24 साल का सॉफ्टवेयर इंजीनियर लड़का अकेलेपन से इतना परेशान है कि वह साल का 58 लाख रुपए कमता है लेकिन फिर भी खुश नहीं रह पाता है।
द वायरल न्यूज़:अक्सर आपने लोगों से ये सवाल पूछा होगा या फिर लोगों के इस सवाल का जवाब दिया होगा, कि क्या पैसों से खुशियां खरीदी जा सकती हैं? इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल है. जो समृद्ध नहीं होते, सड़कों पर रहते हैं, उनके लिए बेशक रुपये खुशियां ला सकते हैं, पर जो बहुत धनवान हों, जो अपनी हर जरूरत को चुटकियों में पूरा कर लें, उनके लिए रुपयों का मूल्य नहीं होता है. इस बात का सबूत दिया है एक शख्स ने जो बेंगलुरू में नौकरी करता है और उसका पोस्ट वायरल हो रहा है.
अब सोचिए हममें से अधिकांश यही सोचते हैं कि पढ़ाई खत्म होते ही अच्छे पद पर नौकरी, बड़ी कंपनी में मोटे पैकेज वाली सैलरी, किसी मेट्रो सिटी की चकाचौंध भरी जिंदगी हो तो इससे ज्यादा खुशी की बात क्या होगी. एक ऐसी जिंदगी जहां कोई अभाव न हो, जिम-क्लब-रेस्तरां का पैसा चुकाने के लिए किसी का मुंह न देखना पड़े, बचपन से लोगों से सुनते सुनते हमारे खुशी के पैमाने बस इसी सोच में ढलते गए हैं. हम यही सब सोचकर दिन-रात एक कर रहे होते हैं तभी अचानक इस तरह की कोई बात हमें अंदर तक झकझोर देती है.
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फिर याद आता है कि जवान होने के क्रम में अक्सर लोग 'ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी...मगर मुझको लौटा दो वो कागज की कश्ती-वो बारिश का पानी' जैसे गीतों पर इमोशनल क्यों हो जाते हैं. क्यों हम बचपन में अमीर बनकर जिन खिलौनों-सामानों को खरीदने की ख्वाहिशें रखते हैं, एक उम्र के बाद जब पैसा आता है तो वो ख्वाहिशें नदारद होती हैं. यह कैसी मृग मरीचिका है जहां कभी "संतुष्टि और खुशी" की प्यास बुझती ही नहीं. अक्सर ऐसे सवालों से दो-चार होने वाले लोग भी तय नहीं कर पाते कि धन दौलत कमाकर खुशी तलाशूं या जिंदगी जीने का कोई और तरीका भी है.
ट्विटर अकाउंट @appadappajappa पर हाल ही में एक पोस्ट शेयर किया गया है जो वायरल हो रहा है. इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा गया- दूसरा भारत! ये पोस्ट एक शख्स के पोस्ट का स्क्रीनशॉट है जो एक ऐप, ग्रेपवाइन, पर पोस्ट किया गया था.
इस पोस्ट में शख्स ने जो लिखा, उससे दो चीजें पता चलती हैं, पहला ये कि आदमी कभी भी धन-दौलत से संतुष्ट नहीं होता है, और दूसरा ये कि पैसों से खुशी नहीं खरीदी जा सकती।
24 साल की उम्र में 58 लाख रुपये!
इस पोस्ट में लिखा है- “मैं 24 साल का एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं और एक बहुत बड़ी कंपनी में काम करता हूं. मेरा कुल एक्सपीरियंस 2.9 साल का है. मेरी सैलेरी 58 लाख रुपये प्रति साल है. मैं अच्छा कमा रहा हूं और वर्क लाइफ भी काफी रिलैक्स है. इसके बावजूद मैं जिंदगी में हमेशा ही अकेला मेहसूस करता हूं. मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, जिसके साथ मैं समय बिता सकूं और मेरे दोस्त अपनी जिंदगी में बिजी हैं. मेरी वर्क लाइफ भी काफी बोरिंग हो चुकी है क्योंकि मैं अपने करियर की शुरुआत से ही एक ही कंपनी में काम कर रहा हूं. हर रोज एक ही काम करता हूं, और अब ऐसी स्थिति आ गई है कि मैं करियर में नई चुनौतियां नहीं लेना चाहता हूं. कृपया मुझे बताएं कि मैं अपनी जिंदगी को और मजेदार बनाने के लिए क्या करूं. ये मत कहिएगा कि जिम चले जाओ, क्योंकि वो मैं पहले से कर रहा हूं.”
