World Suicide Prevention Day 2022: मरने वाले से पूछिए जिंदगी की कीमत, फिर क्यों बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले? जानिए




आत्महत्या कभी भी किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता। जीवन बहुत अनमोल है, दुनिया भर की दौलत लूटाकर भी हम एक पल का जीवन खरीद नहीं सकते हैं। ज़िंदगी का मोल उससे पूछो जिनके पास चन्द लम्हों का जीवन बचा हो और वो खूब जीना चाहते हैं। ज़िंदगी जिंदादिली का नाम है, और आत्महत्या कायरता और बुजदिली का नाम है। हमारी ज़िंदगी दूसरों की देन है, इसे खत्म करने का हक़ हमे नहीं है। विश्व के सभी प्रकार के प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो अन्य प्राणियों के मुकाबले शारीरिक और मानसिक तौर मजबूत होकर भी आत्महत्या जैसा गलत कदम उठाता है। समय लगातार परिवर्तनशील है, वो कभी भी एक सा नहीं रह सकता, समय बलवान है, यह हर चीज सीखा देता है, वक्त अच्छा हो या बुरा, बदलेगा जरूर।

बहुत बार बुरे वक्त के लिए मनुष्य खुद जिम्मेदार होता है जैसे – गलत काम, नियमों की अवहेलना, असभ्य व्यवहार, संस्कारों से दूरी, अपराध, भावनाओं में बह जाना, बिना सोचे-समझे निर्णय लेना, दूसरों पर निर्भरता या जरुरत से ज्यादा विश्वास, लापरवाही, लत, नशाखोरी, गलत संगत, दिखावा, लालच, सहनशीलता और संतोष की कमी, नकारात्मक विचार या खुद को कमजोर समझना, गुस्सैल स्वभाव व अन्य अनेक बातें हमें तकलीफदेह परिस्थिति में डाल देती है।

ज़िंदगी में एक बात कभी मत भूलना कि गुस्से और ख़ुशी में भावनाओं में बहकर कभी भी कोई निर्णय या वादा ना करें।




साल 1970 में एक फिल्म आई थी, इसमें मुख्य अभिनेता राजेश खन्ना गंभीर बीमारी से जूझ रहे होते हैं, डॉक्टर उन्हें अस्पताल में एडमिट होने की सलाह देते हैं, तो अविनाश (राजेश खन्ना) कहते हैं- ' डॉक्टर साब, मैं मरने से पहले मरना नहीं चाहता।'


यह लाइन मुझे बहुत आकर्षित करती है, विशेषरूप से तब, जब समाचारों में आत्महत्या के मामलों के बारे में पढ़ता या लिखता हूं। इस पंक्ति का भाव यह है कि भले ही मौत अटल सत्य पर है, इस दुनिया में कौन है जो मरना चाहता है? अस्पताल में कैंसर का इलाज करा रहे मरीज से पूछिए जिंदगी की क्या कीमत है? आखिरी सांस गिन रहा व्यक्ति भी चाहता है, काश दो पल और मिल जाएं। फिर बड़ा सवाल यह कि आखिर वह क्या परिस्थितियां हैं जिसमें किसी व्यक्ति के लिए आत्महत्या करना ही आखिरी विकल्प बचता है? जीवन से अपार प्रेम रखने वाले इंसान की आत्महत्या के विचार आने में कितनी गंभीर मनोस्थिति होती होगी?

कल विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस था, दुनियाभर में बढ़ती आत्महत्या को रोकने को लेकर लोगों को जागरूक करने के लक्ष्य से हर साल 10 सितंबर को यह खास दिन मनाया जाता है। हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने डेटा जारी करके बताया कि साल 2021 में देश में 1.64 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। औसतन लगभग 450 आत्महत्या रोजाना या हर घंटे करीब 18 केस। कोरोना महामारी से पहले के वर्षों की तुलना में साल 2020-21 में ये आंकड़े बढ़े हैं। यह निश्चित ही बेहद गंभीर है, आत्महत्या के बढ़ते मामलों के साथ, इसके कारकों पर गंभीरता से चर्चा किए जाने की आवश्यकता है।


