फसल अवशेष प्रबंधन : अब किसानों को पराली जलाना पड़ सकता है महंगा


एनजीटी के आदेशानुसार फसल अवशेष (पराली) जलाना अपराध, क्षतिपूर्ति वसूलने के निर्देश- डीएम


बस्ती । राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेशानुसार फसल अवशेष जलाना एक अपराध है। पर्यावरण विभाग द्वारा पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर क्षतिपूर्ति वसूलने का निर्देेश है। उक्त जानकारी जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन ने दी है। उन्होने बताया कि 02 एकड़ से कम क्षेत्र पर रू0 2500, 2 से 5 एकड़ क्षेत्रफल के लिए रू0 05 हजार तथा 05 एकड़ से अधिक भूमि के लिए रू0 15 हजार पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूली की जायेंगी। 

 उन्होने बताया कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी फसल अवशेष जलाये जाने से हो रहे वायु प्रदूषण की रोकथाम को अनिवार्य किया गया है। प्रदेश के मुख्य सचिव ने इस संबंध में विस्तृत आदेश जारी करते हुए जनपद स्तर तथा प्रत्येक तहसील में उप जिलाधिकारी के देखरेख में सचल दस्ता गठित करने का निर्देश दिया है। 

 जिलाधिकारी ने कहा है कि इस संबंध में किसानों को जागरूक करने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार प्रत्येक विभाग करायेंगा। जागरूकता गोष्ठियों में इस संबंध में किसानो को जानकारी दी जायेंगी। तहसील एवं विकास खण्ड में सभी लेखपाल, ग्राम प्रधान, ग्राम सचिव एवं अन्य कर्मचारियों को व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया जायेंगा। कही भी पराली जलाये जाने की सूचना संबंधित कर्मचारी इस गु्रप में शेयर करेंगे ताकि उस पर तत्काल कार्यवाही की जा सकें। 

 उन्होने सभी थाना प्रभारी तथा लेखपालों को निर्देशित किया है कि फसल अवशेष जलाने की घटना पर प्रभावी नियंत्रण करें। उन्होने कहा कि पराली जलाये जाने पर राजस्व अनुभाग तथा एनजीटी की धारा-24 के अन्तर्गत दण्डित करने की कार्यवाही की जाय। साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि फसल कटायी के दौरान कम्बाइन में सुपरस्ट्रा रिपर लगाना अनिवार्य होंगा। इसके बिना कोई कम्बाईन न चलें। इस व्यवस्था का अनुपालन कराने के लिए जिलाधिकारी ने अपर जिलाधिकारी वित्त एंव राजस्व की अध्यक्षता में जिला एवं तहसील स्तरीय समिति उप जिलाधिकारी के अध्यक्षता में गठित कर दिया है।

मशीनों से धान की कटाई के कारण बढ़ी पराली की समस्‍या

दरअसल धान की फसल के कटने के बाद बाकी बचा हुआ हिस्‍सा पराली होता है कई जगहों पर इसे पइरा भी कहते हैं। इसको जलाने का नया रिवाज शुरू हो गया है। जिसकी जड़ें भूमि में होती हैं। धान की फसल पकने के बाद किसान फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी अवशेष होते हैं जो किसान के लिए बेकार होता है। दरअसल धान की फसल कटने के बाद किसान खेतों में गेंहू की बिजाई करते हैं जिस कारण उन्हें खेत खाली करने की जल्दी होती है। किसान दिसंबर तक ही गेंहू की बिजाई कर सकते हैं क्योंकि उसके बाद बिजाई हुई तो फसल ठीक नहीं होती। इसी वजह से किसान खेतों में पड़ी पराली को आग लगा देते हैं। दोनों फसलों को तैयार होने में 6-6 महीने का वक्त लगता है। यह समय धान की फसल कटने के बाद गेहूं की फसल के लिए खेत तैयार करने का होता है। पिछले कुछ वर्षो से खेतों में पराली ज्यादा होने की वजह यह भी है कि किसान अपना समय बचाने के लिए ज्यादातर मशीनों से धान की कटाई करवाते है। मशीनें धान का सिर्फ उपरी हिस्सा काटती हैं और और नीचे का हिस्सा भी पहले से ज्यादा बचता है। किसान अगर धान को मजदूरों से या स्वयं काटे तो खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है। बाद में किसान इस पराली को चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

भूमि की उवर्रकता बढ़ाने में पराली का ऐसे करें इस्‍तेमाल

पर्यावरण विशेषज्ञ के अनुसार पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन (रपट) द्वारा काटकर खेत में उसी रपट द्वारा बिखेरा जा सकता है। इससे अगली फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को मशीनों से उखाड़कर एक जगह 2-3 फ़ीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं। उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया,गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिड़क दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाएं, अगर केंचुए भी खड्ड में छोड़ सकें तो और भी अच्छा है। आखिरी तह को मिट्टी के घोल में तर पॉलिथीन से ढक देना चाहिए। इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है। खेतो में पराली जलाने से मिट्टी की उपरी सतह जल जाती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगली फसल के लिए ज्यादा पानी, खाद कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर किसान खेतों में पराली दबा देते हैं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम नहीं होगी, यही पराली खाद का काम करेगी और जहरीली खाद नहीं डालनी पड़ेगी। ऐसी जमीन में बीजी गई अगली फसल को भी कम पानी देना पड़ेगा।

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