UP: बनारस में 7.5 करोड़ रुपये की नकली दवाओं का जखीरा बरामद: 10वीं फेल है सरगना, मजदूर से बना मालिक, हैरतअंगेज खुलासे

 


वाराणसी: नामी कंपनियों के नाम से नकली दवा का कारोबार करने वाले गिरोह का एसटीएफ ने गुरुवार को पर्दाफाश किया। गिरोह के सरगना को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसकी निशानदेही पर भारी मात्रा में नकली दवा बरामद की गई है। बरामद दवा की अनुमानित कीमत साढ़े सात करोड़ रुपये है। यहां से नकली दवाएं बांग्लादेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों में भेजी जाती थीं। इस अवैध कारोबार से जुड़े अन्य लोगों की तलाश की जा रही है।

नकली दवाओं के 25 नमूने जांच के लिए लखनऊ स्थित जनऔषधि प्रयोगशाला में भेजे गए हैं। विगत दिनों उड़ीसा के बारगढ़ और झाड़सूकड़ा जिले में नकली दवाएं बरामद हुई थीं। शुरुआती जांच में पता चला कि उसकी सप्लाई वाराणसी से की गई थी। इसके बाद खाद्य सुरक्षा व औषधि विभाग ने एसटीएफ से संपर्क साधा और जांच के लिए मदद मांगी थी।


एसटीएफ के स्थानीय प्रभारी विनोद सिंह नकली दवा कारोबार की जानकारी मिलने के बाद से गैंग पर नजर बनाए हुए थे। गुरुवार को गैंग के सरगना अशोक कुमार के सिगरा थाना क्षेत्र स्थित चर्च कालोनी में मौजूद होने की जानकारी मिली। टीम ने घेराबंदी करके उसे एक मकान से गिरफ्तार कर लिया। उसकी निशानदेही पर मकान में रखी 108 पेटी नकली दवा बरामद की गई। इसके अलावा चार लाख चालीस हजार रुपये, कूटरचित बिल, अन्य दस्तावेज तथा एक फोन बरामद किया गया।

पूछताछ में मंडुवाडीह थाना क्षेत्र के महेशपुर में गोदाम होने की जानकारी मिली। एसटीएफ ने गोदाम में छापा मारकर 208 पेटी नकली दवा बरामद की। गैंग के अन्य सदस्यों की तलाश कर रही है। सरगना अशोक बुलंदशहर के सिकंदराबाद थाना क्षेत्र के टीचर्स कालोनी का रहने वाला है।

आरोपी पर गैंगस्टर एक्ट और रासुका की भी कार्रवाई होगी...

 इस मामले में 15 अन्य आरोपियों की तलाश में छापे मारे जा रहे हैं। नामी कंपनियों के नाम की नकली दवाएं बेचने के आरोप में गिरफ्तार सरगना अशोक कुमार हाईस्कूल फेल है। उसने पूछताछ में कई राज उगले हैं। 

हाईस्कूल फेल है गिरोह का सरगना

सरगना अशोक कुमार ने वर्ष 1987 में बुलंदशहर के किसान इंटर कालेज से हाईस्कूल की पढ़ाई की, लेकिन परीक्षा में फेल हो गया। इसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी और गद्दे की कंपनी में मजदूरी करने लगा। वर्ष 2003 में मजदूरी छोड़कर वो सात साल आटो रिक्शा चलाता रहा। यहां अच्छी कमाई नहीं हुई, तो फिर गद्दे की कंपनी में नौकरी करने लगा। इस बार उसने यहां लगातार 10 वर्षो तक प्रति माह 12 हजार रुपये पर काम किया। बाद में एक बार फिर उसकी नौकरी छूटी, तो वो आटो चलाने लगा। 


ऐसे शुरू किया काला कारोबार


अशोक जब आटो चला रहा था, तो उसी दौरान उसकी मुलाकात बुलंदशहर के नीरज से हुई। वह नकली दवाओं का काम करता था। अशोक उसके माल की ढुलाई का काम करने लगा। यहीं से उसे इस काले कारोबार के बारे में जानकारी मिली। शुरू में वो नीरज से थोड़ी बहुत नकली दवा खरीदकर स्थानीय झोलाछाप डाक्टरों को बेचने लगा। वर्ष 2019 में अमरोहा में नीरज की बेची गई नकली दवा पकड़ी गई।नीरज का नाम आने के बाद पुलिस उसे पकड़कर ले गई। 

इस मामले में नीरज के पिता ने पुलिसवालों पर अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था। चार साल पहले हुई इस घटना के बाद अशोक वहां से भागकर वाराणसी आ गया। यहां उसने रोडवेज बस स्टेशन के पीछे चर्च कालोनी में किराए का कमरा लिया और लहरतारा में एक गोदाम बनाया। इसके बाद उसने नामी-गिरामी पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की नकली दवाएं बनाने वाले हरियाणा स्थित पंचकुला के अमित दुआ, हिमाचल प्रदेश स्थित बद्दी के सुनील व रजनी भार्गव से संपर्क किया और नकली दवाएं, फर्जी बिल्टी व बिल के जरिए ट्रांसपोर्ट के माध्यम से दवाएं मंगाने लगा।

हिमाचल प्रदेश के बद्दी में बनने वाली नामी कंपनियों की नकली दवाएं नकली पैकिंग में अशोक 60 से 100 रुपये में खरीदता था। इसे वो तीन सौ से चार सौ रुपये में बेचता था। दुकानदार इसे पांच से छह सौ रुपये में ग्राहकों को बेचते थे। इसमें कुछ असली दवाओं की कीमत बाजार में एक हजार से 1200 रुपये है। असली जैसी नजर आने वाली नकली दवाएं लगभग आधी कीमत में मिलने पर ग्राहक खास पूछताछ नहीं करते थे।


अशोक नकली दवाओं को यहां से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से बांग्लादेश, कोलकाता, उड़ीसा, बिहार, हैदराबाद व उत्तर प्रदेश के आगरा, बुलंदशहर भेजता था। नकली दवाओं को गोदाम तक पहुंचाने में अशोक की मदद प्रयागराज के रोहन श्रीवास्तव, पटना के रमेश पाठक व दिलीप, पूर्णिया के अशरफ, हैदराबाद के लक्ष्मण, वाराणसी स्थित शिवपुर के नीरज चौबे, डा. मोनू, रेहान व बंटी, आशापुर के शशांक मिश्रा व एके सिंह, सोनभद्र स्थित न्यू बस्ती परासी के अभिषेक कुमार सिंह करते थे।

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