Mulayam Singh Yadav: पिता से पितामह तक मुलायम सिंह यादव की कहानी, ऐसे हुई राजनीति में एंट्री




Mulayam Singh Yadav: पिता से पितामह तक मुलायम सिंह यादव की कहानी, इस निर्णय ने मचा दी थी तबाही

समाजवादी पार्टी के संरक्षक और यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, एक बार रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव दुनिया को छोड़कर परलोक सिधार गए हैं। नेताजी के निधन की जानकारी देते हुए उनके बेटे अखिलेश यादव भावुक हो गए थे। मुलायम के निधन पर पीएम मोदी, अरविंद केजरीवाल, सोनिया गांधी समेत कई राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया। साथ ही उनके साथ बिताए क्षणों को याद किया। 82 साल की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आखिरी सांस ले चुके मुलायम से जुड़े कई रोचक किस्से हैं।



फिल्मी पर्दे की तरह सियासत में भी कई किरदार ऐसे होते हैं जो अपनी छवि, शैली और लोगों के बीच अपनी पकड़ से वो सभी के दिलों पर राज करते हैं। सियासी गिलयारे में कई किस्से तो ऐसे भी बन जाते हैं जब एक व्यक्ति ही पार्टी की पहचान बन जाता है। उसी के दम पर जीत के दांव लगाए जाते हैं। सैफई के अखाड़े में पहलवानों को मात देने वाले समाजवादी पार्टी के पुरोधा मुलायम सिंह ने पहलवानी के साथ ही सियासत में कदम रखा था। 60 के दशक में सियासी अध्याय का पहला पन्ना लिखा गया।


हम आपको मुलायम के जीवन के कई रोचक और अनसुने किस्सों के बारे में परिचित कराएंगे। मुलायम सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में 22 नवम्बर, 1939 को हुआ था। इनके पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी है।


मुलायम सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम.ए) एवं जैन इन्टर कालेज करहल (मैनपुरी) से बी0 टी0 सी की शिक्षा हासिल की इसके बाद एक इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य शुरू किया था। मुलायम का पुत्र प्रेम किसी से छिपा नहीं है। नेताजी के नाम से बुलाए जाने वाले मुलायम अपने बेटे अखिलेश से कितना प्रेम करते हैं इसका बच्चा-बच्चा गवाह है|


लेकिन मुलायम के बारे में एक बात कही जाती है कि पार्टी के हर कार्यकर्ता को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं या यूं कहें कि वो अखिलेश की हमउम्र के नौवजवानों को अखिलेश की तरह ही तवज्जो देते हैं। मुलायम सिंह यूपी की सियासत में एक ऐसा नाम है जिसने अपने बल-बूते जमीन से जुड़े रहने के साथ ही सियासी शिखर तक पहुंचे। मुलायम के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह कहते थे यह छोटे कद का बड़ा नेता है।


एक और सियासी किस्सा ये भी रहा कि मुलायम ने काल का पहिया घूमते ही चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत पर कब्जा कर लिया। ये सियासत का कोई पहला किस्सा नहीं था। इससे पहले भी सियासत में ऐसा होता रहा है। अब बात करते हैं मुलायम और अखिलेश के पिता-पुत्र के रिश्ते की। नेताजी के नाम से पहचान बना चुके मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी को एक पहचान दी, जीत के परचम लहराए।


इसके साथ ही उन्होंने अपने सिंहासन पर बेटे को बैठाया जिसमें भी मुलायम को सफलता हासिल हुई। लेकिन कहा जाता है कि मुलायम के इसी निर्णय से परिवार में मची अंतर्कलह ने विकारल रूप ले लिया। यही अंतर्कलह समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत बनी है।सियासी पंडितों की माने तो इसी के चलते समाजवादी पार्टी को हार का भी सामना करना पड़ा। मुलायम के बारे में एक बात ये भी जाती है कि वो जनसभा के दौरान पचासों लोगों को संबोधन के दौरान उनके नाम से बुला सकते हैं।

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में किस्सों की कमी नहीं है। मुलायम सिंह की जिंदगी में कुछ ऐसे पल भी आए जिनसे वो खुद और उनका कुनबा विवादों में रहे। मुलायम सिंह यादव की पहली शादी घरवालों ने 18 साल की उम्र में ही कर दी थी। मुलायम उस वक्त दसवीं की पढ़ाई कर रहे थे। लोग बताते हैं कि उस वक्त गाड़ी-मोटर का इतना चलन नहीं था इसलिए मुलायम की बरात भैंसागाड़ी से गई थी। 


इस तरह पहली बार बने विधायक

साल 1967 की बात है जब यूपी में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. जसवंत नगर से मौजूदा विधायक नत्थू सिंह को एक बार फिर टिकट मिला लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया. उनका कहना था कि उनकी उम्र ज्यादा हो गई है इसलिए कोई युवा यहां से विधायक बने. बताया जाता है कि नत्थू सिंह ने ही मुलायम सिंह को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से टिकट दिलवाया और चुनाव प्रचार भी किया. इसकी मुख्य यह ये रही कि मुलायम सिंह राम मनोहर लोहिया आंदोलन से जुड़े थे. नत्थू के आर्शीवाद से मुलायम पहली बार विधायक बने.इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह इस सीट से आठ बार विधायक चुने गए.

55 साल राजनीतिक करियर

1977 में मुलायम सिंह पहली बार यूपी सरकार में मंत्री बने. वह 1989 से 1991, 1993 से 1995 और 2003 से 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. मुलायम सिंह एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक एचडी देवगौड़ा की सरकार में देश के रक्षा मंत्री भी रहे. मुलायम सिंह विधानसभा, विधान परिषद और लोकसभा के सदस्य भी रहे. मौजूदा समय में वे यूपी की मैनपुरी से सांसद थे. वह सात बार लोकसभा सांसद चुने गए थे. मुलायम सिंह ही ऐसे नेता हैं जो 55 साल के राजनीतिक करियर में 9 बार विधायक और 7 बार सांसद चुने गए. जब पूरे देश में मोदी लहर चल कही थी तो उन्होंने आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों लोकसभा सीट से जीत दर्ज की.

4 अक्टूबर 1992 को बनाई समाजवादी पार्टी

मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग होकर 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया. चार नवंबर 1992 को पहली बार पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ. इसके एक साथ बाद 1993 को यूपी 422 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए. सपा और बसपा ने मिलकर यह चुनाव लड़ा. बसपा के 164 प्रत्याशी जीते तो सपा के 67 उम्मीदवार जीते. यानी सपा अपने पहले ही चुनाव में 67 सीटें जीतने में कामयाब रही. इस चुनाव में सपा ने 256 उम्मीदवार उतारे थे.


2012 में बेटे अखिलेश को बनाया मुख्यमंत्री

मुलायम सिंह 2012 में बेटे अखिलेश यादव को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया. अखिलेश यादव पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया. बाद में जब शिवपाल यादव और अखिलेश के बीच विवाद हुआ तो समाजवादी पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव ने संभाल ली. मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी के संरक्षक थे.


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