118th birth anniversary of Lal Bahadur Shastri: भारतीय राजनीति में ऐसे नेताओं की कमी नहीं, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल तक जाना पड़ा, लेकिन इसी देश का एक ऐसा प्रधानमंत्री भी हुआ, जिसने ईमानदारी की मिसाल कायम की। पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी के किस्सों में एक किस्सा यह भी दर्ज है कि शास्त्री जी के बेटे ने उनके प्रधानमंत्री रहते एक कार खरीदने की जिद की। कार की कीमत तब 12,000 रुपए थी परंतु शास्त्री जी के पास मात्र 7,000 रुपए ही थे। लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को हुआ था।
उन्होंने पंजाब नैशनल बैंक से 5,000 रुपए इस वायदे के साथ कर्ज लिए कि एकमुश्त लौटा देंगे। यह अलग बात है कि कर्जा चुकाने के पहले ही उनका निधन हो गया। आज के राजनीतिज्ञों और नई पीढ़ी के लोगों को यह जान कर आश्चर्य ही होगा कि 12 हजार रुपए की एक कार खरीदने के लिए इस देश के प्रधानमंत्री को बैंक से लोन लेने तक की नौबत आई।
याद करें, सन 1996 में दो चर्चित घटनाएं प्रकाश में आई थीं। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के घर से 28 किलोग्राम सोना, 8 क्विंटल चांदी, 750 जोड़े जूते-चप्पल, 10 हजार 500 साड़ियां और 91 घड़ियां बरामद हुई थीं। उसी साल एक केंद्रीय मंत्री के घर सीबीआई के छापे में इतने नोट बरामद हुए थे कि सीबीआई के तत्कालीन निदेशक जोगिंदर सिंह ने कहा था कि अब तक इतने नोट उन्होंने कभी नहीं देखे हैं। अब तो अनेक नेताओं और अफसरों के घर खजाने मिलने लगे हैं।
लालबहादुर शास्त्री को याद करना इसलिए आवश्यक है कि 40 रुपये में घर का खर्च चलने के कारण उन्होंने मदद के दस रुपये कम करवा दिए। आज जन-प्रतिनिधियों में वेतन-भत्ते बढ़ाने की होड़ लगी हुई है। ग्रामसभाओं के मुखिया तक अपने लिए वेतन-भत्ते और कई तरह की सुविधाओं की मांग करने लगे हैं। शास्त्री जी ने जहां अपने बेटे को सरकारी वाहन के इस्तेमाल से रोका था, वहीं आज नेताओं के परिजन ही नहीं, उनके चेले-चपाटे भी धड़ल्ले से सरकारी वाहन का इस्तेमाल करते हैं। अब तमाम सरकारों ने ही कम ब्याज पर महंगी कारों के लिए ऋण लेने की छूट दे रखी है।
शास्त्री जी की ईमानदारी और सादगी के और भी कई किस्से हैं। प्रधानमंत्री रहते एक बार उनके बेटे सुनील शास्त्री ने सरकारी वाहन का निजी इस्तेमाल किया। इस बात की जानकारी शास्त्री जी को हुई तो उन्होंने बेटे को साफ-साफ समझा दिया कि सरकारी वाहन प्रधानमंत्री के लिए मिला है, यह उनके परिवार के सदस्यों के इस्तेमाल के लिए नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने ड्राइवर से लॉग बुक मांग कर देखा और बेटे ने जितने किलोमीटर की यात्रा की थी, उसके पैसे सरकारी खजाने में जमा कराए।
उनकी ईमानदारी व बेबाकी का एक वाकया और है। स्वतंत्रता संग्राम में वह जेल में थे। निर्धन परिवारों के जो लोग जेल में थे, उनके परिवार का खर्च चलाने के लिए लाला लाजपत राय ने 50 रुपए मासिक सहायता की व्यवस्था की। यह रकम शास्त्री जी की पत्नी को भी जाती थी। पत्नी से पत्राचार में शास्त्री जी ने पूछा कि घर का खर्च उनके जेल के बाद कैसे चल रहा है तो पत्नी ने बताया कि पार्टी से हर महीने उन्हें 50 रुपए मिलते हैं। 40 रुपए में घर का काम चल जाता है।
तब शास्त्री जी ने लाला लाजपत राय को पत्र लिखा कि मेरे घर का मासिक खर्च 40 रुपए ही है, इसलिए इतनी ही रकम उनकी पत्नी को भेजी जाए। बचे पैसे किसी दूसरे जरूरतमंद को दिए जा सकते हैं।
आज के संदर्भ में लाल बहादुर शास्त्री को याद करना इसलिए आवश्यक है कि जहां उन्होंने 40 रुपए में घर का खर्च चलने के कारण इतने ही रुपए दिए जाने की बात की, वहीं आज तो जनप्रतिनिधियों में वेतन-भत्ते बढ़ाने की होड़-सी लगी है।
ग्राम सभाओं के मुखिया तक अपने लिए वेतन-भत्ते और कई तरह की सुविधाओं की मांग करने लगे हैं। शास्त्री जी ने जहां बेटे को सरकारी वाहन इस्तेमाल से मना किया, वहां आज के जनप्रतिनिधियों के परिजन ही नहीं, उनके चेले-चपेटे भी धड़ल्ले से सरकारी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
आज के हालत समझने के लिए केवल इतना ही बताना काफी है कि एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में चुने गए 542 सांसदों में 475 करोड़पति हैं। इस संपत्ति की घोषणा उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में की है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में विजयी 403 विधायकों में 366 करोड़पति हैं यानी 91 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं। पिछली बार की तुलना में इस बार करोड़पति विधायकों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2017 के चुनाव में 80 प्रतिशत विधायक करोड़पति थे। शास्त्री जी के निधन के बाद जब उनकी बैंक पासबुक लोगों ने देखी तो सभी दंग रह गए। उनके खाते में मात्र 365 रुपए 35 पैसे ही थे।
