EWS आरक्षण का SC-ST और ओबीसी रिजर्वेशन पर कोई असर नहीं, सुप्रीम कोर्ट में बोली केन्द्र सरकार



न्यूज डेस्क |केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए ‘‘पूरी तरह से स्वतंत्र’’ आरक्षण को खत्म किए बिना आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को पहली बार सामान्य वर्ग की 50 प्रतिशत सीटों में से दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन का जोरदार बचाव करते हुए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस यू. यू. ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि इसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत कोटे में हस्तक्षेप किए बिना दिया गया है।


सामान्य वर्ग की कुल आबादी का 18 प्रतिशत EWS


वेणुगोपाल ने नीति आयोग द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ का हवाला देते हुए कहा कि कुल मिलाकर सामान्य वर्ग की कुल आबादी का 18.2 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस से संबंधित है। उन्होंने कहा, ‘जहां तक आंकड़े का सवाल है, तो यह कुल आबादी का लगभग 3.5 करोड़ होगा।’ वेणुगोपाल मामले में बुधवार को भी दलीलें पेश करेंगे।

सुनवाई की शुरुआत में गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण योजना का समर्थन करते हुए कहा कि यह लंबे समय से लंबित और सही दिशा में सही कदम है। वहीं, तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि निष्पक्षता का सिद्धांत और मनमानी नहीं किया जाना, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार बुनियादी ढांचे का हिस्सा है और केवल आरक्षण देने के लिए आर्थिक मानदंड तय करना, इसका उल्लंघन होगा।


तमिलनाडु ने EWS आरक्षण का विरोध करते हुए कहा-

हालांकि, तमिलनाडु ने EWS आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि वर्गीकरण का आधार आर्थिक मानदंड नहीं हो सकता है और अगर सुप्रीम कोर्ट EWS आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला करता है तो उसे इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए। आरक्षण के अलावा सरकार की सकारात्मक कार्रवाई पर प्रकाश डालते हुए वेणुगोपाल ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख किया और कहा कि एससी और एसटी समुदाय को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण दिया गया है। पीठ में जज दिनेश माहेश्वरी, जज एस. रवींद्र भट, जज बेला एम. त्रिवेदी और जज जे.बी. पारदीवाला भी शामिल हैं।


EWS को यह आरक्षण पहली बार दिया गया है'

अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा, ‘‘EWS को यह (आरक्षण) पहली बार दिया गया है। दूसरी ओर जहां तक एससी और एसटी समुदाय का संबंध है, उन्हें सरकार की सकारात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से लाभान्वित किया गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस सामान्य वर्ग की एक बड़ी आबादी, जो शायद अधिक मेधावी है, शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में अवसरों से वंचित हो जाएगी (यदि उनके लिए आरक्षण समाप्त कर दिया जाता है)।’’ वेणुगोपाल ने एसईबीसी और सामान्य वर्ग के EWS श्रेणी के बीच भेद करने पर जोर देते हुए कहा कि दोनों असमान हैं और समरूप समूह नहीं हैं। उन्होंने कहा कि EWS आरक्षण अलग है।

अदालत ने पूछा ये सवाल

पीठ ने पूछा, ‘‘क्या आपके पास कोई आंकड़ा है जो EWS को खुली श्रेणी में दर्शाता है, उनका प्रतिशत कितना होगा?’’ वेणुगोपाल ने नीति आयोग द्वारा उपयोग किए जाने वाले ‘बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ को संदर्भित करते हुए कहा कि कुल मिलाकर सामान्य वर्ग की कुल आबादी का 18. 2 प्रतिशत EWS से संबंधित है। उन्होंने कहा, ‘‘ जहां तक आंकड़े का सवाल है, तो यह कुल आबादी का लगभग 3.5 करोड़ होगा।’’

वेणुगोपाल मामले में बुधवार को भी दलीलें पेश करेंगे। सुनवाई की शुरुआत में गैर-सरकारी संगठन (NGO) ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने EWS आरक्षण योजना का समर्थन करते हुए कहा कि यह ‘‘लंबे समय से लंबित’’ और ‘‘सही दिशा में सही कदम’’ है। वहीं, तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि निष्पक्षता का सिद्धांत और मनमानी नहीं किया जाना, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार बुनियादी ढांचे का हिस्सा है और केवल आरक्षण देने के लिए आर्थिक मानदंड तय करना, इसका उल्लंघन होगा।


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