इंसानी स्वभाव कुछ विषयों को लेकर बहुत संवेदनशील होता है। हम हमेशा खुश दिखें, लोग हमारे बारे में अच्छा ही सोचें, हम कभी कमजोर न पड़ें, ऐसे तमाम प्रयास सतत रूप से करता रहता है, पर क्या वास्तव में सबकुछ जैसा आप सोचते हैं वैसा ही होता रहे, ऐसा संभव है? आप खुद से ही इसका जवाब मांगिएगा, हर बार आपको 'नहीं' सुनने को मिलेगा। पर यह 'नहीं' जब ज्यादा प्रभावी होने लगता है तो इसका असर हमारे मन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आप तमाम किताबों को खंगालिए, उसके सार के प्रमुख बिंदुओं में एक संदेश बहुत प्रभावी है, जिसपर गंभीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है। मैंने जितनी किताबें पढ़ीं, जितने विशेषज्ञों से बात किया और मानसिक स्वास्थ्य को कैसे बेहतर रखा जाए, इस बारे में मेरी जो समझ है इन सबका लब्बो-लुआब यह है कि-
 
शरीर और मन के साथ जो भी प्राकृतिक रूप से हो रहा है, उसे उसी रूप में होने देना चाहिए, इसमें अनावश्यक छेड़छाड़ करना या इन्हें दबाने की कोशिश हमेशा नुकसानदायक ही होती है।


मसलन यदि आपको रोना आ रहा है, खुशी महसूस हो रही है, गुस्सा आ रहा है या किसी बात को कहने का दिल है तो यथोचित रूप से इन भावनाओं को प्रेषित कर देना चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो संभव है यह तनाव-चिंता जैसे विकारों को जन्म दे सकती है। समय के साथ इन विकारों के गंभीर रूप लेने का खतरा होता है, बढ़ते आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से इसे एक माना जा सकता है। 

कई सेलिब्रिटीज ने भी स्वीकारी आत्महत्या के ख्याल आने की बात

हाल ही में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के एक इंटरव्यू में खुलासा किया कि एक समय ऐसा था जब वह गंभीर अवसाद की शिकार थीं, इतनी गंभीर कि उन्होंने आत्महत्या तक के प्रयास किए।  

दीपिका ने इंटरव्यू में बताया, करियर के बेहतर दिनों में भी वह अवसाद का शिकार थीं, चूंकि सब कुछ ठीक चल रहा था, इसलिए कोई स्पष्ट कारण नहीं था जिसके चलते उन्हें इसकी गंभीरता का एहसास हो सके। वह कहती हैं-
 
कई बार मैं जागना नहीं चाहती थी क्योंकि मेरे लिए नींद ही इन समस्याओं से बचने का एक जरिया था। इस दौरान कई बार विचार आते थे कि ये जीवन व्यर्थ है, इसे खत्म कर देना चाहिए। मेरे माता-पिता बेंगलुरु में रहते हैं और हर बार जब उनसे बात होती तो मैं ऐसे दिखाती थी कि सब कुछ एक दम बढ़िया चल रहा है। अमूमन हर कोई ऐसा ही करता है, सभी अपने माता-पिता को यही दिखाना चाहते हैं कि सब कुछ बेहतर है, भले ही आप अंदर से कितने भी परेशान क्यों न हों। मैं भी वैसा ही कर रही थी लेकिन एक दिन जब वो मुझसे मिलकर बेंगलुरु वापस जा रहे थे तब मैं टूट गई और रो पड़ी। इसके बाद मां ने इसके कारणों को जानने के खूब प्रयास किए। 

दीपिका कहती हैं, 'मैं उन्हें क्या जवाब देती, क्योंकि असल में मुझे भी कुछ खास पता नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है, हां बस सब कुछ खाली सा लगता रहता था। मां ने मेरी परेशानियों को समझा, मुझे विशेषज्ञ के पास ले गईं, दवाइयां चलीं। आखिर में वह कहती हैं- मेंटल इलनेस को हमारे समाज में अलग नजर से देखा जाता है यह मेरे लिए भी डर का कारण था कि लोग क्या सोचेंगे?

