रिपोर्ट आने के बाद लगातार सवाल किए जाने लगे कि अडानी को इन सवालों के जवाब देने चाहिए, बल्कि लोगों को ये पूछना चाहिए था कि हिंडनबर्ग पहले आप अपनी साख बताओ.
H हिंडनबर्ग, एक कंपनी जो शुद्ध रूप से सट्टा लगाने का काम करती है. अडानी पर आरोप लगाकर एक रिपोर्ट जारी करती है और अडानी को 1.44 लाख करोड़ का नुकसान होता है, दरअसल ये नुकसान निवेशकों का है. पहले इस रिपोर्ट को जारी करने वाली कंपनी की नीयत जानिए. सच जानना चाहते हैं इसका आप? बताइए तो फिर मैं कराऊं सच से रू-ब-रू आपको.
अडानी ग्रुप ने अमेरिकी सट्टेबाजों की कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों को 414 पेजों में जवाब दिया है, साथ ही एक बयान भी जारी किया है और कहा है कि हिंडनबर्ग का मकसद सिर्फ बेबुनियाद आरोप लगाकर कंपनी के शेयर को गिराना ही नहीं बल्कि भारत को बदनाम करने का है. जाहिर है कि ऐसा होना ही था. जब से इस अमेरिकी सट्टेबाजों की कंपनी ने अडानी ग्रुप पर आरोप लगाते हुए ये कहा था कि दुनिया का तीसरा सबसे धनी व्यक्ति कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा धोखा कर रहा है. तब से बाजार में उथल-पुथल देखी जा रही है. इस खबर के बाद अडानी ग्रुप के शेयर दो दिनों तक लगातार गिरते रहे और बाजार में तकरीबन 4 लाख करोड़ निवेशकों के डूब गए. अडानी दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति से सातवें पायदान पर पहुंच गए. अब आगे क्या? हिंडनबर्ग ने आरोप लगाए और अडानी ने जवाब दे दिए फिर क्या होना चाहिए? भविष्य तो गर्भ में है लेकिन मामला क्या है और इसकी कैसी प्रतिक्रिया भारत में होनी चाहिए थी, लेकिन कैसी प्रतिक्रिया देखी गई इस पर जरा नजर डाल लेते हैं.
हिंडनबर्ग की विश्वसनीयता नहीं जांची
हिंडनबर्ग ने जो आरोप लगाए और उसके बाद भारत में एक बड़े तबके ने जैसा रिएक्ट किया उससे दो मुख्य बातें सामने आईँ. पहली बात अडानी ग्रुप पर 2.20 लाख करोड़ का कर्ज है और दूसरी बात ग्रुप ने हेराफेरी कर शेयर के दाम बढ़ाए हैं, जो वास्तविकता से 85 फीसदी ज्यादा है. हिंडनबर्ग ने आरोपों के साथ साथ 88 सवालों की सूची भी अडानी को भेजी और कहा कि ये हमारी दो साल की रिसर्च है जिसमें ये सारी गड़बड़ियां पाईं गईँ. ये मामला सामने आते ही देश में जैसे बवाल मच गया, शेयर बाजार में खलबली मची और दो दिनों में अडानी औल-बौल हो गए. इन मुद्दों पर लोगों ने हिंडनबर्ग की विश्वसनीयता जांचे बिना अडानी को कटघरे में खड़ा कर दिया.
