सिर्फ 18 रुपए के लिए होटल में धोते थे बर्तन, अब हैं करोड़ों की कंपनी के मालिक, पढ़िए डोसा किंग की कहानी



कहते हैं “मेहनत करने वाले की कभी हार नहीं होती”। वह हर परिस्थिति में खुद को साबित करके ही दम लेते हैं। आज तक हमने ऐसे कई व्यक्तियों के बारे में बात की है, जो बेहद गरीबी से उभर कर आज एक सफल व्यक्ति बने हैं। ऐसे ही लोगों के लिए कहा जाता है कि “मन के जीते जीत हैं और मन के हारे हार है”। क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में जो भी लक्ष्य तय किया उसे पूरा करके दिखाया। उनके संघर्ष की यह कहानी हर युवा के लिए एक प्रेरणा बन जाती है।


अक्सर हम युवाओं को यह कहते हुए सुनते हैं कि उनके पास सुविधाएं मौजूद नहीं थी इसलिए वह सफल नहीं हो पाए। ऐसे युवाओं को इन व्यक्तियों से प्रेरणा लेना चाहिए कि सफलता प्राप्त करने के लिए सुविधाओं की कोई जरूरत नहीं पड़ती।

दरअसल आज हम बात कर रहे हैं भारत के उस ‘डोसा किंग’ ( Dosa king) के बारे में, जिसका जन्म तो एक गरीब परिवार में हुआ, लेकिन वह अपनी मेहनत और लगन से खुद को इतना सफल बना लिया कि आज वह भारत के बङे व्यवसायियों में से एक बन गए हैं। डोसा किंग के नाम से प्रसिद्ध प्रेम गणपति (Prem Ganpati) तमिलनाडु (Tamil Nadu ) राज्य के तूतीकोरिन जिले के नागलपुरम के रहने वाले हैं। उनका जन्म (1973) एक गरीब में हुआ था। गरीबी के कारण वह चाह कर भी उच्ची शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। वह केवल 10वीं तक की पढ़ाई कर पाए।

जयराम बानन को 60 के दशक के मध्य का वो दिन याद है, जब वो उडिपी (कर्नाटक) के अपने घर से भाग गए थे. 64 साल की उम्र में आज उन्हें निर्विवाद रूप से ‘उत्तर भारत का डोसा किंग’ कहा जाता है.


एक वक्त था जब वो मुंबई में 18 रुपए महीने कमाने के लिए एक कैंटीन में बर्तन धोया करते थे.आज उनकी ‘सागर रत्ना’ रेस्तरां चेन की सालाना कमाई क़रीब 70 करोड़ रुपए है.जयराम बानन समूह के चेयरमैन जयराम बानन रेस्तरांओं की चेन, स्टार-श्रेणी की होटलों, बजट होटलों और फै़क्ट्रियों में कैंटीन के मालिक हैं.


सात भाई-बहनों में से एक जयराम बताते हैं कि उनके पिता क्रूर व्यक्ति थे. वो एक ड्राइवर थे और स्कूल में ख़राब प्रदर्शन पर अपने बेटे की आंखों में पिसी मिर्च डाल देते थे.
 

13 वर्ष की उम्र में जब जयराम एक बार परीक्षा में फेल हो गए तो अपने पिता के बटुए से पैसे चुराकर घर से मुंबई भाग गए.मुंबई जाने वाली बस में उडिपी के ही एक व्यक्ति ने उन्हें रोते हुए देखा और अपने साथ नवी मुंबई के पनवेल में हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स (एचओसी) की कैंटीन ले गया.
 

कैंटीन में उन्हें बर्तन धोने की 18 रुपए महीने की पहली नौकरी मिली. उन दिनों उडुपी से कई लोग जीवनयापन के लिए मुंबई जाया करते थे.
 

