द वायरल न्यूज़:शादी के बंधन को पवित्र और सात जन्मों का रिश्ता माना जाता है। लड़का हो या लड़की, हर किसी की ख्वाहिश शादी करने की होती है। हर कोई यही चाहता है कि उसको अपने मनपसंद का जीवनसाथी मिले, जिसके साथ वह अपना जीवन हंसी खुशी व्यतीत करे। अगर किसी को अपने मनपसंद का जीवनसाथी मिल जाता है तो उसका वैवाहिक जीवन खुशहाल व्यतीत होता है और शादीशुदा जिंदगी में किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती है।
वहीं अगर किसी को अपनी मनपसंद का जीवनसाथी नहीं मिलता है, तो ऐसे में शादीशुदा जिंदगी में बहुत सी परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं। इसी वजह से आजकल हर कोई अपनी पसंद की लड़की और लड़का से शादी करना चाहता है। जब शादी की बात आती है, तो पहले दो परिवार मिलते हैं और दो परिवार एक दूसरे से मिलकर पूरी जांच-पड़ताल करते हैं।
इसके बाद लड़का और लड़की को एक दूसरे से मिलवाया जाता है। ताकि वह एक दूसरे को अच्छी तरह से समझ सके जब लड़का और लड़की दोनों एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं तब जाकर परिवार वाले शादी की बात आगे बढ़ाते हैं और उनका रिश्ता पक्का कर देते हैं।
लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर दूल्हे का बाजार लगता है। जी हां, दूल्हे के इस मेले में लड़के अपने लिए लड़की नहीं चुनते बल्कि यहां पर लड़की अपनी मनपसंद का वर चुनती हैं।
यहाँ लगता है दूल्हे का मेला
भले ही आपको यह बात जानकर थोड़ा अजीब सा लग रहा होगा लेकिन यह बात सच है कि देश में एक ऐसी भी जगह है, जहां पर दूल्हे का मेला लगता है। दरअसल, यह जगह बिहार के मिथिलांचल का है, जहां पर 700 सालों से दूल्हे का बाजार लगता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस मेले की शुरुआत 1310 ईस्वी में की गई थी। 700 साल पहले कर्णाट वंश के राजा हरिसिंह देव ने इसे शुरू किया था। शादी एक ही गोत्र में ना हो, बल्कि वर वधू के गोत्र में अलग-अलग हो, इसे शुरू करने का यही मकसद था।
बिना दहेज और बिना किसी तामझाम के होती है शादी
यहां पर लड़की वाले दूल्हा चुनते हैं, जिसकी बोली सबसे ऊंची होती है, दूल्हा उसी का हो जाता है। दूल्हे के इस बाजार में लड़कियां लड़कों को देखती हैं। इसके साथ ही घरवाले भी दूल्हे के बारे में सारी जानकारी लेते हैं। लड़का और लड़की को मिलवाया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि लड़के और लड़की की जन्मपत्री भी मिलाई जाती है। जब यह सारी चीजें पूरी हो जाती हैं, तो उसके बाद योग्य वर का चुनाव किया जाता है, जिसके बाद लड़का और लड़की की शादी करवा दी जाती है।
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यहाँ पर बिना दहेज और बिना किसी तामझाम के लड़कियां अपने पसंद के लड़कों का चुनाव करती हैं और शादी करती हैं। यहां पर हर वर्ग के लोग अपनी लड़की की शादी के लिए आते हैं और ना ही किसी भी प्रकार का दहेज देना होता है और ना ही लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यह प्रथा मिथिलांचल में आज भी बहुत प्रसिद्ध है। इसमें हजारों युवा आते हैं, हर साल इसका आयोजन किया जाता है।
1310 ईस्वी में हुई थी शुरूआत
कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1310 ईस्वी में हुई थी। 700 साल पहले कर्णाट वंश के राजा हरिसिंह देव ने सौराठ की शुरुआत की थी। इसके पीछे उनका मकसद था कि एक ही गोत्र में विवाह ना हो, बल्कि वर वधू के गोत्र अलग-अलग हो। इस सभा में सात पीढ़ियों तक ब्लड रिलेशन और ब्लड ग्रुप मिलने पर शादी की इजाजत नहीं दी जाती है। यहां बिना दहेज, बिना किसी तामझाम के लड़कियां अपने पसंद के लड़कों को चुनती है और उनकी शादी होती है। मिथिलांचल में ये प्रथा आज भी बहुत मशहूर है और हर साल इसका आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों युवा आते हैं।
इस मेले की शुरुआत करने की वजह यह थी कि लड़की की परिवार को शादी के लिए परेशानी का सामना ना करना पड़े। यहां हर वर्ग के लोग अपनी बेटी के लिए पसंद का लड़का ढूंढने आते हैं और इसके लिए ना ही दहेज देना होता है और ना ही शादी में लाखों रुपए खर्च करने होते हैं। इस सभा में आकर लड़की और उसके परिवार को लड़के को पसंद करना होता है और इसके बाद दोनों की पत्रिका मिलाकर हंसी-खुशी दोनों की शादी करवा दी जाती है।
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