इन सभी मुददों को समझने से पहले हिंडनबर्ग को जान लीजिए. हिंडनबर्ग ने रिपोर्ट में साफ़ साफ लिखा कि अडानी पर उसने शॉर्ट पोजिशन ले रखी है. शॉर्ट पोजिशन कोई कामसूत्र का पोजिशन नहीं बल्कि बाजार में पैसे बनाने का एक सट्टेबाजी का तरीका है. आपने किसी कंपनी के शेयर ₹100 में ख़रीदें और दाम ₹150 होने पर बेच दिए आपको ₹50 फायदा हुआ ये लॉंग पोजिशन कहा जाता है. अब आप किसी कंपनी के शेयर किसी A कंपनी से 100 रुपए में उधार लेते हैं और B कंपनी को 100 रुपए में ही बेच देते हैं और आपको भरोसा है कि इसका भाव गिरेगा तो फिर आप बाजार से गिरे हुए भाव पर जो मान लीजिए अब 80 रुपए है, शेयर लेते हैं और फिर जिस A कंपनी से उधार लिए थे उसे लौटा देते हैं. आपका लाभ 20 रुपए का है. ये शॉर्ट पोजिशन है. हिंडनबर्ग ने अडानी पर शॉर्ट दांव खेला है. जाहिर है कि रिपोर्ट जारी कर उसका मकसद अडानी के शेयर गिराने का और उससे लाभ कमाने का है. जो ये कंपनी करती रही है, अमेरिकी कानून के दायरे में ये सही है और इसीलिए ये कंपनी वहीं से संचालित होती है. हालांकि कई मामलों पर अमेरिका संस्थाएं इस कंपनी के लेखा जोखा की जांच कर रही हैं. लेकिन भारत में एक बड़े तबके को गोरी चमड़ी आज भी ज्यादा प्यारी लगती है. उन्हें अडानी पर भरोसा नहीं होकर उस सट्टेबाज कंपनी पर भरोसा हो गया और अडानी के शेयर गिर गए.
रिपोर्ट आने के बाद लगातार सवाल किए जाने लगे कि अडानी को इन सवालों के जवाब देने चाहिए, बल्कि लोगों को ये पूछना चाहिए था कि हिंडनबर्ग पहले आप अपनी साख बताओ लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब अडानी ने 414 पेजों में जवाब भी दे दिए हैं तो अब क्या? बाजार को वापस अडानी पर भरोसा जताना चाहिए? पहला बड़ा आरोप कि कंपनी पर 2.20 लाख का कर्ज है इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर क़यास लगाये जाने लगे कि अडानी डूब जाएगा, गौतम देश छोड़े के भाग जाएँगे. देश पर 205 लाख करोड़ का कर्ज है तो क्या देश बंद हो रहा है और देश डूब रहा है? ये अतिशयोक्ति है, ऐसे निष्कर्ष नहीं निकालने चाहिए. अडानी ग्रुप के पास पोर्ट है, एयरपोर्ट है, कोयला खदान है, सड़कें है, सीमेंट बनाने के कारख़ाने हैं, बिजली बनाने की कंपनी है, खाने का तेल से लेकर आटा दाल बेचने वाला फ़ॉर्च्यून ब्रांड है. ग्रुप की सालाना बिक्री दो लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा है. मुनाफ़ा करीब 13 हज़ार करोड़ रुपये. ये आँकड़ा मार्च 2022 तक का है जिसमें सीमेंट कंपनियाँ शामिल नहीं है मतलब साफ है कि अडानी ग्रुप कोई हवा में कारोबार नहीं कर रहा है और साथ ही इतने बड़े कर्ज के बावजूद अडानी ग्रुप देश की सबसे बड़ी कर्जदार कंपनी भी नहीं है.
दूसरा बड़ा आरोप ये कि हेराफेरी से शेयर के दाम बढ़ाए हैं, साथ ही कंपनी के ऑडिटर नौसिखिए हैं. भारतीय कंपनियों पर आरोप लगते हैं कि वो टैक्स हैवन देशों में पैसा लगाते हैं और वहां से विदेशी निवेशक बनकर भारत में अपनी ही कंपनी के शेयर बढ़े दाम पर खरीदते हैं, गौतम के भाई विनोद अडानी यही काम दुबई से कर रहे हैं, लेकिन नौसिखिए ऑडिटर की वजह से ये मामला पकड़ में नहीं आ रहा है. मतलब यहां भी हिन्डनबर्ग सरासर झूठ बोल रही है. अगर गड़बड़ी होती तो शायद नौसिखिए ऑडिटर्स की गड़बड़ियां पकड़ना ज्यादा आसान होता.
