड कुत्तों को पंचकूला स्थित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी) के राष्ट्रीय कुत्तों के प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षित किया जा रहा है। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल के बुनियादी प्रशिक्षण केंद्र के आईजी आईएस दुहान ने बताया कि विशेष प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के दौरान कुत्तों को बाघ की खाल और हड्डियों का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रशिक्षण WWF-इंडिया (वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया) के सहयोग से दिया जा रहा है।
देश में 1948 में आखिरी बार देखा गया था चीता
भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया के राजा रामनुज सिंहदेव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। 1952 में सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने 1970 में एशियाई चीतों को ईरान से लाने का प्रयास किया।
ईरान सरकार से बातचीत भी की गई लेकिन यह पहल सफल नहीं हो सकी। मगर अब नामीबिया से आठ चीतों को मोदी सरकार लेकर आई है। केंद्र सरकार की पांच साल में 50 चीते लाने की योजना है। बता दें कि कूनो नेशनल पार्क में चीते को बसाने के लिए 25 गांवों के ग्रामीणों अपना घर छोड़ना पड़ा।
कूनो नेशनल पार्क में चीतों की परवरिश हो रही है… वो भी बिल्कुल नवजात की तरह। यह बहुत जरूरी भी है। अगर ये सरवाइव कर गए, तो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बनेंगे और ऐसे ही विलुप्त होते जानवरों को एक महाद्वीप से दूसरे में शिफ्ट करने का रास्ता खुलेगा। इसीलिए भारत और नामीबिया के एक्सपर्ट 24 घंटे इन पर नजर बनाए हैं।
लेकिन क्या कुत्तो से चीते की रखवाली कराना उचित है....
बाहर गांव नामीबिया से कूनो आए चीते, मुसीबत हो गए. रोज का एक नया टंटा. हर घंटे का नया ड्रामा... मैटर बहुत क्लियर है. नामीबिया से पीएम मोदी के बर्थडे पर जो कंसाइनमेंट आया उसमें चीते थे. खुले में रहने वाले चीते. बेइंतेहा तेज दौड़ने वाले चीते. दिखने में क्यूट लेकिन हमला कर शिकार करने और अपना पेट भरने वाले चीते लेकिन यहां हिंदुस्तान में आने के बाद उनका वक़्त बदल गया. जज्बात बदल गए, कूनो में जैसा हाल चीतों का है कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे लोगों और मध्य प्रदेश की सरकार दोनों ने चीतों को भैंस, बकरी, मुर्गी, घोड़े से भी बदतर स्थिति में लाकर रख दिया है. नहीं मतलब अगर चीतों की सुरक्षा कुत्तों के भरोसे हो तो सवाल भी उठेंगे और सरकारी प्लानिंग पर क्वेश्चन मार्क भी लगेगा.
दरअसल एमपी के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए चीतों की सेफ्टी को ध्यान में रखकर उन्हें ट्रेंड डॉग्स के हवाले लिया जाएगा. फिलहाल इन कुत्तों को हरियाणा के पंचकूला में खास ट्रेनिंग दी जा रही है. कुत्तों की ट्रेनिंग का एक वीडियो भी जंगल में लगी आग की तरह सोशल मीडिया पर बड़ी ही तेजी के साथ शेयर किया जा रहा है. कहा जा रहा कि अन्य जानवरों व शिकारियों से बचाने के उद्देश्य से विशेष प्रशिक्षित कुत्तों को चीतों की सुरक्षा में तैनात किया जाएगा.
आगे इस मामले का पूरा पोस्टमार्टम होगा लेकिन उससे पहले हमारे लिए ये जान लेना भी जरूरी है कि वो कुत्ते जो चीतों के 'गार्जियन ऑफ गैलेक्सी' बनेंगे जर्मन शेफर्ड ब्रीड के होंगे जिन्हें पंचकूला स्थित आईटीबीपी के नेशनल डॉग ट्रेनिंग सेंटर पर ट्रेनिंग दी जा रही है.
चीतों की सिक्योरिटी के लिए कुत्ते! इस व्यवस्था में चीतों की शान बढ़ी या बेइज्जती हुई?
खैर सूंघने को लेकर तो कुत्तों के बारे में ये तक मशहूर है कि अगर हवा सही हो तो कुत्ता 20 किलोमीटर दूर तक की गंध सूंघ सकता है लेकिन जो मसला है वो है उनका कुत्तों का सिक्योरिटी गार्ड बनना. अरे भइया मानों न मानों लेकिन ये बात सिर्फ आपके या हमारे लिए नहीं बल्कि निजाम ए कुदरत के भी खिलाफ है. कुत्ता चाहे जर्मन शेफर्ड हो या फिर ग्रेट देन एक चीते के सामने तो वो कुत्ता ही है.
कह सकते हैं कि कितना भी सूखा या कुपोषित चीता हो कल को अगर कोई बात हो जाए तो वो कुत्ते के सामने बीस ही निकलेगा. कुत्ते, चीते की सुरक्षा में हैं इसपर आप और हम लॉजिकल से लेकर इल्लॉजिकल तक कई कई किलोमीटर के तर्क दे सकते हैं लेकिन एक बार, बस एक बार उन चीतों के विषय में सोचिये. क्या सिक्योरिटी के नाम पर इस सरकारी पहल के बाद बेचारे गरीब मजलूम चीतों की भावना आहत नहीं होगी?
बात बहुत सीधी है हमें और हमारी सरकार दोनों को इस बात को समझना होगा कि बाड़े में रखकर, इलेक्ट्रिक फेंसिंग लगाकर, अपने हाथों से जंगली चीतों को खाना परोसकर हम चीतों के साथ एक ऐसा मजाक कर रहे हैं जिसकी मरने के बाद भी बख्शीश नहीं है. यानी ये एक ऐसा मैटर है जिसके लिए कल की डेट में अगर नरक या स्वर्ग के चौकीदार हमें कोड़े भी मारें तो कम है.
अरे भइया अगर चीतों को चीतों की तरह ट्रीट किया जाए तो बुराई क्या है? रही बात उन जंगली चीतों की सिक्योरिटी की तो अगर उनकी इतनी ही फ़िक्र है तो उनकी सेवा में रेंजर लगाए जाएं लेकिन कुत्ते नहीं. खुद सोचिये अगर चीतों जैसे जीव की रक्षा अगर कुत्ते करें तो ये सुनने के साथ साथ देखने में भी अजीब लगेगा.