करीब 74 साल बाद देश में चीतों की वापसी हो रही है. नामीबिया से भारत लाए जा रहे 8 चीतों को आज मध्यप्रदेश के श्योपुर में बने कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में छोड़ा जाएगा. चीतों को नेशनल पार्क में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रिलीज करेंगे, लेकिन इससे पहले ही एक विवाद शुरू हो गया है.
चीतों के नये घर श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में जमीन को लेकर यह विवाद पनपा है. दरअसल, अभ्यारण्य के लिए दी गई जमीन को लेकर पालपुर राजघराने के वंशजों ने कोर्ट में याचिका लगाई है जिसकी 19 सितंबर को सुनवाई होगी.
राजघराने के वंशजों की ओर से दी गई याचिका में कहा गया है कि यह जमीन शेरों को रखने के लिए दी गई थी, लेकिन अब इस सेंचुरी में चीते लाए जा रहे हैं. पालपुर राजघराने के वंशज ने वीडियो जारी कर अपना दर्द सुनाते हुए कहा, ''या तो हमें अपनी जमीन वापस दी जाए या सेंचुरी (अभयारण्य) में शेर लाए जाएं.''
नौ साल तक श्याेपुर के कलेक्टर मामले को टालते रहे
दरअसल पालपुर रियासत के वंशज शिवराज कुंवर, पुष्पराज सिंह, कृष्णराज सिंह, विक्रमराज सिंह, चंद्रप्रभा सिंह, विजयाकुमारी आदि ने ग्वालियर हाईकोर्ट में कूनो सेंक्चुरी के लिए की गई भूमि अधिग्रहण के खिलाफ साल 2010 में ग्वालियर हाईकोर्ट में याचिका (क्रमांक 4906/10) लगाई थी। हाईकोर्ट ने याचिका में दिए गए तथ्यों पर संतुष्टि जाहिर करते हुए कहा था, कि यह मामला शेषन कोर्ट का है, सीधे हाईकोर्ट इस तरह के मामलों में सुनवाई नहीं करता। इसीलिए कोर्ट ने साल 2013 में श्योपुर कलेक्टर के मार्फत इस मामले को विजयपुर शेषन कोर्ट में ले जाने के निर्देश दिए थे। लेकिन 2013 से श्योपुर में पदस्थ कलेक्टर इस मामले को टालते रहे। पालपुर रियासत के वंशजों ने साल 2019 में श्योपुर कलेक्टर के खिलाफ हाईकोर्ट की अवमानना की कार्रवाई शुरू की तब तात्कालीन श्योपुर कलेक्टर ने आनन-फानन में विजयपुर शेषन काेर्ट में मामला भेजा। पालपुर रियासत का आरोप है कि कलेक्टर ने गलत जानकारी के साथ मामला पेश किया। हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना के खिलाफ ही पालपुर राजघराने ने विजयपुर कोर्ट में याचिका लगाई है। जिसकी पहली सुनवाई 8 सितंबर को हुई और अलगी तारीख कूनो में चीते आने के दो दिन बाद यानी 19 सितंबर की लगी है।
याचिका में यह लगाई गईं हैं आपत्तियां
- सिंह परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना 1981 में जारी हुई। अधिसूचना के दो साल में अधिग्रहित की गई सम्पत्ति का अवार्ड जारी करना होता है, लेकिन जिला प्रशासन ने लगभग 30 साल बाद यह अवार्ड जारी किया, इस लिहाज से अधिग्रहण की कार्रवाई ही नियमानुसार नहीं।
- कूनो-पालपुर सेक्चुरी में 220 बीघा सिंचित-उपजाऊ जमीन अधिग्रहित की गई थी, जिसके बदले में 27 बीघा जाे असंचित, ऊबड़-खाबड़, पथरीली जमीन दी है।
- 220 बीघा जमीन के बीच पालपुर रियासत का ऐतिहासिक किला, बावड़ी, मंदिर आदि सम्पत्ति है, जिसका अधिग्रहण में कोई जिक्र नहीं, नहीं कोई मुआवजा मिला, फिर भी सरकार इन सम्पत्तियों का उपयोग कर रही है। याचिका में यह भी कहा गया है, कि अपने पुश्तैनी किले, मंदिर की पूजा के लिए जाने पर सेंक्चुरी प्रशासन 2000 रुपये शुल्क लेता है, तब जाने दिया जाता है।
वर्जन
- हमने अपनी जमीने जंगल बचाने के लिए दी थी। शेर घने जंगल में रहते हैं, शेर आते तो जंगल बचता। अब चीते आ रहे हैं, जिनके लिए बड़े-बड़े मैदान बनाने के लिए कई पेड़ काटे जा रहे हैं। कूनो में जमीनों का अधिग्रहण सिंह परियोजना के लिए हुआ था, अधिग्रहण की कार्रवाई भी सही नहीं हुई। हमारी दलीलों को हाईकोर्ट ने सही माना और हमें निचली अदालत में जाने को कहा, पर श्योपुर कलेक्टर ने सालों तक मामला अटकाए रखा। इस मामले की पहली सुनवाई 8 सितंबर को हो चुकी है, अगली तारीख 19 सितंबर की लगी है।
श्रीगोपाल देवसिंह, वंशज, पालपुर रियासत
क्या है राजपरिवार का दावा?
राज परिवार की तरफ से दायर याचिका में कूनो नेशनल पार्क के अंदर प्रशासन द्वारा अधिग्रहित राज परिवार के किले और जमीन पर कब्जा वापस करने की मांग की गई है. पालपुर राजघराने का दावा है कि उन्होंने अपना किला और जमीन शेरों के लिए दी थी, न कि चीतों के लिए. शेर आते तो जंगल बचता, लेकिन अब चीतों के लिए मैदान बनाए जा रहे हैं और पेड़ काटे जा रहे हैं.
राज परिवार की तरफ से कहा गया है कि जब कूनो को गिर शेरों को लाने के लिए अभयारण्य घोषित किया गया तो उन्हें अपना किला और 260 बीघा भूमि खाली करनी पड़ी. पालपुर राजघराने के वंशजों ने अपनी पुश्तैनी संपत्ति वापस पाने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.