जाहिर है कि हिन्डनबर्ग की मंशा भारतीय कंपनी को नुकसान पहुंचा कर भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का दिखती है और भारत में अगर एक तबका अडानी की जगह हिन्डनबर्ग पर भरोसा करके कंपनी को नुकसान पहुंचाने में अपनी भागीदारी देता है तो वो निश्चित तौर पर खुद को नुकसान पहुंचा रहा है. अडानी की कंपनियो में एलआईसी जैसी संस्थाओं के पैसे लगे हैं जिसका सीधा सरोकार भारत के आम लोगों के साथ है. ऐसे में मेरा व्यक्तिगत मानना है कि जब कभी कोई बाहरी ताकत देश के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश करे तो उसे गंभीरता से आंके, हो सकता है कि वो सही भी हो लेकिन जल्दबाजी में लिया गया फैसला आपके भविष्य के साथ खिलवाड़ साबित हो सकता है. निर्मूल आशंकाओँ से बाहर आइए और किसी भी ऐरे गैरे रिपोर्ट पर भरोसा करके अपना नुकसान मत कीजिए.
समय को लेकर सवाल और हिंडेनबर्ग की शॉर्ट सेलिंग का इतिहास
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि हिंडेनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट ऐसे समय में जारी की जब अडानी ग्रुप अगले 2 दिनों बाद ही देश का सबसे बड़ा FPO लॉन्च करने वाला था। रिपोर्ट जारी करने के समय को लेकर विश्लेषकों ने हिंडेनबर्ग के इरादों पर सवाल उठाए हैं। हिंडेबर्ग पर सवाल एक नजर में इसलिए भी जायज दिख रहा है, क्योंकि यह कंपनी शॉर्ट सेलिंग का कारोबार करती है।
हिंडेनबर्ग पर आरोप लगते हैं कि रिसर्च फर्म के नाम पर कंपनियों की रिपोर्ट जारी करती है। इसमें वह कंपनियों की वित्तीय स्थिति का विवरण देती है। इसके कारण जब कंपनी के शेयर लुढ़कने लगते हैं को वह मुनाफे कमाती है। शॉर्ट सेलिंग की बात खुद हिंडेनबर्ग ने कही है। हिंडेनबर्ग ने बुधवार (25 जनवरी 2023) को कहा था कि वह यूएस ट्रेडेड बॉन्ड और नन-इंडियन ट्रेडेड डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए अडानी ग्रुप की कंपनियों में शॉर्ट पोजीशन रखेगी।
क्या है शॉर्ट सेलिंग?
अगर साधारण भाषा में समझने का प्रयास करें तो शेयर बाजार में दो तरह के निवेशक होते हैं- तेजड़िया (Bull) और मंदड़िया (Bear)। जिन निवेशकों को लगता है कि शेयर बाजार ऊपर जाएगा, वे शेयरों को खरीदते हैं। ये निवेशक तेजड़िया कहलाते हैं। वहीं, जिन निवेशकों को लगता है कि बाजार नीचे जाएगा, वे शॉर्ट सेलिंग और बेचेने का काम करते हैं। ये मंदड़िया अर्थात Bear कहलाते हैं।
शॉर्ट सेलिंग ऐसी रणनीति होती है, जब मंदड़ियों को लगता है कि बाजार या कोई स्टॉक नीचे जाएगा तो वे उसे बेच देते हैं और जब उस स्टॉक की कीमत गिर जाती है तो वह खरीद लेता है। इस तरह वह कम पर खरीद कर अधिक पर आम रणनीति अपनाता है। हालाँकि, इस रणनीति की खास बात यह होती है कि जिस स्टॉक को आप शॉर्ट सेलिंग करना चाहते हैं, अगर वह आपके पास नहीं है तब उसे बेच सकते हैं। शेयर बाजार बंद होने से पहले उसे खरीदना होता है। यह मंदड़ियों का खेल है।