आज बेहद मशहूर सागर रत्ना, स्वागत और श्रमन रेस्तरां चेन के मालिक जयराम याद करते हैं, “ये लोग मुंबई में डोसा लेकर आए. उन्होंने इस शहर का मसाला डोसा से परिचय करवाया और इसे भारत की नंबर वन डिश बना दिया.”
 

यह जयराम की मेहनत और ईमानदार काम का ही नतीजा था कि जल्द ही उन्हें बर्तन साफ़ करने के काम से वेटर, हेडवेटर और फिर मैनेजर तक पदोन्नत कर दिया गया.
 

जयराम ने एचओसी में आठ साल काम किया. महीने के 200 रुपए कमाने वाले जयराम ने इस दौरान काम और प्रबंधन के कई गुर सीखे.
 

एचओसी में बिताया गया वक्त मुश्किल था, लेकिन इसने जयराम के भीतर अपना काम शुरू करने की भावना पैदा की.शुरुआत में उन्होंने मुंबई में ही दक्षिण भारतीय होटल खोलने का विचार किया, लेकिन मुंबई में पहले से बहुत सारे दक्षिण भारतीय होटल थे.
 

इस कारण उन्होंने इस विचार को त्याग दिया.एचओसी में नौकरी छोड़कर 1973 में वो दिल्ली आ गए. दिल्ली में उनका भाई एक उडिपी रेस्तरां में मैनेजर था.दिल्ली आने के बाद ही उन्होंने प्रेमा से विवाह कर लिया.यह ऐसा वक्त था जब सरकार दिल्ली के नज़दीक गाजियाबाद में सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) की स्थापना कर रही थी.
 

1974 में जयराम को सीईएल में “मात्र 2000 रुपए के निवेश में कैंटीन खोलने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया.बनान सागर रत्ना चेन समेत उत्तर भारत में 90 रेस्तरां के मालिक हैं.इस कैंटीन को खोलने का फ़ैसला उनके जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ. उन्होंने तीन रसोइयों की मदद से कैंटीन में अच्छी क्वालिटी का खाना परोसना शुरू किया.


नतीजा यह हुआ कि कैंटीन में आने वाले लोगों को उनका खाना पसंद आने लगा और खाना हिट हो गया.शुरूआती दिनों को मुस्कुराहट के साथ याद कर जयराम कहते हैं, ”मुझे ऐसा ही प्रोत्साहन चाहिए था, जिससे मैं किसी बड़े और ख़ूबसूरत काम की ओर क़दम बढ़ा सकूं.”
 

वो स्पष्ट करते हैं, “उन दिनों दिल्ली में उडिपी खाने के नाम पर लोगों को हल्दीराम का डोसा ही मिल पाता था. वह बहुत मशहूर था, आसानी से मिल जाता था, लेकिन असली डोसा नहीं था.”


“दरअसल असली दक्षिण भारतीय डोसा सिर्फ़ दो महंगे रेस्तरां में ही मिलता था: लोधी होटल के वुडलैंड्स और एंबैसडर के दसप्रकास में.”जयराम को मौक़ा नज़र आया और उन्होंने एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई. उन्होंने वुडलैंड्स जैसी इडली और डोसा गली की चाट के दामों में बेचना शुरू किया!

बनान गली की चाट के दामों पर क्वालिटी डोसा ग्राहकों को देने लगे.चार दिसंबर 1986 को उन्होंने दिल्ली की डिफ़ेंस कॉलोनी मार्केट में बचत के 5000 रुपए से अपना पहला रेस्तरां खोला.
 चालीस सीटों वाले होटल का नाम उन्होंने ‘सागर’ रखा. इस रेस्तरां में उन्होंने इडली, डोसा और सांभर जैसी दक्षिण भारतीय डिश परोसना शुरू की.
 

