पानी बाबा: वो धर्मात्मा जो 28 साल से राहगीरों को पिला रहे हैं अपने हाथ से खोदे कुएं का पानी;सेवा ना रूके..नहीं की शादी
पानी की जरूरत हर किसी को है लेकिन इसकी अहमियत समझने वाले लोग बहुत कम हैं. एक तरफ जहां दुनिया पानी की बर्बादी को नजरंदाज करती आ रही है वहीं पानी बाबा जैसे लोग भी हैं जो पिछले कई सालों से रास्ते से गुजरने वालों की प्यास भांप कर उन्हें पानी पिला रहे हैं.
28 सालों से पिला रहे हैं पानी
हम बात कर रहे हैं राजस्थान, भीलवाड़ा के गुंदली गांव के 79 वर्षीय मांगीलाल गुर्जर की. जिन्हें लोग सम्मान के साथ 'पानी बाबा' कहते हैं. यहां के लोग पिछले 28 सालों से मांगीलाल की उदारता और उनके परिश्रम के गवाह बने हुए हैं. वह 28 सालों से राहगीरों को पिलाने का नेक काम करते आ रहे हैं. बड़ी बात ये है कि जिस कुएं का पानी मांगीलाल लोगों को पिलाते हैं उसे उन्होंने अपने हाथों से खोदा है. इसके बदले उन्हें किसी तरह का कोई लालच नहीं होता बल्कि वह ये नेककाम बिना पैसे लिए करते हैं.
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मांगीलाल अपना पानी का मटका और लोटा उठाए अपने गांव से काफी दूर दूसरे गांवों तक पहुंच जाते हैं. उनका ये सेवायभाव ही है जिस वजह से उन्हें जानने वाला हर कोई आदर-सम्मान देता है. वह जिस भी गांव में पहुंच जाते हैं वहां के लोग बड़े स्नेह के साथ उनके खाने की व्यवस्था करते हैं.
अपने हाथों से खोदा कुआं
पानी बाबा ने इस नेक काम की शुरुआत 28 साल पहले की थी. इसके लिए उन्होंने पहले अपने हाथों से एक कुआं खोदा. इसके बाद वह उसी कुएं का पानी निकालकर भीलवाड़ा से अमरगढ़ और बागोर जाने वाली मुख्य सड़क से 3 किलोमीटर दूर अपने गांव जाने के रास्ते के चौराहे पर राहगीरों को पिलाने लगे. उस समय उनके गांव तक पहुंचने के लिए यही एकमात्र कच्चा रास्ता था. यहां तक लोग पैदल या बैलगाड़ी जैसे साधनों से पहुंचते थे. इस रास्ते पर कहीं भी पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं था.
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राहगीरों को प्यास से तड़पता देख पानी बाबा ने उनकी प्यास मिटाने का जिम्मा उठाया. इसके लिए उन्होंने गुंदलीं ग्राम के चौराहे पर अपने हाथ से 25 फीट गहरा कुआं बनाया. कुआं तैयार करने के बाद वह उस में से पानी निकाल कर राहगीरों को पिलाने लगे. पानी बाबा को ये काम शुरू किये जब 20 साल गुजर गए तब तक सड़क पक्की हो गई. इस वजह से लोगों ने बसों से आना जाना शुरू कर दिया. पैदल यात्रियों की संख्या कम गई लेकिन पानी बाबा ने अपना काम नहीं छोड़ा. वह सिर पर पानी का मटका और हाथ में लोटा लेकर घूम-घूमकर राहगीरों को पानी पिलाते रहे.
पुश्तैनी जमीन का भी नहीं है मोह
पानी बाबा अपने परिवार में अकेले हैं. उनके पास उनकी पुश्तैनी जमीन भी है लेकिन वह कभी इसका इस्तेमाल नहीं करते. उनके लिए सेवाधर्म ही सबसे ऊपर है. उन्होंने अपनी जमीन अपने चचेरे भी को दे रखी है और खुद वह घूम घूम कर लोगों को पानी पिलाते हैं. इसके बदले लोग भी उनका सम्मान करते हैं और उनके आने पर उनके खाने की व्यवस्था भी करते हैं.
लोगों की सेवा के लिए नहीं की शादी
अब बेशक गांव का विकास होने और पक्की सड़क बनने के बाद लोग अब मोटर गाड़ी से चलने लगे हैं, लेकिन फिर भी इन्होंने लोगों को पानी पिलाने का काम बंद नहीं किया। अब मांगीलाल जी (Mangilal) कुएं से पानी भर मटके को सिर पर रख गांव-गांव जाते हैं और सबकी प्यास बुझाते हैं। उन्होंने इस काम को जारी रखने के लिए शादी (Marriage) तक नहीं की। उनके पास जो पुश्तैनी ज़मीन है वो भी उन्होंने अपने चाचा के बच्चों को दे दी है। उस पर अब वही खेती करते हैं। मांगीलाल लोगों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध हैं और वह जहां भी जाते हैं, लोग इनके खाने-पीने की व्यवस्था कर देते हैं। पानी का मटका लिए ये बाबा को मांडल, बागोर, रायपुर, कोशीथल, मांडलगढ़ और राजसमंद ज़िले के आमेट, देवगढ़, कुंवारिया जैसे गांव तक हो आते हैं। ये जहां भी जाते हैं लोग इनका ख़ूब आदर-सत्कार करते हैं।
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