हिंडेनबर्ग यही मदड़िया है। वह बाजार की गिरावट का फायदा उठाता है। यानी वह बेच पहले देता है और जब स्टॉक की प्राइस गिर जाती है तो वह बाद में खरीद लेता है। यही उसका इतिहास इस रिपोर्ट पर सवाल उठाने के लिए जायज है। यहाँ सवाल अडानी ग्रुप की वित्तीय अनियमितता से नहीं, बल्कि समय के चुनाव से जुड़ी है। यह पहली बार नहीं है कि हिंडेनबर्ग ने ऐसा किया है। हिंडेनबर्ग का यही काम है, यही पेशा है, यही व्यवसाय है।
अमेरिका में आपराधिक जाँच के घेरे में है Hindenburg
कुछ समय पहले अपनी रिसर्च रिपोर्ट में कंपनी को टारगेट करने के आरोप में अमेरिका के न्याय विभाग ने 30 इन्वेस्टमेंट एवं रिसर्च कंपनियों एवं उनसे जुड़े लोगों के खिलाफ जाँच शुरू की थी। जिन कंपनियों के खिलाफ जाँच शुरू हुई थी, उनमें हिंडेनबर्ग रिसर्च भी शामिल है। ये कंपनियाँ किसी को टारगेट करके उसकी वित्तीय रिपोर्ट जारी करते थे और उसके स्टॉक पर अपना शॉर्ट पोजीशन बनाते थे। जब उस कंपनी का स्टॉक जितना ही, गिरता उतना ही ये लाभ कमाते थे।
हिंडनबर्ग की शॉर्ट-सेलिंग और हेज फंड के साथ मिलीभगत के लिए अमेरिकी सरकार के न्याय विभाग द्वारा जाँच की जा रही है। फर्म के संस्थापक नैट एंडरसन कथित तौर पर कॉर्पोरेट आपदाओं की पहचान करने और उनसे मुनाफा कमाने में माहिर हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च कॉर्पोरेट आपदाओं की पहचान करने (और उनसे लाभ उठाने) में माहिर है।
मार्क कोहोड्स नाम के एक अन्य शॉर्ट सेलर ने आरोप लगाया था कि अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित हिंडनबर्ग बड़े फंड से जानकारी प्राप्त करता है और इस प्रकार उन्हें अपने ‘शॉर्ट’ ट्रेडों में मदद करता है।
क्या है Hindenburg और कौन है इसका संस्थापक
नाथन एंडरसन उर्फ नैट एंडरसन ने साल 2017 में फोरेंसिक वित्तीय शोध फर्म के रूप में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी। यह इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव का विश्लेषण करती है।हिंडनबर्ग का कहना है कि वह वित्तीय अनियमितता, कुप्रबंधन, हेरफेर, अघोषित लेनदेन आदि जैसे ‘मानव निर्मित आपदाओं’ की तलाश करती है। इसको देखकर कंपनी अपनी पूँजी लगाती है।
कंपनी का नाम 1937 में हिंडनबर्ग एयरशिप की हाई प्रोफाइल आपदा (Hindenburg Disaster) के नाम पर रखा गया है। सारी सुख सुविधा से लैश उस समय का सबसे बड़ा यह एयरशिप अमेरिका के न्यूजर्सी में जलकर खाक हो गया था। इसमें 100 लोग सवार थे। संभावित गलत कामों को खोजने के बाद हिंडनबर्ग आमतौर पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इसमें मामले की जानकारी होती है। इसके बाद कंपनी लाभ कमान के लिए शॉर्ट सेलिंग करती है।
इसके संस्थापक नाथन एंडरसन ने इंटरनेशनल बिजनेस में अमेरिका के कनेक्टिकट विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है। इसके बाद उन्होंने डेटा कंपनी फैक्टसेट रिसर्च सिस्टम्स इंक (FactSet Research Systems Inc) में फिनांस में अपना करियर शुरू किया। वहाँ एंडरसन ने इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट कंपनियों के साथ काम किया। उन्होंने इजरायल में एंबुलेस ड्राइवर के तौर पर भी काम किया है।