पहले ही दिन 408 रुपए की बिक्री हुई. लेकिन हर हफ़्ते का किराया 3250 रुपए था, यानी उन्हें शुरुआत में आर्थिक घाटा हुआ, लेकिन उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वो खाने की गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं करेंगे.जयराम हर दिन सुबह सात बजे से आधी रात तक बिना रुके काम करते थे. इसका नतीजा यह हुआ कि रेस्तरां की बिक्री बढ़ने लगी।वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि खाने की अच्छी क्वालिटी, सस्ता खाना और अच्छी सेवा से लोगों को ‘सागर’ पसंद आने लगा.”
 

जल्द ही बढ़ती मांग के चलते जयराम को रेस्तरां के ऊपर की जगह भी किराए पर लेनी पड़ी.लेकिन ‘सागर’ की बढ़ती लोकप्रियता के कारण यह जगह भी कम पड़ने लगी और लोग रेस्तरां के बाहर लंबी क़तारों में खड़े होकर इंतज़ार करने लगे.


चार साल बाद 1991 में जयराम ने वुडलैंड्स को ख़रीद लिया, वही रेस्तरां जिससे कभी उन्होंने मुकाबला किया था।बनान कहते हैं, “उडिपी जैसे छोटे शहर से आए मेरे जैसे लड़के के लिए यह एक बड़ा क़दम था. डिफ़ेंस कॉलोनी में जहां रेस्तरां थोड़ा खाली दिखता था, मैंने वुडलैंड्स को फ़ैंसी लुक देने का फ़ैसला किया।


जयराम गर्व से याद करते हैं, “मैंने फ़र्नीचर पर 50,000 रुपए ख़र्च किए, खाने का दाम 20 प्रतिशत बढ़ा दिया और रेस्तरां को सागर रत्ना नाम दिया.”‘सागर रत्ना’ ब्रांड ने तेज़ी से क़दम बढ़ाए और जल्द ही शहर में 35 ‘सागर रत्ना’ हो गए.आम लोगों से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजनीतिज्ञ ‘सागर रत्ना’ आने लगे.
 

वर्ष 1999 में उन्होंने लुधियाना के होटल महाराजा रिजेंसी में पहला फ्रैंचाइज़ी आउटलेट खोला.उन्होंने ‘सागर रत्ना’ फ्रैंचाइज़ी के लिए कम से कम 60 लाख रुपए के न्यूनतम निवेश की सीमा रखी.अगले 15 सालों में चंडीगढ़, मेरठ, गुड़गांव और दूसरे भारतीय शहरों में ‘सागर रत्ना’ के 36 फ्रैंचाइज़ी खुल गए.


वक्त गुज़रा और ‘सागर रत्ना’ ने अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में भी रेस्तरां खोले.‘सागर रत्ना’ के इतने बड़े ब्रांड बनने के बावजूद जयराम ने कोस्टल फ़ूड में दख़ल देने की सोची.“उडिपी तटीय शहर है. मैंने सोचा कि दिल्ली के लोगों को दक्षिण भारत के कोस्टल फ़ूड से परिचित किया जाए.”
 

इस तरह डिफ़ेंस कॉलोनी में ‘सागर रत्ना’ से थोड़ी ही दूर पहला ‘स्वागत’ रेस्तरां खुला.ऐसा खाना दिल्ली में मुश्किल से ही मिलता था. इस कारण जल्द ही भारतीय और विदेशी बड़ी संख्या में यहां आने लगे.आज ‘स्वागत’ के 17 रेस्तरां मौजूद हैं. यहां मैंगलुरु, चेट्टिनाड और मलाबार इलाक़े का स्वादिष्ट कोस्टल फूड मिलता है.
 

वर्ष 2005 में मशहूर मिएल गाइड ने ‘स्वागत’ को एशिया के सबसे बेहतरीन सीफ़ूड रेस्तरां में से एक घोषित किया.जयराम बनान आज उत्तर भारत में 90 रेस्तरां के मालिक हैं.हर रेस्तरां चेन को प्रति वर्ष 20.25 प्रतिशत मुनाफ़ा होता है.उडुपी के करकला में सागर रत्ना रेस्तरां बनान के माता-पिता की स्मृति में शुरू किया गया। यहां 10 रुपए में पूरा खाना खिलाया जाता है.