देश के लगभग 18 महीने तक ही रहे थे पीएम
नौ जून, वर्ष 1964 को लाल बहादुर शास्त्री देश दूसरे प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी का कार्यकाल ऐसा नहीं है कि एक बहुत लंबा सफर रहा हो, किंतु अपने अल्प कार्यकाल में वे जो कुछ भी कर गए हैं, इतिहास के पन्नों में दर्ज है और नया इतिहास बनने के बाद भी आज भी लिखे पन्नों में उन्हें श्रद्धा से याद किया जाता है।
9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा है। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की और उसके बाद वे पूरे देश में प्यार से शास्त्री जी के नाम से ही पुकारे जाने लगे। वैसे देखा जाए तो उनके जीवन और अपने राष्ट्र को सर्वस्व समर्पित कर देने के अनेक पहलु हैं, किंतु हम यहां कुछ विशेष बिन्दुओं को लेकर बात करेंगे।
भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के कर्मठ सिपाही
महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी शास्त्री जी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाते रहे और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।
“मरो नहीं, मारो” का दिया था नारा
बाद के दिनों में “मरो नहीं, मारो” का नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया, जिसने एक क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया। उनका दिया हुआ एक और नारा ‘जय जवान-जय किसान’ तो आज भी लोगों की जुबान पर है। यह नारा देकर उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी तात्कालीन समय में बढ़ाया था।
पाकिस्तान को दिखा दिया था आईना
लाल बहादुर शास्त्री जी को देश इसलिए भी सदैव नमन करता रहेगा क्योंकि 1965 में पाकिस्तान हमले के समय बेहतरीन नेतृत्व उन्होंने देश को प्रदान किया था। न सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ाया, उसे अपनी कार्रवाई करने की खुली छूट दी बल्कि भारतीय जनता का उत्साह एवं आत्मबल को भी बनाए रखा। शास्त्री जी ने तीनों सेना प्रमुखों से तुरंत कहा आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?
शास्त्री के सचिव सीपी श्रीवास्तव ने अपनी किताब ‘ए लाइफ ऑफ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स’ में लिखा है, 10 जनपथ, प्रधानमंत्री का कार्यालय… समय रात के 11 बजकर 45 मिनट, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अचानक अपनी कुर्सी से उठे और अपने दफ्तर के कमरे के एक छोर से दूसरे छोर तक तेजी से चहलकदमी करने लगे।
युद्ध में मारे गए थे पाक के 3,800 सैनिक
“शास्त्री ऐसा तभी करते थे, जब उन्हें कोई बड़ा फैसला लेना होता था। कुछ दिनों बाद हमें पता चला कि उन्होंने तय किया था कि कश्मीर पर हमले के जवाब में भारतीय सेना लाहौर की तरफ मार्च करेगी। इशारा पाते ही उसी दिन रात्रि में करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरी। कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है, ऐसा करके सही सलामत वे लौट आए। इतिहास गवाह है, उसके बाद क्या हुआ। शास्त्री जी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और ”जय जवान-जय किसान” का नारा देकर, इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ाया। पाकिस्तान के 3,800 सैनिक मारे जा चुके थे। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के 1840 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा भी कर लिया था। ऐसे में पाकिस्तान के सामने हथियार डालने के अलावा अन्य कोई मार्ग शेष नहीं बचा था।
शास्त्री जी के विचारोंआज भी प्रासंगिक
देश को मिले उनके नेतृत्व और उनके विचारों को फिर हम अपने जीवन में अपनाएं, यह वर्तमान की बहुत बड़ी जरूरत है। उन्होंने कहा है कि यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया, जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए, तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा। इसलिए जितना जल्दी हो सके अपने मन से यह विचार तुरंत त्याग दो।
वे कई बार कहा करते थे कि देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा। साथ ही उनका कहना रहता था कि देश के प्रति निष्ठा, सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्ठा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें कोई यह प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है। वास्तव में देश के पूर्व प्रधानमंत्री ”लाल बहादुर शास्त्री” जी के यह विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि अपने समय में रहे हैं।