लड़के के इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रियाएं जाहिर की। कई लोगों ने भी अपनी जिंदगी का हाल भी कुछ ऐसा ही बताया तो वहीं कुछ लोगों ने नया स्टार्टअप शुरु करने को कहा। जबकि कई लोगों ने कहा कि भाई अब लड़कियों को तुम्हारी सैलरी पता चल गई है जल्द ही कोई गर्लफ्रेंड बन जाएगी।
क्या है ये मृग मरीचिका
भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हें कि अगर किसी के मन में ऐसे विचार आ रहे हैं कि उसके पास सबकुछ है मगर वो खुश नहीं है, तो ये खराब मानसिक स्वास्थ्य के संकेत हो सकते हैं. ऐसे विचार आने पर मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग जरूरी है. जैसे हम हृदय की धड़कन असामान्य होने पर कार्डियोलॉजिस्ट के पास जाते हैं, आंख की दिक्कत पर आई स्पेशलिस्ट, नाक कान गले की समस्या होने पर भी विशेषज्ञ खोजते हैं. ठीक वैसे विचारों की या मन की समस्या लगे तो मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट के पास जाना चाहिए.
अब जानिए कि इसमें थेरेपिस्ट का क्या रोल होता है.
थेरेपिस्ट सबसे पहले आपके व्यक्तित्व को समझता है क्योंकि ऐसे मामले में पहली भूमिका होती है हमारे व्यक्तित्व की. हमारा व्यक्तित्व हमारी परवरिश, समाज और जिस जिस से मिले वो सब मिलकर बनता है. अपने इस व्यक्तित्व को उसी आधार पर हमने ढाला होता है. हर किसी ने अपनी खुशियों का अपनी सफलता का मानक तय किया. किसी के लिए पैसे, किसी के लिए कोई सफलता, कोई भौतिक चीज, किसी के लिए कोई कंपटीशन, इस तरह हरेक के लिए खुशियों का पैमाना अलग है.
खुशी से ऊपर है शांति
मेंटल हेल्थ के मामले में शांति को खुशी से ऊपर रखा जाता है. इसमें हमारे इमोशनल पहलू का रोल है. हमें खुशी से ज्यादा शांति पाना जरूरी है. क्योंकि कोई एचीवमेंट खुशी देता है तो वो एक तय समय तक खुश रखेगा. वो हमेशा के लिए नहीं हेागा. जब हम ऐसे तमाम एचीवमेंट्स को खुशी का पैरामीटर बनाते हैं तो इस मृग मरीचिका में उलझते चले जाते हैं. इसका कोई अंत नहीं होता. ये ठीक एक वीडियो गेम की तरह होता है जिसमें एक स्टेज पार की, खुशी मिली तो आगे दूसरी फिर तीसरी स्टेज है. हमने सब अपने हिसाब से एचीव कर लिया, फिर लगा उसकी सीमाएं खत्म हो रही हैं. यहीं से निराशा, अकेलापन शुरू होता है जो बोरियत देता है.
हमें खुशी कहां से मिलेगी
अब सवाल है कि हमें खुशी कहां से मिलेगी. डॉ सत्यकांत कहते हैं कि कारणों का एनालिसिस करने के बाद पता चलता है कि शांति का अनुभव क्यों नहीं हो रहा. हो सकता है कि ऐसे लोगों का सोशल कनेक्शन पुअर हो, कहीं न कहीं ऐसे लोगों का भावनात्मक विकास होता है तो भौतिकता को तरजीह मिलती है. लेकिन इमोशनल पहलू अधूरा रह जाता है.
खुशी शांति से और शांति संतुलन से...
डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि खुशी शांति में निहित है. जब हमारा भावनात्मक जुड़ाव बेहतर हो, सोशल कनेक्शन मजबूत हों, हम एक दूसरे के साथ दुनियावी चीजों से ऊपर देख सकें तभी शांति निश्चित है. इसका यह मतलब नहीं है कि पैसे में खुशी नहीं है. लेकिन साथ ही साथ कमाने की पार सीमाएं हैं, हर कोई अपने गढ़े संसार के हिसाब से सोचता है कि उसने सब पा लिया है. ओवर ऑल देखा जाए तो शांति में पैसे का रोल है लेकिन एक सीमा तक रोल है.
समग्रता ही रास्ता है
जब काउंसिलिंग के लिए ऐसे लोग आते हैं जो कहते हैं कि हम तो जीवन को जी चुके, सब पा लिया. लेकिन साथ ही उन्हें लगता है कि हमें अनसुना किया गया. पैसे के कारण हम दोस्तों से दूर हो गए, उन्हें तमाम मलाल होते हैं. इसलिए बच्चों की परवरिश के वक्त ही उन्हें समग्रता की तरफ जाने का पाठ सिखाना जरूरी है. हमें साधारण भाषा में ऐसे समझाना चाहिए कि एक व्यक्ति के दो पहलू होते हैं., उसके भौतिक शरीर को घर चाहिए, पैसा चाहिए, लग्जरी चाहिए लेकिन भावनात्मक शरीर को नींद चाहिए, शांति चाहिए, द्वेश मुक्ति चाहिए, अहंकार मुक्ति चाहिए, अच्छा संवाद चाहिए. इसी से समग्र खुशी के रास्ते खुलेंगे.
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