सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के पुण्यतिथि पर जानें कुछ खास बातें

 


गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) की आज पुण्यतिथि। है गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म पटना साहिब में हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh Death Anniversary) को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी ऐसे वीर संत थे, जिनकी मिसाल दुनिया के इतिहास में कम ही मिलती है। उन्होंने मुगलों के जुल्म के सामने कभी भी घुटने नहीं टेके और सिखों को खालसा पंथ की स्थापना की। आज उनका शहीदी दिवस है। 1708 में 7 अक्टूबर को वे मुगलों से लड़ाई में शहीद हुए।


उनके पिता गुरु तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवंबर सन 1675 को वे गुरु बने। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए और सच्चाई की राह पर चलते हुए ही गुजार दिया था। गुरु गोबिंद सिंह ने ही सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब (Guru Granth Sahib) को पूरा किया। 15वीं सदी में गुरु नानक ने सिख पंथ की स्थापना की। गोविंद सिंह जी के पिता गुरु तेग बहादुर भी इस पंथ के गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु प्रथा को समाप्त किया और गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वोच्च बताया जिसके बाद से ही ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा की जाने लगी। साथ ही गोबिंद सिंह जी ने खालसा वाणी – “वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह और सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं” जैसे वाक्य गुरु गोविंद सिंह की वीरता को बयां करते हैं।



गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। आनंदपुर साहिब में वैशाखी के अवसर पर एक धर्मसभा के दौरान उन्होंने पंच प्यारों को चुना। उनके ही निर्देश पर सिखों के लिए खालसा पंथ के प्रतीक के तौर पर केश, कंघा, कृपाण, कच्छ और कड़ा अनिवार्य हुआ।


गुरु गोबिंद सिंह, दुनिया के पहले क्रांतिकारी

गुरु गोबिंद सिंह ने अपने सैनिकों को बोला कि युद्ध में जो मुग़ल सैनिक घायल दिखें उसे पानी पिलाओ उसकी मरहम पट्टी करो. जब 4 जवान बेटों और अपनी सांस को गवां चुकी मां रोने लगी तो गुरुजी ने कहा रोना है तो ज़रूर रो लेकिन इन आंसुओं में हर सैनिक का दर्द शामिल करना जिसने मेरे आदेश पर अपनी जान दे दी, वो भी मेरे बेटे थे.




दुनिया में पहला राजा हुआ जिसने धर्म और फ़र्ज़ के लिए अपने 4 बेटों को क़ुर्बान कर दिया और उफ़्फ़ भी ना की. जब बहुत छोटे थे तो अपने पिता को कश्मीरी पंडितों का धर्म बचाने की प्रेरणा दी, पिता का सिर दिल्ली में जहां काटा गया वहां आज शीशगंज गुरुद्वारा मौजूद है. कम उम्र में सिखों के दसवें गुरु बने और आनन्दपुर साहिब में खालसा पंत की स्थापना की. लड़कों को सिंह यानि शेर और लड़कियों को कौर मतलब राजकुमारी की उपाधि दी.

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