धान, गेंहू की पराली जलाना देश के उत्तरी क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं में से एक है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। रबी फसल की बुवाई हेतु खेतों को साफ करने के लिए वर्तमान में पंजाब और हरियाणा में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है क्योंकि धान की फसल की कटाई और अगली फसलों की बुवाई के बीच बहुत कम समय (2 से 3 सप्ताह) मिलता है। इस क्षेत्र के किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2018 में सीआरएम योजना (फसल अवशेष प्रबंधन) की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत किसानों को सीएचसी (कस्टम हायरिंग सेंटर) की स्थापना के माध्यम से फसल अवशेषों के तुरंत प्रबंधन के लिए मशीनरी उपलब्ध कराई जाती है। किसानों को व्यक्तिगत रूप से मशीनरी खरीदने के लिए सब्सिडी भी उपलब्ध कराई जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश राज्यों और एनसीटी को वर्ष 2018-19 और 2019-20 में कुल 1178.47 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराई गई। वर्ष 2020-21 में योजना के लिए 600 करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध कराया गया है और तत्संबंधी गतिविधियों की अग्रिम रूप से शुरुआत सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को 548.20 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। बता दें कि इस फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी योजना के तहत कृषि उपकरण खरीदने पर राज्य सरकार द्वारा किसानों को अधिकतम 80 प्रतिशत तक का अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है।
मशीनों से धान की कटाई के कारण बढ़ी पराली की समस्या
दरअसल धान की फसल के कटने के बाद बाकी बचा हुआ हिस्सा पराली होता है कई जगहों पर इसे पइरा भी कहते हैं। इसको जलाने का नया रिवाज शुरू हो गया है। जिसकी जड़ें भूमि में होती हैं। धान की फसल पकने के बाद किसान फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी अवशेष होते हैं जो किसान के लिए बेकार होता है। दरअसल धान की फसल कटने के बाद किसान खेतों में गेंहू की बिजाई करते हैं जिस कारण उन्हें खेत खाली करने की जल्दी होती है। किसान दिसंबर तक ही गेंहू की बिजाई कर सकते हैं क्योंकि उसके बाद बिजाई हुई तो फसल ठीक नहीं होती। इसी वजह से किसान खेतों में पड़ी पराली को आग लगा देते हैं। दोनों फसलों को तैयार होने में 6-6 महीने का वक्त लगता है। यह समय धान की फसल कटने के बाद गेहूं की फसल के लिए खेत तैयार करने का होता है। पिछले कुछ वर्षो से खेतों में पराली ज्यादा होने की वजह यह भी है कि किसान अपना समय बचाने के लिए ज्यादातर मशीनों से धान की कटाई करवाते है। मशीनें धान का सिर्फ उपरी हिस्सा काटती हैं और और नीचे का हिस्सा भी पहले से ज्यादा बचता है। किसान अगर धान को मजदूरों से या स्वयं काटे तो खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है। बाद में किसान इस पराली को चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
भूमि की उवर्रकता बढ़ाने में पराली का ऐसे करें इस्तेमाल
पर्यावरण विशेषज्ञ के अनुसार पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन (रपट) द्वारा काटकर खेत में उसी रपट द्वारा बिखेरा जा सकता है। इससे अगली फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को मशीनों से उखाड़कर एक जगह 2-3 फ़ीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं। उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया,गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिड़क दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाएं, अगर केंचुए भी खड्ड में छोड़ सकें तो और भी अच्छा है। आखिरी तह को मिट्टी के घोल में तर पॉलिथीन से ढक देना चाहिए। इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है। खेतो में पराली जलाने से मिट्टी की उपरी सतह जल जाती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगली फसल के लिए ज्यादा पानी, खाद कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर किसान खेतों में पराली दबा देते हैं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम नहीं होगी, यही पराली खाद का काम करेगी और जहरीली खाद नहीं डालनी पड़ेगी। ऐसी जमीन में बीजी गई अगली फसल को भी कम पानी देना पड़ेगा।
किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी पर सब्सिडी मुहैया करा रही है सरकार
