किस देश से आती हैं आईपीएल की चीयरलीडर्स, कितनी होती है इनकी सैलरी; जानिए सबकुछ
नई दिल्ली: 15 साल पहले 2008 में जब आईपीएल की शुरुआत हुई तो चीयरलीडर्स ने सभी का ध्यान खींचा। चौके-छ्क्के के बीच कमर मटकाती विदेशी बालाएं। ये कहानी आईपीएल की उस चकाचौंध की है जो ग्लैमर में गुम हो जाती है और आप तक पहुंच ही नहीं पाती। दास्तान उन चीयरलीडर्स की जो विदेशों से हर साल आईपीएल का हिस्सा बनने भारत आती हैं। स्टेडियम में मौजूद फैंस की फब्तियों का शिकार होती हैं। कितने पैसे मिलते हैं इन्हें। कौन इन चीयरलीडर्स को भारत के मैदानों तक पहुंचाता है। चलिए सबकुछ जानते हैं।
कहां से आती हैं ये चीयरलीडर्स?
आईपीएल की ये चीयरलीडर्स एजेंसियों के जरिए यूरोप के छोटे-बड़े देशों से आती हैं। लोगों को लगता है कि छोटे कपड़े पहनकर डांस करने वाली लड़कियां शियन होंगी, लेकिन ऐसा नहीं होता। ये लड़कियां प्रोफेशनल डांसर्स होती हैं। कई देशों में घूम-घूमकर परफॉर्म करती हैं। यूरोपियन देशों में चीयरलीडिंग एक प्रोफेशन बन चुका है। अगर आप सोचेंगे कि सिर्फ डांस आना ही इस प्रोफेशन की एकमात्र शर्त है तो ऐसा नहीं है। विदेशों में चीयरलीडर्स को फॉर्मेंशन्स भी बनानी होती हैं, जिसके लिए शरीर का लचीला होना जरूरी है। इसके लिए कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग कॉी जरूरत होती है। ठीक वैसा ही हार्डवर्क जैसा मैदान पर खिलाड़ी करते हैं।
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सैलरी कितनी होती है?
चीयरलीडर्स को मोटी सैलरी मिलती है। फ्रैंचाइजी एक सीजन के लिए उनसे कॉन्ट्रेक्ट करती है, जो तकरीबन 20 हजार डॉलर तक हो सकता है, यानी भारतीय करेंसी के हिसाब से लगभग 17 लाख रुपये। इसके अलावा पार्टी परफॉरमेंस बोनस, एलिमिनेटर बोनस अलग होता है। यहां ये भी बताना जरूरी हो जाता है कि यूरोपियन चीयरलीडर्स और किसी दूसरे देश से आई चीयरलीडर्स की सैलरी में बड़ा अंतर होता है। डांसर की उम्र, सुंदरता, अनुभव और फिजिक पर भी सैलरी निर्भर करती है। मैच के बाद या उससे पहले शाम की पार्टियों में प्रदर्शन करने पर भी चीयरलीडर्स को अतिरिक्त पैसे मिलते हैं। हालांकि इन चीयरलीडर्स का मानना है कि वो जितनी मेहनत करतीं हैं, उस हिसाब से सैलरी कम है।
दर्शकों की अश्लील निगाहें
एक पुराने इंटरव्यू में दिल्ली कैपिटल्स की चीयरलीडर्स ने कहा था कि, ,भारत में उन्हें किसी सेलिब्रिटी सा अहसास होता है। लोग उनके साथ सेल्फी मांगते हैं, लेकिन कुछ लोग माहौल खराब करने वाले भी होते हैं, जब हम पोडियम पर डांस करते हैं तो भोग-विलास का सामान समझा जाता है। चीयरलीडिंग हमारा पेशा है। लोग हमारे शरीर पर टिप्पणी करते हैं। भद्दे इशारे करते हैं। लगता है कि भीड़ से निगाहें हमें चीरती हैं। मगर हम प्रोफेशनली इससे निपटते हैं।'
जब पुरुष हुआ करते थे चीयरलीडर
चीयरलीडिंग का कल्चर अमरीका में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है. यूरोप में भी होने वाले खेलों में इसका चलन है.आपको ये जानकर हैरानी होगी कि चीयरलीडिंग की शुरुआत अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा में हुई थी और इसकी शुरुआत किसी महिला ने नहीं बल्कि पुरुष ने की थी जिनका नाम जॉन कैंपबल था.
यही नहीं, जो चीयर स्क्वॉड उन्होंने बनाया था उसमें सब पुरुष थे. हालांकि 1940 के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पुरुषों को युद्ध के लिए सीमा पर जाना पड़ा था जिसके बाद महिलाओं की बतौर चीयरलीडर्स भर्ती होने लगी.
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