वर्ष 2000 में ‘सागर रत्ना’ की कुल बिक्री 12 करोड़ की थी, जो 2005 में बढ़कर 25 करोड़ हो गई.आज ‘सागर रत्ना’ का कुल मूल्य क़रीबग 200 करोड़ रुपए है.
 

अगस्त 2011 में उन्हें न्यूयॉर्क की निजी इक्विटी फ़र्म इंडिया इक्विटी पार्टनर्स (आईईपी) से ‘सागर रत्ना’ के लिए निवेश हासिल करने में कामयाबी मिली.आईईपी ने 180 करोड़ में ‘सागर रत्ना’ का 75 प्रतिशत हिस्सा ख़रीद लिया और एक नया सीईओ नियुक्त किया.जयराम ने अपना 22.7 प्रतिशत हिस्सा बरकरार रखा और वो ‘सागर रत्ना’ चेन के चेयरमैन बन गए.
 


चेन का नाम अब जयराम बनान ग्रुप (जेआरबी) रखा गया.इस कूटनीतिक क़दम का मकसद ‘सागर रत्ना’ ब्रांड का विस्तार करना और इसे ऐसी रेस्तरां चेन बनाना था जिसकी शाखाएं पूरे भारत में हों.हालांकि अक्टूबर 2013 तक जयराम व आईपी के बीच मतभेद गहरे हो गए और जयराम ने अपने शेयर वापस ख़रीद लिए.अब तक उनका बेटा रोशन कारोबार में शामिल हो चुका था.
 

जेआरबी समूह ने अब दूसरे संबद्ध व्यापारों में क़दम बढ़ाने के बारे में सोचा.आज समूह स्टार-श्रेणी के होटल, बजट होटल, फ़ैक्ट्रियों में कैंटीन, बेकरी आदि का मालिक है. इसके अलावा यह पैकेज़्ड स्नैक्स, अचार और तैयार खाना भी बेचता है.लेकिन कुछ और नया करने की भूख जयराम में ख़त्म नहीं हुई है.
 

हाल ही में उन्होंने ‘श्रमन’ नाम से नई रेस्तरां चेन की शुरुआत की.यहां उत्तर भारत के मारवाड़ी और जैन परिवारों में खाए जाना वाला बेहतरीन और लज़ीज़ खाना मिलता है.यहां परोसा जाने वाला खाना बिना लहसुन और प्याज़ के पकाया जाता है.
 

वो कहते हैं, “बाज़ार में मांग के मुताबिक हमें लगातार बदलाव करने पड़ते हैं और अभी तक हम इसी तरह आगे बढ़ते रहे हैं.”बनान ने विभिन्न कारोबारों में क़रीब 10,000 लोगों को रोजगार दिया है.2010 में उडिपी के करकला में खोले गए ‘सागर रत्ना’ रेस्तरां में 10 रुपए में पूरा खाना मिलता है.यह रेस्तरां उन्होंने अपने माता-पिता की स्मृति में खोला था.
 

वो कहते हैं, “हमें हमेशा समाज को वापस देना” चाहिए. इसी से ज़िंदगी में बढ़ोतरी होती है.”कई कारणों में से यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि उनके रेस्तरां में काम करने वाले क़रीब सभी 10,000 लोग कर्नाटक और तमिलनाडु के रहने वाले हैं.
 

आज भी जब कोई ग्राहक उनके रेस्तरां में प्रवेश करता है तो वो झुककर उसका स्वागत करते हैं. उन्हें इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आने वाला ग्राहक आम आदमी है या फिर कोई सेलिब्रिटी.शायद यही कारण है कि आज डिफ़ेंस कॉलोनी स्थित ‘सागर रत्ना’ रेस्तरां में रोज़ 2,000 से ज़्यादा लोग खाना खाने आते हैं.

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