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने कहा है कि भारत में लाखों टन अपशिष्ट कृषि एवं इससे जुड़े उद्यम उत्पन्न करते हैं। आंकड़ों के अनुसार, 70 प्रतिशत अपशिष्ट का उपयोग औद्योगिक क्षेत्र में होने के साथ-साथ घरेलू ईंधन के रूप में भी होता है। शेष अपशिष्ट को जैव-अवयवों एवं जैव-ईंधनों में तब्दील किया जा सकता है और इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन में भी किया जा सकता है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और भारतीय हरित ऊर्जा संघ (आईएफजीई) द्वारा आज ‘ऊर्जा उत्पादन में अपशिष्ट की संभावनाएं एवं इसकी चुनौतियां’ विषय पर आयोजित किए गए राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने फसल अवशेषों या पराली को जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को समाप्त करने की जरूरत पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि पराली को जलाने से उत्पन्न होने वाली जहरीली गैसें मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत नुकसानदेह हैं और इनसे मिट्टी के पोषक तत्वों का नाश होता है। उन्होंने यह जानकारी दी कि सरकार फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के लिए 50-80 प्रतिशत की दर से सब्सिडी मुहैया करा रही है। इन मशीनों से फसल अवशेष को मिट्टी के साथ मिश्रित करने में किसानों को मदद मिलती है, जिससे इसे और ज्यादा उत्पादक बनाना संभव हो पाता है। किसान समूहों को विशिष्ट जरूरतों के अनुसार फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की सहायता लेने हेतु कृषि मशीनरी बैंकों की स्थापना करने के लिए परियोजना लागत के 80 प्रतिशत की दर से वित्तीय मदद मुहैया कराई जा रही है। इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और एनसीआर हेतु दो वर्षों के लिए 1151.80 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि खेत में फसल अवशेषों के प्रबंधन से मिट्टी को और भी अधिक उर्वर बनाने में मदद मिलेगी जिससे किसानों की उर्वरक लागत में प्रति हेक्टेयर 2000 रुपये की बचत होगी। फसल अवशेष से पटिया (पैलेट) बनाकर इसका इस्तेमाल विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है। कृषि यंत्रीकरण से जुड़े उप-मिशन के तहत पुआल रेक, पुआल की गठरी, लोडर, इत्यादि पर 40 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। इसके जरिए फसल अवशेष को संग्रहीत किया जाता है और इससे गांठें बनाई जाती हैं, ताकि फसल अवशेष की पटिया (पैलेट) को विद्युत उत्पादन संयंत्रों तक पहुंचाने में आसानी हो सके।
मंत्री महोदय ने कहा कि आईसीएआर के कृषि इंजीनियरिंग प्रभाग ने धान के भूसे के जैव भार (बायोमास) से जैव गैस का उत्पादन करने के उद्देश्य से जैव-ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
उन्होंने किसानों से फसल अवशेष या पराली को न जलाने का अनुरोध किया, ताकि मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का संरक्षण करने में सहूलियत हो सके।
किसान की पहुंच से दूर है कीमती मशीन
किसान मजबूरी में खेतों में पराली जला रहे हैं। किसान कह रहें है कि सरकार बताए कि किसान पराली को कहां लेकर जाएं। दूसरी फसल के लिए खेत को खाली करना जरूरी है वरना गेंहू की बिजाई नहीं कर सकते। अगर किसान गेंहू की बिजाई नहीं कर सके तो उनके परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। पराली को जमीन में दबाने वाली विदेशी मशीन भी है मगर ये मशीन आम किसान के लिए लेना बहुत मुश्किल है। सरकार इसका समाधान निकाले और हमारी मदद करे। सरकारी दावों के बाद भी पराली जलाने के विकल्प किसानों तक नहीं पहुंच रहे हैं। इसका असर दिल्ली-एनसीआर की हवा पर हो रहा है। पंजाब और हरियाणा सरकार का दावा है कि किसानों को पराली जलाने के स्थान पर उन्हें दूसरे तरीके से नष्ट करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है। पंजाब के कृषि विभाग के आला अधिकारियों के अनुसार सरकार ने पिछले साल से अब तक 500 करोड़ रुपये पराली जलाने पर खर्च किए हैं। इसके तहत पिछले साल 28,000 मशीनों को लगाया गया था और इस साल यह आंकड़ा 17,000 का है। हालांकि, इन मशीनों की कीमत 55 हजार से बढ़कर 2.7 लाख तक पहुंच गई है, जो आम किसानों की पहुंच से दूर है।
इससे ओजोन परत फट रही
इसके धुंए से वायुमण्डल में प्रदूषण के साथ ब्लैक कार्बन भी बढ़ता है जो ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ाता है। बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।
पराली के धुंए से स्वास्थ पर असर
चिकित्सकों के अनुसार बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक है, जो सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।
जुर्माने का प्रावधान
एनजीटी के आदेशानुसार दो एकड़ में फसलों के अवशेष जलाने पर 2500 हजार रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपये, 5 एकड़ से अधिक जमीन पर धान के अवशेष जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्मानना किया जाएगा। इसके लिए जिम्मेदारी सरकार ने जिला राजस्व अधिकारी की तय की है। एनजीटी के अनुसार, यह फाइन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया जा रहा है।