Women Empowerment: नोएडा में गोदी में बच्चा लेकर ई-रिक्शा चलाती 27 साल की महिला, फिल्म नहीं सच्ची है घटना



मां से बड़ी इस दुनिया में कोई शक्ति नहीं है. अपने बच्चे के लिए एक मां पूरी दुनिया से लड़ सकती है. मां को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. मां की शक्ति का अद्भुत परिचय नोएडा की सड़कों पर देखने को मिला. नोएडा की सड़कों पर एक महिला अपने बच्चे को गोद में बैठा कर ई-रिक्शा चलाती (Baby Strapped Noida Mother Drives E-Rickshaw) हुई नज़र आई

नोएडा: नोएडा के सिंगल मॉम की कहानी आपको फिल्मी लग सकती है, लेकिन यही सच है। एक बच्चे को कंधे में लटकाए जीवन में सफलता के लिए संघर्ष का उदाहरण हैं चंचल शर्मा। सड़क पर जैसे उसके ई-रिक्शा के पहिए आगे बढ़ते हैं, वैसे ही उनके जीवन की गाड़ी भी आगे बढ़ती है। सफलता की ओर। जिद सफल होने की हो। भले ही वह बड़े स्तर पर न हो। चेहरा अपनों का सामने हो तो सफलता के लिए मेहनत कुछ अलग ही लेवल की हो जाती है। ऐसा ही कुछ चंचल शर्मा के मामले में भी देखने को मिल रहा है। नोएडा की इस सिंगल मॉम ने अपने जीवन को बच्चे के बेहतर जीवन के लिए तय कर लिया है। अब उस दिशा में काम करती दिख रही है। पुरुषों के बर्चस्व वाले ई-रिक्शा चलाने के कार्य में वह अपनी अलग पहचान बनाती दिख रही हैं।


चंचल शर्मा को अगर आप सड़क पर देखेंगे तो उन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल हो जाएगा। कंधे के सहारे बंधा बच्चा और स्टीयरिंग को मजबूती से थामे, चंचल मानो जिंदगी के तमाम संघर्ष को जीत लेने की जिद में आगे बढ़ती नजर आती हैं। चंचल अहले सुबह से ही अपने दिन को जीतने की जिद की शुरुआत करती हैं। वह अपने दिन की शुरुआत सुबह 6.30 बजे से करती हैं। गाड़ी को निकलना और रोड पर ले आकर यात्रियों की उम्मीद में जुटती हैं। दोपहर में बच्चे को नहलाने के लिए घर आती हैं। दोपहर का भोजन के बाद फिर उनकी गाड़ी सड़क पर होती है। बच्चे को भूख लगे तो निपटने के लिए दूध का बोतल साथ में होता है। चंचल सेक्टर 62 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल और सेक्टर 59 में लेबर चौक के बीच अपना ई-रिक्शा चलाती हैं। करीब 6.5 किलोमीटर के बीच उनकी ई-रिक्शा दौड़ती रहती है।

हर कामकाजी की तरह ही चंचला का भी दर्द


नोएडा की 27 वर्षीय चंचला शर्मा का दर्द वही है, जो देश की लाखों कामकाजी माताओं का दर्द होता है। अगर कोई महिला अपने बच्चे को क्रेच या डेकेयर में रखने का खर्च नहीं उठा सकती हैं तो उन्हें काम करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। बेटे अंकुश के जन्म के डेढ़ माह बाद पिछले साल चंचला ने नौकरी तलाशनी शुरू की, तो उनके सामने भी यही समस्या थी। बाद में उन्होंने ई-रिक्शा लिया। यह एक ऐसा काम था, जहां वह अपने बच्चे को ले जा सकती थी। साथ रख सकती थी। चंचला कहती हैं कि मैं अपने बेटे को वह जीवन देना चाहती हूं, जो मेरे पास नहीं है।


सभी ने की चंचला के प्रयास की सराहना
चंचला ने ऐसा पेशा चुना है, जिसमें मुख्य रूप से पुरुषों का बर्चस्व है। इसके बाद भी वह अपने काम के प्रति समर्पित हैं। वह जिस रूट पर ई-रिक्शा चला रही हैं, वहां केवल वही महिला चालक हैं। इसके बाद भी वे अपने काम को आगे बढ़ाने में जुटी हुई हैं। कंधे से बच्चे को बांधकर ई-रिक्शा चलाती चंचला हर किसी का ध्यान अनायास ही आकर्षित करती हैं। वे कहती हैं कि मेरे वाहन में सवारी करने वाले यात्रियों ने सभी की सराहना की है। वे कहते हैं कि मैं अपने दम पर चीजों को मैनेज कर रही हूं। महिला यात्री भी मेरे ई-रिक्शा को पसंद करती हैं।


पति से अलग रहती हैं चंचला
चंचला अपने पति से अलग हो गई हैं। वह एक कमरे में अपनी मां के साथ रहती हैं। चंचला कहती हैं कि बेटे अंकुश को मैं घर पर नहीं छोड़ सकती। मेरी मां एक ठेले पर प्याज बेचती हैं। मेरा भाई शायद ही घर पर होता है। इसलिए, जब मैं गाड़ी चलाती हूं तो मुझे अपने बेटे को साथ ले जाना पड़ता है। चंचला की तीन बहनें हैं, वे शादीशुदा हैं और अपने परिवार के साथ दूर रहती हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई करने वाली चंचला का कहना है कि वह एक दिन में 600 से 700 रुपये कमाती है। इसमें से 300 रुपये उस निजी एजेंसी को जाते हैं, जिसने उन्हें बैटरी से चलने वाले वाहन के लिए कर्ज दिया है।


चंचल का कहना है कि जब भी संभव होता है मैं अंकुश को अपनी बहनों या अपनी मां के साथ छोड़ देती हूं, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। महीने में सिर्फ 2-3 दिन ऐसा हो पाता है। वे भी अपने जीवन में व्यस्त हैं। वे कहती हैं कि इस साल भीषण गर्मी का मौसम उसके और अंकुश के लिए काफी कठिन थे। गर्मी ने उस पर काफी असर डाला। मेरे गाड़ी चलाने पर वह रोता रहता था।

किराना या कपड़े का दुकान खोलने का था इरादा
चंचल बताती हैं कि भीषण गर्मी के दिनों में मैंने बेटे को मां के पास छोड़ने की पूरी कोशिश की। लेकिन, वह बच्चा है। एक बच्चा अपनी मां से कितना देर दूर रह सकता है। चंचल कहती हैं कि मैंने कुछ समय तक छोटी किराना या कपड़े की दुकान खोलने का इरादा किया था। इससे बेटे की देखभाल आसानी से हो सकती थी। लेकिन, पूंजी के अभाव में ऐसा हो नहीं पाया। चंचल पूरे विश्वास के साथ कहती हैं कि मैं अपने बेटे को वह जीवन देने के लिए लगातार काम कर रही हूं, जो मुझे नहीं मिला। हालांकि, एक निश्चित आय नहीं होने से वे चिंतित हैं। कहती हैं, आगे के खर्चों को लेकर चिंता होती है।

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