सिर्फ दीपिका ही नहीं, अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती, बिग-बॉस सीजन 14 की विजेता रुबीना दिलैक, फिल्म जर्सी की अभिनेत्री मृणाल ठाकुर, इलियाना डिक्रूज, उर्फी जावेद ने भी इंटरव्यूज में इस बात को स्वीकारा है कि जीवन के एक क्षण में उन्हें भी आत्महत्या के विचार परेशान कर रहे थे, या उन्होंने आत्महत्या के प्रयास किए। इस कंफेशन से दो प्रमुख बातें सामने आती हैं।


पहला- दुनिया के सामने भले ही आप हंसते-मुस्कुराते दिख रहे हों, पर हो सकता है इसके पीछे आप दर्द का अंबार लेकर चल रहे हों, जिसे समय पर पहचानना और इससे बचाव के तरीके ढूंढना बहुत आवश्यक है।
 

दूसरा- इंसान होने के नाते हमें अपने आसपास के लोगों की मनोस्थिति का ध्यान रखना चाहिए, उसका सम्मान करना चाहिए। अगर आपको लगता है कि कोई मानसिक तौर पर परेशान है तो उसकी यथासंभव सहायता की जानी चाहिए। ऐसा करके हम शायद एक संभावित आत्महत्या को रोक सकें।

आत्महत्या के विचार, गंभीर स्थिति का सूचक

सुबह आंख खुलने के साथ ही मन में आने वाले पहले विचार से लेकर रात में नींद आने के आखिरी सेकेंड्स तक हम अपने जीवन को कैसे बेहतर रख सकते हैं, इसी बारे में मंथन करते रहते हैं। मतलब-हमारे लिए जीवन सबसे कीमती है। 

मैं पिछले दिनों आध्यात्म की एक किताब पढ़ रहा था, उसके एक अंश में यमराज और जीवन के आखिरी क्षणों वाले व्यक्ति के संवाद के अंश ने मुझे बहुत प्रभावित किया। इससे भी पता चलता है कि जीवन की हमारे लिए क्या महत्ता है।
 
व्यक्ति काफी समृद्ध था, यमराज से कहता है- आप 1 करोड़ रुपये ले लीजिए और एक साल और जीने की मोहलत दे दीजिए। यमराज मना कर देते हैं। फिर अगला प्रस्ताव 5 करोड़-10 करोड़ और लगातार बढ़ता जाता है। अंत में हारकर व्यक्ति कहता है- मुझे बस एक क्षण दे दीजिए मैं अपने बेटे को एक संदेश देना चाहता हूं। यमराज ने कुछ विचार करके इस प्रस्ताव को स्वीकार पर दो मिनट का वक्त दिया।
व्यक्ति अपने बेटे से आखिरी संदेश में कहता है- मेरे पास अथाह संपत्ति है, पर आज मुझे समझ आ रहा है कि उसकी पूरी कीमत से मैं एक अतिरिक्त सांस भी नहीं खरीद सकता। जीवन सबसे अनमोल है बेटा, इसे सार्थक बनाने का प्रयास करना।

इस संवाद के यहां जिक्र का उद्देश्य जीवन के मोल पर प्रकाश डालना था। जब जीवन इतना कीमती है, तो सोचिए क्या आत्महत्या करके स्वयं से जीवन को खत्म करने का प्रयास इतना आसान होता होगा? वह मनोस्थिति कितनी भयावह होगी, अंदर तक तोड़ देने वाली? 

पर आत्महत्या को रोका जा सकता है। अगर हम अपने आसपास के लोगों की मनोस्थिति को सहजता और गंभीरता के साथ समझने का प्रयास करना शुरू कर दें। अगर समय पर जिस तरह से दीपिका को उनकी मां का साथ मिला, ऐसा हर किसी को किसी का साथ मिल जाए तो निश्चित ही एक बेशकीमती जान को बचाया जा सकता है। और यकीन मानिए अगर आप किसी आत्महत्या को रोकने में सफल हो जाते हैं तो यह आपको ऐसी खुशी का एहसास कराएगी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 

