Salil Vishnoi Beating Case in UP Assembly: विधायक की पिटाई करने वाले सीओ समेत पांच पुलिसकर्मियों पर 19 साल बाद हुई कार्रवाई



यूपी विधानसभा में बृहस्पतिवार को सीओ सहित पांच अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पास किया गया है। इन पर सुनवाई के बाद दंड दिया जाएगा।

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक और वर्तमान विधान पार्षद सलिल विश्नोई की पिटाई मामले में उत्तर प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को अहम सुनवाई होगी। करीब 19 साल पहले तत्कालीन भाजपा विधायक सलिल विश्नोई की पिटाई के मामले में यूपी विधानसभा की विशेषाधिकार समिति ने बाबूपुरवा (कानपुर) के पूर्व डिप्टी एसपी अब्दुल समद सहित छह पुलिसवालों को दोषी करार दिया है। विशेषाधिकार हनन के इन दोषियों के खिलाफ जेल भेजने की सजा का प्रस्ताव किया गया है।

 विशेषाधिकार समिति का यह प्रस्ताव संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन में रखा। साथ ही अध्यक्ष से अनुरोध किया कि शुक्रवार को इस पर चर्चा करवा ली जाए। इसके अलावा डीजीपी के जरिए दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी सदन में तलब किया जाए। सलिल विश्नोई वर्तमान में विधानपरिषद सदस्य हैं।

विधानसभा सचिवालय के मुताबिक प्रमुख सचिव (गृह) और डीजीपी को इस बाबत आदेश भेज दिया गया है। कहा गया है कि वह शुक्रवार को दोपहर बारह बजे सभी दोषियों को हिरासत में लेकर सदन में पेश करवाएं। सदन में इसके लिए कठघरा रखा जाएगा, जिसमें दोषियों को पेश किया जाएगा। दोषियों में कई पुलिसकर्मी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

जानिए पूरा मामला?

मामला 15 सितंबर, 2004 का है। कानपुर में उस वक्त के भाजपा विधायक सलिल विश्नोई अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बिजली कटौती की समस्या को लेकर डीएम को ज्ञापन देने जा रहे थे। रास्ते में प्रयाग नारायण शिवालय के गेट पर उन्हें सीओ बाबूपुरवा अब्दुल समद के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों ने रोक लिया था। नोकझोंक के बाद पुलिसकर्मियों ने भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ उनकी पिटाई कर दी थी और गाली-गलौज की गई थी। विश्नोई ने इसे विधायक के विशेषाधिकार की अवहेलना करार देते हुए अक्टूब, 2004 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत की थी। मामला विधानसभा की विशेषाधिकार समिति के सुपुर्द कर दिया गया था।

ये पुलिसकर्मी दोषी करार

27 जुलाई, 2005 को विशेषाधिकार समिति ने इसे विशेषाधिकार की अवहेलना और सदन की अवमानना करार देते हुए तत्कालीन सीओ अब्दुल समद को कारावास की सजा दिए जाने की संस्तुति की थी। साथ ही घटना में उनके साथ मौजूद तत्कालीन थानाध्यक्ष किदवई नगर ऋषि कांत शुक्ला, दरोगा त्रिलोकी सिंह, सिपाही छोटे लाल, विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह को सदन में बुला कर चेतावनी देने की भी संस्तुति की थी। हालांकि, कुछ वजहों से इसे सदन में नहीं रखा जा सका था।

क्या होता है विशेषाधिकार हनन? जानिए ...

संविधान ने विधायिका और उसके सदस्यों को अपनी गरिमा की रक्षा के लिए विशेषाधिकार दिए हैं। इन विशेषाधिकारों के तहत वे जनहित के मुद्दों को लेकर किसी प्रकार का कार्य करते हैं। इसमें दायरे में रहते हुए धरना, प्रदर्शन आदि भी शामिल है। अगर उनको ऐसा करने से रोका जाता है तो विशेषाधिकार छीने जाने का मामला बनता है। इसकी सुनवाई संसद और विधानसभा के स्तर पर गठित होने वाले विशेषाधिकार समिति करती है।


विशेषाधिकार समिति एक स्थायी समिति है। यह पूछताछ समिति के अंतर्गत आती है। इसकी प्रकृति अर्द्ध न्यायिक होती है। यह समिति दोनों सदनों के सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करता है। उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की सिफारिश करता है। इन सिफारिश को सदन में रखा जाता है और वहां पर चर्चा के बाद विशेषाधिकार समिति की सिफारिश पर मुहर लगती है।

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