आत्महत्या के आंकड़े डराने वाले

आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दुनियाभर में हर साल लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। साल 2019 में 139,123 भारतीयों ने आत्महत्या की, इस साल राष्ट्रीय आत्महत्या दर 10.4 (प्रति लाख जनसंख्या पर गणना) थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में आत्महत्या एक उभरती हुई और गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह आंकड़े स्पष्ट बताते हैं कि इन 8 लाख लोगों को समय पर कोई ऐसा साथ नहीं मिला जो नकारात्मक विचारों को बदलने में उनकी मदद कर  सके।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर पिछले कुछ वर्षों में देश में सहजता से बात की जाने लगी है, यह निश्चित ही जरूरी और सराहनीय पहल है, पर चिंताजनक बात यह है कि अब तक देश में आत्महत्या की रोकथाम को लेकर कोई नीति नहीं है। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 2022 से ठीक एक दिन पहले (9 सितंबर 2022) को महत्वपूर्ण पहल करते हुए जरूर मध्यप्रदेश सरकार ने आत्महत्या रोकथाम के लिए रणनीति का डॉक्यूमेंट तैयार का ऐलान किया है। ऐसा करने वाला यह देश का पहला राज्य होगा। निश्चित ही यह पहल स्वागतयोग्य है।

आत्महत्या रोकथाम को लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञ कहते हैं- आप किसी को देखकर इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है, पर अगर किसी के व्यवहार में कुछ भी अप्रत्याशित सा लगे तो इस बारे में बात जरूर करें, शायद आपके सहयोग से उसे बल मिले और आप आत्महत्या रोकने का निमित्त बन सकें।

सोशल मीडिया के सिपाही बरतें गंभीरता

आत्महत्या की रोकथाम के लिए सोशल मीडिया पर सजगता दिखाना भी नितांत आवश्यक विषय है, मतलब किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में आत्महत्या के महिमामंडन से बचने की आवश्यकता है। आत्महत्या के तरीके या तस्वीरों को शेयर करते समय जरूर सोचें, क्या हम जाने-अनजाने किसी व्यक्ति को इस तरह के कृत्य का रास्ता नहीं बता रहे? विक्टिम के बारे में अति भावनात्मक प्रतिक्रिया देने से भी परहेज करें। सोशल मीडिया के साथ-साथ सामाजिक तौर पर भी इस बारे में संवेदनशीलता आवश्यक है।
 
मानसिक स्वास्थ्य समस्या गंभीर विषय है, पीड़ितों के प्रति जजमेंटल होने की जगह उनकी परेशानियों को कम करने के लिए प्रयास करिए। दूसरों की मदद करने के बाद मन को गजब की शांति मिलती होती है और यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति की मदद कर रहे हैं, जो आत्महत्या के ख्यालों से परेशान है, तो यकीन मानिए इससे अर्जित खुशी अतुलनीय होगी।  

इस लेख के आखिर में आपसे एक बात साझा करना चाहता हूं- मैं स्वयं भी एक समय में गंभीर अवसाद का शिकार रहा हूं, आत्महत्या के ख्याल भी आते थे। समय पर विशेषज्ञों का साथ मिला, इलाज हुआ, सबकुछ समय के साथ ठीक हुआ। अब जब पीछे मुड़कर उन दिनों का याद करता हूं, तो एक निष्कर्ष पर पहुंचता हूं-
 
मानसिक स्वास्थ्य का बिगड़ना, उतना ही सामान्य है जितना आज के समय में डायबिटीज-हृदय रोग होना।जैसे इन रोगों का इलाज होता है, उसी तरह अवसाद और आत्महत्या के विचार आने की मनोस्थिति को भी ठीक किया जा सकता है। बस समय पर अपनी समस्या को पहचानिए, अपनों से शेयर करिए और मनोरोग विशेषज्ञ से जरूर मिलिए, कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा। यकीन मानिए इलाज के बाद आप जीवन के सबसे खूबसूरत दौर में होंगे, दोगुने आनंद में, जिंदगी बहुत सुसंगठित होगी, आप बहुत बेहतर महसूस कर रहे होंगे। ये मेरे व्यक्तिगत अनुभव हैं, मैं फिलहाल अपने जीवन के सबसे खूबसूरत दौर का आनंद ले रहा हूं। 









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